पूर्व IPS अफसर नहीं रहे, कैंसर से गई जान

तेज तर्रार अफसर थे.

Update: 2024-10-30 10:16 GMT
लखनऊ: उत्तर प्रदेश पुलिस से डीजी के पद से रिटायर हुए सुबेश कुमार सिंह का आज लखनऊ में निधन हो गया. बीते 1 साल से कैंसर से जूझ रहे सुबेश सिंह ने लखनऊ स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली. उनका अंतिम संस्कार वाराणसी में किया जाएगा. 1984 बैच के IPS अफसर सुबेश सिंह यूपी ही नहीं देश की ब्यूरोक्रेसी के बेहद शानदार, मिलनसार और अपराध पर जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत काम करने वाले अफसर रहे.
प्रदेश में 90 के दशक में जिस श्रीप्रकाश शुक्ला का कहर पुलिसिंग पर सवाल खड़े कर रहा था, पुलिस के लिए चैलेंज बन गया था, उससे निपटने के लिए तत्कालीन सरकार ने तेज तर्रार अफसर सुबेश सिंह को लखनऊ का एसएसपी बनाया था. ये सुबेश सिंह ही थे जिन्होंने माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला को खत्म करने की कसम खाई थी.
दरअसल, बात उस वक्त की है जब सुबेश कुमार सिंह लखनऊ के एसएसपी थे और राजेश पांडे सीओ हजरतगंज. इसी दौरान पुलिस को सूचना मिली श्रीप्रकाश शुक्ला हजरतगंज की जनपथ मार्केट आया हुआ है. जिसपर फौरन पुलिस टीमों ने श्रीप्रकाश की घेराबंदी की. फायरिंग भी हुई लेकिन श्रीप्रकाश एसपी सिटी के पेशकार रहे आरके सिंह को गोली मारकर भाग गया.
रिटायर्ड आईपीएस राजेश पांडे ने अपनी किताब 'वर्चस्व' में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब आरके सिंह के शव को पुलिस लाइन में अंतिम विदाई, सलामी दी जा रही थी तो एसएसपी सुबेश कुमार सिंह कोने में खड़े होकर सिर नीचा किए फफक कर रो रहे थे. दूसरे दिन सुबेश सिंह ने मीटिंग ली थी और तभी उन्होंने कसम खाई कि 'आरके सिंह की मौत का बदला लेना है.. श्रीप्रकाश को छोड़ना नहीं है.'
आपको बता दें कि सुबेश कुमार सिंह उत्तर प्रदेश की आईपीएस लॉबी के उन ताकतवर अधिकारियों में शामिल रहे जिनका रसूख किसी भी सरकार में कम नहीं हुआ. अरुण कुमार झा, सुबेश कुमार सिंह, रजनीकांत मिश्रा, ओपी सिंह, जावेद अहमद यह वह नाम थे जिनकी तूती हर सरकार में बोली. जिनको हर सरकार ने उनके काम के बल पर महत्वपूर्ण पोस्टिंग दी.
उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार आई तो मायावती ने सुबेश कुमार सिंह को एडीजी लॉ आर्डर जैसा महत्वपूर्ण पद दिया. योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो उनको सूचना आयुक्त बनाया गया. 15 अप्रैल 2023 को प्रयागराज में अतीक अहमद और अशरफ हत्याकांड में गठित न्यायिक आयोग में पुलिस अधिकारी के तौर पर भी सरकार ने सुबेश सिंह को शामिल किया था.
सुबेश कुमार सिंह के बैचमेट और दोस्त पूर्व डीजीपी ओपी सिंह लिखते हैं- यह सच है कि जिस चीज की शुरुआत होती है उसका अंत भी होना चाहिए. लेकिन अक्सर ऐसा महसूस होने लगता है कि सक्रिय जीवन के बाद रिटायरमेंट का मतलब सिकुड़ना नहीं बल्कि मानसिक जीवन और दृष्टिकोण का विस्तार करना है. हमारी (सुबेश सिंह से) पहली मुलाकात 1986 में वाराणसी में हुई थी, जब मैं एएसपी के पद पर कार्यरत था और वह एएसपी अंडर ट्रेनी थे, जो पुलिस प्रशिक्षण के लिए मेरे साथ जुड़े थे.
हमने मेरे घर पर अनगिनत बार खाना खाया, जिसमें पुलिसिंग की पेचीदगियों से लेकर जीवन के बारे में विचार-विमर्श तक की बातचीत होती थी. उस वर्ष एक ऐसे बंधन की शुरुआत हुई जो दशकों और पोस्टिंग के बाद भी अटूट रहा, और हर बीतते साल के साथ और गहरा होता गया. सुबेश की सलाह अक्सर मेरे लिए मददगार होती थी. उनकी दोस्ती की शांत ताकत में मुझे मुश्किल समय में आराम और एकजुटता मिली. लखनऊ में हम दोनों को जीवन के लंबे अनुभव मिले, न केवल अपने जीवन के, बल्कि दूसरों के भी. वर्दी से परे, वह एक गर्मजोशी से भरा दोस्त था जिस पर किसी भी ज़रूरतमंद की मदद करने के लिए भरोसा किया जा सकता था.
बकौल ओपी सिंह- हमारा रिश्ता सिर्फ़ पेशेवर नहीं था; यह बहुत ज़्यादा निजी था. उनके रूप में, मुझे एक ऐसा विश्वासपात्र मिला जिसके साथ मैं अपने काम की गंभीरता और जीवन की साधारण खुशियां दोनों साझा कर सकता था. उनकी हंसी, उनका अटूट समर्थन और उनकी हमेशा भरोसेमंद दोस्ती की बहुत याद आएगी. दिवंगत आईपीएस सुबेश कुमार सिंह की आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करें. परिवार को यह असहनीय दुख सहने की क्षमता दे.
Tags:    

Similar News

-->