हिन्दी है राष्ट्रीयता की प्रतीक भाषा, फिर उपेक्षा क्यों?

-ललित गर्ग- विश्व हिन्दी दिवस मनाने का उद्देश्य दुनियाभर में फैले हिंदी जानकारों को एकजुट करना, हिन्दी को विश्व स्तर पर स्थापित एवं प्रोत्साहित करना और हिंदी की आवश्यकता से अवगत कराना है। अंग्रेजी भाषा भले ही दुनियाभर के कई देशों में बोली है और लिखी जाती है. लेकिन हिंदी हृदय की भाषा है। विश्व …

Update: 2024-01-08 03:26 GMT

-ललित गर्ग-
विश्व हिन्दी दिवस मनाने का उद्देश्य दुनियाभर में फैले हिंदी जानकारों को एकजुट करना, हिन्दी को विश्व स्तर पर स्थापित एवं प्रोत्साहित करना और हिंदी की आवश्यकता से अवगत कराना है। अंग्रेजी भाषा भले ही दुनियाभर के कई देशों में बोली है और लिखी जाती है. लेकिन हिंदी हृदय की भाषा है। विश्व योग दिवस, विश्व अहिंसा दिवस आदि भारतीय अस्मिता एवं अस्तित्व से जुड़े विश्व दिवसों की शृंखला में विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। ताकि विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा हो तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिले। विश्व हिंदी दिवस पहली बार 10 जनवरी, 2006 को मनाया गया था। आज हिन्दी विश्व की सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली तीसरी भाषा है, विश्व में हिन्दी की प्रतिष्ठा एवं प्रयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन देश में उसकी उपेक्षा एक बड़ा प्रश्न है। सच्चाई तो यह है कि देश में हिंदी अपने उचित सम्मान को लेकर जूझ रही है। राजनीति की दूषित एवं संकीर्ण सोच का परिणाम है कि हिन्दी को जो सम्मान मिलना चाहिए, वह स्थान एवं सम्मान आजादी के अमृत महोत्सव मना चुके राष्ट्र में अंग्रेजी को मिल रहा है। अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं की सहायता जरूर ली जाए लेकिन तकनीकी एवं कानून की पढ़ाई एवं राजकाज की भाषा के माध्यम के तौर पर अंग्रेजी को प्रतिबंधित या नियंत्रित किया जाना चाहिए। आज भी भारतीय न्यायालयों में अंग्रेजी में ही कामकाज होना राष्ट्रीयता को कमजोर कर रहा है। हिन्दी के बहुआयामी एवं बहुतायत उपयोग में ही राष्ट्रीयता की मजबूती है, जीवन है, प्रगति है और शक्ति है किन्तु इसकी उपेक्षा में विनाश है, अगति है और स्खलन है।

हिंदी इस समय विश्व में तेजी से उभरती हुई भाषा है। दुनियाभर में 70 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी भाषा बोलते हैं। यही वजह है कि अंग्रेजी और मंदारिन चीनी भाषा के बाद हिंदी दुनियाभर में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भारत के अलावा मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान और नेपाल आदि में लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। 1975 को महाराष्ट्र के नागपुर में पहला हिंदी विश्व सम्मेलन आयोजित किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुए इस सम्मेलन में उस दौरान 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। बाद में साल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री रहे डॉ.मनमोहन सिंह ने हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की थी। इसके साथ ही इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को आधिकारिक भाषाओं की सूची में शामिल करने के मकसद से भी मनाया जाता है। इस दिन दुनिया भर में स्थित भारत के सभी दूतावासों में विश्व हिंदी दिवस के मौके पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

एथनोलॉग के वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के 22वें संस्करण में बताया गया है कि दुनियाभर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं, इनमें हिंदी विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन गयी है। हिंदी भारत की राजभाषा है। सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व को समेट हिंदी अब विश्व में लगातार अपना फैलाव कर रही है, हिन्दी राष्ट्रीयता की प्रतीक भाषा है, उसको राजभाषा बनाने एवं राष्ट्रीयता के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठापित करने के नाम पर भारत में उदासीनता एवं उपेक्षा की स्थितियां परेशान करने वाली है, विडम्बनापूर्ण है। विश्वस्तर पर प्रतिष्ठा पा रही हिंदी को देश में दबाने की नहीं, ऊपर उठाने की आवश्यकता है। हमने जिस त्वरता से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की दिशा में पहल की, उसी त्वरा से राजनैतिक कारणों से हिन्दी की उपेक्षा भी है, यही कारण है कि आज भी देश में हिन्दी भाषा को वह स्थान प्राप्त नहीं है, जो होना चाहिए। देश-विदेश में इसे जानने-समझने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।

