गुजरात चुनाव: 27 साल से सत्ता से दूर है कांग्रेस, अब शुरू किया ये काम

Update: 2022-05-26 01:06 GMT

गुजरात। गुजरात चुनाव को अब मुश्किल से 6 महीने का वक्त बचा है. ऐसे में कांग्रेस 2017 के चुनाव में पाटिदारों के भरोसे पर बीजेपी को 99 सीटों पर ही रोकने में कामयाब रही थी. वहीं, कांग्रेस अब 2022 में जीत का लक्ष्य रखते हुए, एक बार फिर अपनी ओबीसी वोट बैंक पर राजनीति करने जा रही है. 2017 में जिस पाटीदार आंदोलन के भरोसे पर कांग्रेस ने 79 सीट हासिल की थी, उससे अलग कांग्रेस अब अपनी पारंपरिक राजनीति करने जा रही है. कांग्रेस ने 80 के दशक में इस्तेमाल की गई KHAM थ्योरी को एक बार फिर चुनावी मैदान में लाना शुरू किया है.

खाम यानी क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम वोट बैंक को एक तरफ़ा जोड़ दिया जाता है, तब सब से ज़्यादा वोट मिलते हैं. वहीं, कांग्रेस अब अपने परंपरागत वोट को वापस हासिल करने की कोशिश कर रही है. 2022 के चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर उसी जातिवादी राजनीति करने जा रही है.

कांग्रेस ने एक दिन पहले ही अहमदाबाद के ग्रामीण क्षेत्र में ओबीसी सम्मेलन किया. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अमित चावड़ा ने कहा कि जब जब ओबीसी समाज ने नेतृत्व लिया है, और यह समाज इकट्ठा हुआ है तब तब इतिहास बना हे. सत्ता पर वही आया है. 1980 में 141 सीटों के साथ सत्ता पर आए थे. 1985 में 182 में से 149 सीटों के साथ कांग्रेस दुबारा से सत्ता में आई थी. एक बार फिर 1980 और 1985 जैसी ताकत और एकता दिखाने की अब जरूरत है. 2022 के चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने एक बार फिर 1980 और 1985 वाली ताकत दिखाने की बात कही है. कांग्रेस अपने ओबीसी वोटर को एक साथ जोड़ रही है. कांग्रेस एक बार फिर क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम वोट बैंक के भरोसे पर 125 सीटें लाने का ख्वाब देख रही है.

27 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है, और यह ख्वाब माधवसिंह सोलंकी की खाम थ्योरी के आधार पर देखा जा रहा है. गुजरात में अगर राजनीति की बात की जाए तो 14% क्षत्रिय 8% दलित 15% आदिवासी और 10% मुस्लिम के आधार पर 1980 में कांग्रेस ने 141 और 1985 में 50 सीट हासिल की थी.

वैसे में 2022 के चुनाव में कांग्रेस वापस वही थ्योरी अपना रही है. इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कांग्रेस ने हाल ही में अपने नेता विपक्ष को बदला है, जिसमें पाटीदार परेश धानानी को हटा कर आदिवासी सुखराम राठवा को बनाया गया. तो वहीं प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी चहरे जगदीश ठाकोर को बनाया गया. साथ ही एक बड़े दलित चहरे की कांग्रेस को गुजरात में जरूरत थी उस कमी को भी जिग्नेश मेवानी ने पूरा कर दिया.


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