उल्टी-पुल्टी पॉलिसियों के बीच फुटबॉल बने बेरोजगार युवा, नौकरियों पर फिर लग गया ब्रेक
रांची (आईएएनएस)| झारखंड में सरकारी नौकरियों की तलाश में भटकते बेरोजगार युवाओं की हालत ऐसे फुटबॉल की तरह हो गई है, जो किसी गोलपोस्ट तक नहीं पहुंच पाता। कभी नौकरी की परीक्षाएं गड़बड़ियों की भेंट जाती हैं तो कभी रिजर्वेशन पर पेंच फंस जाता है। कभी भाषा का विवाद उठ खड़ा होता है तो कभी परीक्षा लेने वाली संस्थाएं खुद विवादों के कठघरे में आ जाती हैं। कभी नियुक्ति परीक्षा पास करने के बाद भी उम्मीदवार सालों-साल नियुक्ति पत्र का इंतजार करते रह जाते हैं तो कभी रिक्रूटमेंट की सरकारी पॉलिसी अदालत में निरस्त हो जाती है।
ताजा खबर यह है कि राज्य की सरकार द्वारा नियुक्तियों के लिए वर्ष 2021 में घोषित संशोधित नियमावली को झारखंड हाईकोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही राज्य में निकट भविष्य में संभावित लगभग एक लाख पदों पर होने वाली नियुक्तियों की प्रक्रिया पर ब्रेक लग गया है।
हेमंत सोरेन की सरकार ने बीते वर्ष यानी 2021 के अगस्त महीने में अराजपत्रित (नॉन गजटेड) पदों पर नियुक्ति की परीक्षाओं के लिए संशोधित नियमावली नोटिफाई की थी। इसमें सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए यह शर्त लगाई गई थी कि वे राज्य में सरकारी नौकरियों के लिए तभी पात्र माने जाएंगे, जब उन्होंने मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परीक्षाएं इसी राज्य से पास की हों।
यह पॉलिसी नोटिफाई होते ही रमेश हांसदा सहित कई अभ्यर्थियों ने इसे झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी। कई तारीखों में लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने बीते शुक्रवार को फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस नियमावली को भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 और 16 का उल्लंघन बताते हुए असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने इसे समानता के अधिकार और संविधान की मूल भावना के खिलाफ ठहराया।
परीक्षा नियमावली में क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से हिंदी को हटाकर उर्दू को शामिल करने को भी कोर्ट ने गलत माना। नई नियमावली के तहत राज्य में लगभग 14 हजार पदों पर नियुक्तियों के लिए प्रक्रियाएं चल रही थीं। कोर्ट के आदेश के साथ ही ये तमाम प्रक्रियाएं निरस्त हो गईं।
इसके अलावा शिक्षकों के लगभग 50 हजार और अन्य विभागों में 30 हजार पदों पर नियुक्तियों के लिए विज्ञापन निकालने की तैयारी कर ली गई थी। इनपर भी फिलहाल विराम लग गया है। हालांकि सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी। जाहिर है, यह अदालती लड़ाई लंबी चलेगी और इस बीच बेरोजगार युवाओं के एक बड़े समूह की नौकरी की उम्र एक्सपायर हो जाएगी।
बता दें कि हेमंत सोरेन सरकार ने वर्ष 2021 को नियुक्ति वर्ष घोषित किया था, लेकिन यह वर्ष नियुक्ति की नियमावली बनाने की प्रक्रिया में ही गुजर गया। इस वर्ष छिटपुट बहालियां हुईं। बीते वर्ष विधानसभा के शीतकालीन सत्र में आजसू पार्टी के विधायक सुदेश महतो के प्रश्न के जवाब में सरकार ने बताया था कि वर्ष 2021 में 89 भर्ती कैंप लगाकर 1915 युवाओं को नौकरी दी गई।
नई नियुक्ति नियमावली के जरिए वर्ष 2022 में कुल 432 पदों पर बहालियां की गई हैं, जबकि 23 विज्ञापनों के जरिए 13 हजार 968 पदों पर बहाली की प्रकियाएं चल रही थीं। अब इन प्रक्रियाओं पर विराम लगने से नियुक्तियों के लिए फॉर्म भरने वाले लाखों युवाओं के लिए इंतजार और लंबा हो गया है।
