अध्यक्ष पद के संभवत जून-जुलाई में होने वाले चुनाव में जी-23 के नेता बगावती तेवर अपनाते हुए चुनाव भी लड़ सकते है.
पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर, यह मुहावरा पुराना है, लेकिन कांग्रेस पार्टी की मौजूदा परिस्थिति पर सटीक बैठ रहा है। पार्टी के पुराने, वफादार सिपाहियों की भाषा बदलने लगी है। कई सवाल मौजूं हैं? क्या कांग्रेस पार्टी टूटेगी या फिर मई-जून में कांग्रेस पार्टी को अध्यक्ष पद के लिए एक से अधिक उम्मीदवार मिलने की संभावना है? क्या राहुल गांधी पार्टी के अगले अध्यक्ष हो सकेंगे? गुलाम नबी आजाद किस रास्ते पर जा रहे हैं।
इन तमाम सवालों पर फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल समेत अन्य की तरफ से न तो कोई प्रतिक्रिया है और न ही इनका 'सचिवालय' कुछ कहना चाहता है।
अपनी-अपनी चिंता का प्रयास हैं, कोई दृष्टि और आदर्श नहीं
कांग्रेस पार्टी के पूर्व महासचिव पार्टी की विचारधारा, पार्टी के नेता और जी-23 या राजबब्बर के शब्दों में गांधी-23 समूह को अच्छी तरह समझते हैं। राजनीति की भाषा में कहा जाए तो उन्हें वर्तमान में कांग्रेस के लगभग सभी नेताओं की क्षमता, राजनीतिक हैसियत का सही आकलन है। वह प्रतिक्रिया में केवल इतना कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में जो हो रहा है, वह अपनी-अपनी चिंता का प्रयास है। इसके पीछे न तो कोई चिंतन है और न कोई दृष्टिकोण। पूर्व महासचिव केवल एक लाइन में बहुत गहरी बात बोल गए हैं। उ.प्र. से आने वाले कांग्रेस पार्टी के एक दूसरे नेता हैं। 2019 में चुनाव हार गए थे, लेकिन पार्टी में जगह बनाए हैं। साफ कहते हैं कि उन्हें गुलाम नबी आजाद की काबिलियत, समझ, कांग्रेसी होने में संदेह नहीं है, लेकिन जो जम्मू में चल रहा है उससे कांग्रेस पार्टी मजबूत नहीं होने वाली है।
अभी सही समय नहीं
सूत्र का कहना है कि यह न तो समय सही है और न ही स्थान। यह गुलाम नबी ही नहीं, भूपेन्द्र हुड्डा, राजबब्बर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल को सोचना चाहिए कि इससे उन्हें व्यक्तिगत रूप से या कांग्रेस पार्टी को क्या हासिल होगा? मुझे तो लग रहा है कि जब पांच राज्यों में चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई है तो हर कांग्रेस के नेता को या तो शांत रहना चाहिए या फिर पार्टी को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए। कांग्रेस महासचिव भक्त चरण दास कहते हैं कि जब सही समय आएगा, तब वह अपनी बात रखेंगे। अभी वह सही समय नहीं आया है।
अपने शीर्ष नेतृत्व की शिकायत और प्रधानमंत्री की तारीफ?
