हाइकोर्ट ने ट्रांसजेंडर महिला को दी सुरक्षा, पढ़ें क्यों

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Update: 2024-05-23 05:36 GMT
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने लिव इन रिलेशन में रह रहे जोड़े जिनमें एक ट्रांसजेंडर महिला है को सुरक्षा प्रदान करने का पुलिस को निर्देश दिया है। जे और एम के नाम से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहना नागरिक के मौलिक अधिकारों में शामिल है।
खंडपीठ ने कहा कि मानव की मूल संरचना से उत्पन्न होने वाली धारणा और व्यक्तित्व की विविधता अलग-अलग मनुष्यों को अलग-अलग विकल्प चुनने के लिए प्रेरित करती है। भले ही वे समान परिस्थितियों में हों। इसलिए स्वतंत्र चुनाव का अधिकार स्वतंत्रता की आत्मा है और किसी भी स्वतंत्र समाज की सबसे प्रिय और प्रमुख विशेषता है। याचिका में कहा गया कि ‘जे’ की जेंडर पहचान के कारण करीबी रिश्तेदारों से उनकी स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा खतरे में है। याचिका में ‘एम’ के पिता पर ‘जे’ के खिलाफ मौखिक और शारीरिक हमला करने का आरोप लगाया गया।
कोर्ट ने कहा कि जब कोई समाज अपने सदस्यों को मौजूदा कानूनों की सीमाओं के भीतर अपने व्यक्तित्व का दावा करने से रोकता है तो यह अपने स्वयं के विकास की प्रक्रिया को बाधित करता है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार स्वतंत्र विकल्प और उनकी गरिमा के संरक्षण की आवश्यकता है। कोर्ट याचियों को सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि यदि कोई व्यक्ति, निकाय या संस्था सुरक्षा की उस रेखा का उल्लंघन करती है, तो उन्हें इस आदेश का सामना करना पड़ेगा। ऐसे व्यक्ति, निकाय या इकाई द्वारा किसी भी निरंतर उल्लंघन पर, स्थापित कानून के अनुसार, अवमानना ​​सहित उचित उपाय/कार्यवाही की जा सकती है। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि मानव होने में स्वाभाविक रूप से व्यक्तित्व शामिल होता है और उसे बढ़ावा मिलता है, चाहे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, या अन्यथा और एक संवैधानिक लोकतंत्र किसी भी मानव समाज में उत्पन्न होने वाले विविध व्यक्तित्व को संरक्षित और सक्रिय रूप से बढ़ावा देने का वादा करता है।
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