रद्द हुई परीक्षाओं में झारखंड डिप्लोमा स्तरीय संयुक्त प्रतियोगिता, झारखंड इंटरमीडिएट स्तर संयुक्त प्रतियोगिता, स्नातकोत्तर प्रशिक्षित शिक्षक, हाई स्कूल पीजीटी, नर्स, लैब असिस्टेंट, वैज्ञानिक सहायक, आईटीआई ट्रेनिंग ऑफिसर्स सहित आदि की परीक्षाएं प्रमुख हैं।
झारखंड के पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार कहते हैं, "जब नियुक्तियों की पॉलिसी भी कानूनी पक्षों पर ध्यान दिए बगैर सिर्फ राजनीतिक मंशा से बनाई जाएगी तो उसका हश्र यही होना है। किसी भी पॉलिसी को बनाने और लागू करने के पहले अन्य राज्यों की नीतियों और संविधान के प्रावधानों को देखना जरूरी है।"
झारखंड सरकार ने जब नियुक्ति की पॉलिसी लाई थी, तभी से यह आशंका जताई जा रही थी कि संवैधानिक नियमों की कसौटी पर यह टिक नहीं पाएगी।
मौजूदा सरकार के पहले रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार पूरे पांच साल चली, लेकिन सरकारी नौकरियों में बहाली के मोर्चे पर उसका प्रदर्शन भी बेहद निराशाजनक रहा। सरकारी विभागों में लगभग साढ़े तीन लाख पद खाली रहे। उनके पांच वर्षों के मुख्यमंत्रित्व काल में जेपीएससी की एक भी सिविल सर्विस परीक्षा की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी।
झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की ओर से ली जाने वाली ज्यादातर नियुक्ति परीक्षाएं भी विवादों में फंसती हैं। जेपीएससी 7वीं से लेकर 9वीं सिविल सर्विस परीक्षा संयुक्त रूप से एक साथ ली गई थी। इस परीक्षा के विज्ञापन के प्रकाशन के साथ विवाद शुरू हुए। फिर पीटी से लेकर मेन्स तक की परीक्षाओं के रिजल्ट तीन-तीन बार संशोधित किए गए।
इस प्रक्रिया में अदालत को भी हस्तक्षेप करना पड़ा, तब कहीं जाकर 252 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जा सकी। इस परीक्षा की प्रक्रिया पूरी करने में 252 दिन लगे। झारखंड में नियुक्तियों की प्रक्रिया किस कछुआ चाल से चलती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य बनने के बाद लगभग 23 वर्षों में इसके पहले जेपीएससी सिविल सर्विस की मात्र छह परीक्षाएं ले सका है, जबकि नियमानुसार अब तक सिविल सर्विस की कम से कम 20 परीक्षाएं पूरी कर ली जानी चाहिए थीं।
इनके अलावा जेपीएससी की ओर से आयोजित विभिन्न स्तरों की एक दर्जन से ज्यादा नियुक्ति परीक्षाओं में गड़बड़ियों की सीबीआई जांच चल रही है।
झारखंड के नियोजनालयों में रजिस्टर्ड बेरोजगार युवाओं की संख्या 8 लाख से भी अधिक है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक बीते नवंबर महीने में झारखंड की बेरोजगारी दर 14.03 प्रतिशत रही। सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर वाले राज्यों की सूची में इस महीने झारखंड का स्थान पूरे देश में छठा रहा।
झारखंड सरकार के अपने आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में युवाओं को रोजगार देने के मामले में वह कितनी फिसड्डी है। राज्य सरकार में करीब 5 लाख 33 हजार पद स्वीकृत हैं, लेकिन फिलहाल कार्यरत कर्मियों की संख्या मात्र एक लाख 83 हजार है। यानी लगभग साढ़े तीन लाख पद खाली हैं। सबसे ज्यादा 1 लाख 40 हजार पद प्राथमिक शिक्षा विभाग में हैं।
इसी तरह माध्यमिक शिक्षा विभाग में 73 हजार और गृह विभाग में 63 हजार पद खाली हैं। विनोबा भावे विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ एससी शर्मा कहते हैं, "झारखंड अलग राज्य बनने के बाद जिन युवाओं ने यह उम्मीद रखी थी कि उनके लिए राज्य में सरकारी नौकरियों के ज्यादा अवसर होंगे, उनके हिस्से बीते 23 वर्षों में नाउम्मीदियां और मायूसियां ही ज्यादा हाथ आई हैं।"