भारत ने पूछा, क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को बाहर कर सुरक्षा परिषद समावेशी हो सकता है
अरुल लुईस
संयुक्त राष्ट्र (आईएएनएस)| भारत का कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को स्थायी सदस्यता देने से इनकार करने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) को समावेशी नहीं माना जा सकता और वैश्विक संगठन को 'फ्यूचर प्रूफ' बनाने की दिशा में पहला कदम इसका पुनर्गठन करना है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने बुधवार को कहा, यूएनएससी का पुनर्गठन 'शांति कायम रखने के लिए फ्यूचरप्रूफिंग' की दिशा में मौलिक शुरुआती कदम है।
सुरक्षा परिषद में एक खुली बहस में उन्होंने सवाल किया, क्या यूएनएससी अपने वर्तमान स्वरूप में - जो पूरे अफ्रीकी और लैटीन अमेरिकी महादेशों और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को स्थायी प्रतिनिधित्व से इनकार करता है - 'समावेशी' माना जा सकता है।
कंबोज ने कहा कि अगर परिषद को दुनिया का नेतृत्व करने की अपनी क्षमता में विश्वास पैदा करना जारी रखना है, तो इसे विकासशील देशों का बेहतर प्रतिनिधित्व देना चाहिए।
उन्होंने पूछा कि अंतहीन अंतर-सरकारी बातचीत के साथ, जिसे सुधार प्रक्रिया कहा जाता है और जिसकी बैठक गुरुवार को होनी है, क्या चर्चा पूरी करने की समय सीमा तय किए बिना यह विश्वसनीय और प्रभावी हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए फ्यूचर-प्रूफिंग पर खुली बहस स्विट्जरलैंड द्वारा बुलाई गई थी, जो पहली बार परिषद की अध्यक्षता कर रहा है।
बैठक की अध्यक्षता करने वाले स्विट्जरलैंड के विदेश मंत्री इग्नाजि़यो कासिस ने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमने संयुक्त राष्ट्र के साथ धरती के दोनों ओर बन रही निराशाओं और परिवर्तनों का पर्याप्त रूप से ध्यान में नहीं रखा है।
कम्बोज ने कहा, बहुपक्षीय संस्थानों को उनकी सदस्यता के लिए और अधिक जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। उन्हें ²ष्टिकोणों की विविधता का स्वागत करना चाहिए, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण से।
जी20 के अध्यक्ष के रूप में भारत की भूमिका पर ध्यान आकर्षित करते हुए कंबोज ने कहा कि भारत वैश्विक चुनौतियों का समाधान खोजने के प्रयास में जी20 प्रक्रिया के माध्यम से आम सहमति बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।