बीमा, आयुष्मान, CGHS के बावजूद स्वास्थ्य देखभाल पर अत्यधिक जेब खर्च: MPअरोड़ा

लुधियाना। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने सस्ती स्वास्थ्य सेवा पर एक प्रश्न का उत्तर दिया है। उन्होंने बताया कि हाल ही में राज्यसभा को बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमान 2018-19 के अनुसार, टोटल हेल्थ एक्सपेंडिचर (कुल स्वास्थ्य व्यय) के प्रतिशत के रूप में आउट-ऑफ-पॉकेट एक्सपेंडिचर (ओओपीई) व्यय 48.2% है। वर्ष 2015-16, 2016-17, 2017-18 और 2018-19 के लिए देश में स्वास्थ्य पर ओओपीई प्रतिशत क्रमशः 60.6%, 58.7%, 48.8% और 48.2% है और इसलिए कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत के रूप में ओओपीई में गिरावट की प्रवृत्ति है। अरोड़ा के अनुसार यदि हम बीमा प्रीमियम पर खर्च की गई राशि और स्वास्थ्य पर बेहिसाब खर्च की गई राशि को जोड़ दें तो यह 18% के विश्व औसत की तुलना में लगभग 60% होगी। सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार यह यू.पी में 70% है जो देश में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है।
केंद्रीय मंत्री ने यह जवाब लुधियाना से 'आप' सांसद (राज्यसभा) संजीव अरोड़ा द्वारा पूछे गए सवाल का दिया। अरोड़ा ने स्वास्थ्य सेवा को किफायती बनाने और जेब से होने वाले खर्च को कम करने के लिए मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में पूछा था और स्वास्थ्य देखभाल के लिए किए गए जेब खर्च का राज्य/यूनियन टेरिटरी-वार विवरण मांगा था। अरोड़ा ने आज यहां यह जानकारी देते हुए कहा कि वह मंत्री के जवाब से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि उपलब्ध कराया गया आवश्यक डेटा अपडेट नहीं है। उन्होंने कहा, "केंद्रीय मंत्री को वर्तमान परिदृश्य में चीजों का विश्लेषण करने के लिए नवीनतम और अपडेटेड डेटा प्रदान करना चाहिए।" उन्होंने कहा कि 2018-19 के बाद कई बदलाव हो सकते हैं। उन्होंने पूछा कि आज की आईटी सक्षम दुनिया में दिया गया डेटा इतना पुराना क्यों है। अरोड़ा ने कहा कि केंद्रीय मंत्री ने अपने जवाब में यह भी उल्लेख किया है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ( डीओएचएफडब्ल्यू) के लिए बजट आवंटन 2017-18 में 47,353 करोड़ रुपए से 82% बढ़कर 2023-24 में 86,175 करोड़ रुपए हो गया है। डी.ओ.एच.एफ.डब्ल्यू. स्वास्थ्य बजट में आवंटन बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। इसके अलावा, 15वें वित्त आयोग ने स्थानीय सरकारों के माध्यम से स्वास्थ्य के लिए 70,051 करोड़ रुपए का अनुदान प्रदान किया है। अरोड़ा के अनुसार 2023-24 की यह राशि सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.98% है जबकि विश्व औसत लगभग 7% है।