छत्तीसगढ़ में गौठान बने आर्थिक गतिविधियों के केंद्र

Update: 2023-02-06 06:38 GMT

फाइल फोटो

रायपुर (आईएएनएस)| छत्तीसगढ़ में गौठान आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में बदल रहे हैं। यह ऐसे केंद्र हैं जहां गोबर और गौमूत्र से विविध उत्पाद बनाने बनाए जा रहे हैं तो वहीं आमजन को रोजगार भी मिल रहा है। राज्य में गोधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गांवों में गौठानों का निर्माण तेजी से हो रहा है। गौठानों में पशुधन देख-रेख उपचार एवं चारे, पानी का नि:शुल्क प्रबंध है। राज्य में अब तक 10,743 गांवों में गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है, जिसमें से 9671 गौठान निर्मित एवं शेष गौठान निमार्णाधीन है। गोधन न्याय योजना से तीन लाख 23 हजार 983 ग्रामीण और पशुपालक किसान लाभान्वित हो रहे हैं।
गांव की अर्थ व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए स्थापित की गई गौठानों में गोबर से उत्पाद बनाने की गतिविधियां संचालित है, वहीं दो रुपये किलो की दर से गोबर खरीदकर, जहां खाद, गौकाष्ट सहित अन्य सामग्री का निर्माण हो रहा है, वहीं स्व सहायता समूहांे से जुड़ी महिलाओं को रोजगार भी मिला है।
अब तो गौठान तेजी से ग्रामीण औद्योगिक पार्क के रूप में विकसित होने लगे हैं। गौठानों में विविध आयमूलक गतिविधियों के संचालन के साथ-साथ नवाचार के रूप में गोबर से प्राकृतिक पेंट का उत्पादन भी शुरू हो गया है। वर्तमान में गौठानों में गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने के लिए 13 यूनिटें स्थापित हुई हैं, जिनमें से 12 यूनिटें शुरू हो चुकी है।
गौठानों में गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने के लिए रायपुर जिले में दो, कांकेर, दुर्ग, बालोद, कोरबा, बेमेतरा, सूरजपुर, बस्तर, कोरिया, कोंडागांव, दंतेवाड़ा एवं बीजापुर में एक-एक यूनिट स्थापित की जा चुकी है। कोरिया जिले में स्थापित यूनिट को छोड़कर बाकी यूनिटों में उत्पादन शुरू हो गया है। राज्य के 28 जिलों के 29 चिन्हित गौठानों में गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने की यूनिट स्थापना अंतिम चरण में है। शीघ्र ही इनसे प्राकृतिक पेंट का उत्पादन होने लगेगा।
गौठान के मवेशियों को चारे की कमी न हो इसके लिए राज्य के किसानों द्वारा अपने गांवों के गौठानों को पैरा दान किए जाने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है। राज्य के किसान पैरा को खेतों में जलाने के बजाय उसे गौमाता के चारे के प्रबंध के लिए गौठान समितियों को दे रहे हैं। ऐसे किसान जिनके पास पैरा परिवहन के लिए ट्रैक्टर या अन्य साधन उपलब्ध हैं, वह स्वयं धान कटाई के बाद पैरा गौठानों में पहुंचाकर इस पुनीत कार्य में सहभागिता निभा रहे हैं। गौठान समितियों द्वारा भी किसानों से दान में मिले पैरा का एकत्रीकरण कराकर गौठानों में लाया जा रहा है।
राज्य में गौमूत्र से जैविक कीटनाशक ब्रम्हास्त्र और फसल वृद्धिवर्धक जीवामृत का उत्पादन और उपयोग खेती में होने लगा है। गौठानों में चार रूपए लीटर की दर से अब तक एक लाख 26 हजार 858 लीटर गौमूत्र क्रय किया जा चुका है, जिससे गौठानों में महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा 47 हजार 447 लीटर कीट नियंत्रक ब्रम्हास्त्र और 21 हजार लीटर वृद्धिवर्धक जीवामृत बनाया गया है। खेती में उपयोग के लिए किसानों द्वारा अब तक 59 हजार 557 लीटर ब्रम्हास्त्र और जीवामृत क्रय किया गया है, जिससे गौठानों को 25 लाख 74 हजार 355 रूपए की आय हुई है।
गोधन न्याय योजना के अंतर्गत गौठानों में दो रूपए किलों में गोबर की खरीदी गौठानों में महिला समूहों द्वारा अब तक कुल 27 लाख 56 हजार किं्वटल से अधिक कम्पोस्ट का उत्पादन किया गया है। जिसमें 22 लाख 5 हजार 138 किवंटल वर्मी कम्पोस्ट, 5 लाख 50 हजार 862 किं्वटल से अधिक सुपर कम्पोस्ट एवं 18,924 किं्वटल सुपर कम्पोस्ट प्लस खाद शामिल है। राज्य में गौठानों से 11,885 महिला स्व-सहायता समूह सीधे जुड़े हैं, जिनकी सदस्य संख्या 1,36,123 है। गौठानों में क्रय गोबर से विद्युत एवं प्राकृतिक पेंट सहित अन्य सामग्री का भी उत्पादन किया जा रहा है।
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