हिन्दी को उसका गौरवपूर्ण स्थान दिलाने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के प्रयत्नों को राष्ट्र सदा स्मरणीय रखेगा। क्योंकि मोदी ने सितंबर 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण देकर न केवल हिन्दी को गौरवान्वित किया बल्कि देश के हर नागरिक का सीना चौड़ा किया। हिन्दी का हर दृष्टि से इतना महत्व होते हुए भी भारत में प्रत्येक स्तर पर इसकी इतनी उपेक्षा क्यों? दुनिया में हिन्दी का वर्चस्व बढ़ रहा है, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं होना, इन्हीं विरोधाभासी एवं विडम्बनापूर्ण परिस्थितियों को ही दर्शाता है। स्वभाषा हिन्दी, राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रीय प्रतीकों की उपेक्षा एक ऐसा प्रदूषण है, एक ऐसा अंधेरा है जिससे ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा। हिन्दी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राजभाषा भी है, यह हमारे अस्तित्व एवं अस्मिता की भी प्रतीक है, यह हमारी राष्ट्रीयता एवं संस्कृति की भी प्रतीक है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद ही हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए 1953 से सम्पूर्ण भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विशेषतः अदालतों में आज भी अंग्रेजी का वर्चस्व कायम रहना, एक बड़ा प्रश्न है। देश की सभी निचली अदालतों में संपूर्ण कामकाज हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में होता है, किंतु उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में यही काम केवल अंग्रेजी में होता है। यहां तक कि जो न्यायाधीश हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएं जानते हैं वे भी अपीलीय मामलों की सुनवाई में दस्तावेजों का अंग्रेजी अनुवाद कराते हैं। आमजन के लिए न्याय की भाषा कौन-सी हो, इसका सबक भारत और भारतीय न्यायालयों को अबू धाबी से लेने की जरूरत है। संयुक्त अरब अमारात याने दुबई और अबूधाबी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अरबी और अंग्रेजी के बाद हिंदी को अपनी अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल कर लिया है। वहां के जनजीवन में हिन्दी का सर्वाधिक प्रचलन है। दुनिया में जितने भी देश महाशक्ति के दर्जे में आते हैं, उनकी शासकीय कार्य एवं अदालतों में मातृभाषा चलती है। यूरोपीय देशों में जैसे-जैसे शिक्षा व संपन्नता बढ़ी, वैसे-वैसे राष्ट्रीय स्वाभिमान प्रखर होता चला गया। रूस, चीन, जापान, वियतनाम और क्यूबा में भी मातृभाषाओं का प्रयोग होता है। लेकिन भारत, भारतीय अदालतें एवं सरकारी महकमें कोई सबक या प्रेरणा लिए बिना अंग्रेजी को स्वतंत्रता के सतहतर साल बाद भी ढोती चली आ रही हैं।

हालांकि इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल ने हिंदी भाषा के भविष्य के संबंध में भी नई राहें दिखाई है। गूगल के अनुसार भारत में अंग्रेजी भाषा में जहाँ विषयवस्तु निर्माण की रफ्तार 19 फीसदी है तो हिंदी के लिए ये आंकड़ा 94 फीसदी है। इसलिए हिंदी को नई सूचना-प्रौद्योगिकी की जरूरतों के मुताबिक ढाला जाए तो ये इस भाषा के विकास में बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के स्तर पर तो प्रयास किए ही जाने चाहिए, निजी स्तर पर भी लोगों को इसे खूब प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त हिंदी भाषियों को भी गैर हिंदी भाषियों को खुले दिल से स्वीकार करना होगा। उनकी भाषा-संस्कृति को समझना होगा तभी वो हिंदी को खुले मन से स्वीकार करने को तैयार होंगे। बात चाहे राष्ट्र भाषा की हो या राष्ट्र गान या राष्ट्र गीत- इन सबको भी समूचे राष्ट्र में सम्मान एवं स्वीकार्यता मिलनी चाहिए। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को चाहिए कि वह ऐसे आदेश जारी करे जिससे सरकार के सारे अंदरुनी काम-काज भी हिन्दी में होनेे लगे और अंग्रेजी से मुक्ति की दिशा सुनिश्चित हो जाये। अगर ऐसा होता है तो यह राष्ट्रीयता को सुदृढ़ करने की दिशा में नया भारत-सशक्त भारत बनाने की दिशा में एक अनुकरणीय एवं सराहनीय पहल होगी। ऐसा होने से महात्मा गांधी, गुरु गोलवलकर और डॉ. राममनोहर लोहिया का सपना साकार हो सकेगा। तभी हिन्दी अपना सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकेगी।

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