कुछ कांग्रेसियों को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की शिकायत और प्रधानमंत्री की तारीफ की बात समझ में नहीं आ रही है। पार्टी के एक सचिव का कहना है कि कांग्रेस को संगठनात्मक रूप से हमारे नेता कमजोर बता रहे हैं। उन्हें चाहिए कि पिछले छह साल में पार्टी के लिए अपनी उपलब्धियां बताएं। वैसे भी इनमें राज्यसभा वाले ही ज्यादा हैं। दूसरी तरफ जम्मू में वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आत्ममुग्ध होकर तारीफ कर रहे हैं।
समय हिसाब करेगा
कांग्रेस पार्टी के एक अन्य विभाग के प्रमुख का कहना है कि इन्हें थोड़ा धैर्य से काम लेना चाहिए। सूत्र का कहना है कि ऐसा लग रहा है, जैसे इन लोगों ने भाजपा नेताओं की राहुल गांधी को नाकारा साबित करने की बात मान ली है। कोई बात नहीं इनसे समय हिसाब करेगा।
राहुल गांधी दक्षिण, प्रियंका उत्तर में और कांग्रेस का जी-23 जम्मू में
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी दक्षिण भारत में पार्टी को मजबूत बनाने में व्यस्त हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने शनिवार को बनारस में रविदास मंदिर में मत्था टेककर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ विधानसभा चुनाव 2021 की रणनीति बनाई। कांग्रेस पार्टी के वार रूम और राहुल गांधी के कार्यालय में राहुल के पांच राज्यों के दौरे, प्रचार की रणनीति तैयार की जा रही है। प्रत्याशियों के चयन और स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकों के शेड्यूल तय हो रहे हैं। कांग्रेस महासचिव और असम के प्रभारी जितेन्द्र सिंह नई योजना में व्यस्त हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के नेताओं का समूह जम्मू-कश्मीर में है। इन नेताओं ने कल भगवा साफा बांधा था। आज सभी कांग्रेस की परंपरागत सफेद टोपी में नजर आए। शनिवार को भी कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व, संगठनात्मक ढांचे को लेकर सवाल उठाया और रविवार को भी छायावादी अंदाज में नजर आए। दिलचस्प है कि इस पर कांग्रेस पार्टी की तरफ से कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं है।
क्या कांग्रेस इसका संज्ञान लेगी?
कांग्रेस पार्टी के सांसद मनीष तिवारी ने शनिवार को फोन पर संक्षिप्त चर्चा की, लेकिन जम्मू-कश्मीर में जी-23 नेताओं के जमघट के सवाल को टाल गए। पार्टी मुख्यालय 24 अकबर रोड के नेता इस विषय में अभी कुछ नहीं बोल रहे हैं। पार्टी के एक महासचिव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि पार्टी के फोरम पर जो कहना होगा, कहेंगे। कांग्रेस मुख्यालय के एक अन्य विभाग के प्रमुख ने कहा कि इस तरह के प्रयास से पार्टी के संयुक्त प्रयास को झटका लगता है, लेकिन कोई बात नहीं। उन्होंने कहा कि गुलाम नबी आजाद समेत सभी नेता वरिष्ठ हैं। सभी को सबकुछ पता है। इसलिए कुछ कहने की जरूरत नहीं है। साफ है कि कांग्रेस पार्टी अभी न तो कोई प्रतिक्रिया देने के मूड में है और न ही किसी भी तरह की पार्टी विरोधी कार्रवाई का नोटिस देने का विचार है। कांग्रेस का मुख्य फोकस अभी पांच राज्यों के चुनाव की प्रक्रिया पर टिका है।
क्या है गुलाम नबी आजाद की मंशा?
जम्मू-कश्मीर में होने के कारण गुलाम नबी आजाद से कोई बात नहीं हो सकी। पार्टी के वरिष्ठ नेता, राज्यसभा में उपनेता आनंद शर्मा का प्रतिक्रिया देने, चर्चा करने का अपना एक लहजा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा सधे हुए तरीके से चल रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी के वफादारों में गिने जाने वाले ये नेता बहुत संभलकर चल रहे हैं। पार्टी के पूर्व महासचिव का अपनी-अपनी चिंता का प्रयास जैसा इशारा इन्हीं नेताओं की तरफ है।
राजनीति के अंतिम पड़ाव पर हैं ये नेता
इन तीनों नेताओं का राजनीति के अंतिम पड़ाव पर काफी कुछ दांव पर लगा है। आनंद शर्मा का राज्यसभा कार्यकाल खत्म होने के बाद क्या होगा। हरियाणा में चुनाव और चुनाव बाद हुड्डा का प्रभाव कितना रहेगा? समझा जा रहा है कि यह सब एक दबाव की राजनीति के तहत हो रहा है। कपिल सिब्बल की भी स्थिति इससे जुदा नहीं है और इसमें से कई नेताओं की राजनीतिक शैली पर राहुल गांधी समय-समय पर हस्तक्षेप करते रहे हैं। राजबब्बर को भी राहुल गांधी की टीम का सदस्य माना जाता था और राहुल के दबाव में वह उ.प्र. कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए थे।
किसी बड़े तूफान का संकेत पर नेतृत्व को फिक्र नहीं
कुल मिलाकर यह कांग्रेस में आने वाले समय में किसी बड़े तूफान के संदेश जैसा लग रहा है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की खामोशी भी काफी कुछ कह रही है। जैसे लग रहा है कि वह ऐसी स्थिति की बहुत फिक्र नहीं करती।