मां को अंतिम विदाई: पांच बेटियों ने दिया कंधा, छठी बेटी ने बेटा बनकर दी मुखाग्नि
महाराष्ट्र के बीड में मां के निधन के बाद छह बहनों ने मिलकर अपनी जननी की अंत्येष्टि की। उन्होंने परिवार में बेटे की कमी महसूस नहीं होने दी और बेटे ही मुखाग्नि देते हैं, इस परंपरा को भी तोड़ दिया। संकट काल में कोई परंपरा या मर्यादा आड़े नहीं आती, यह जगजाहिर है, जब मौत कोरोना से होती है तो वैसे भी कई स्वजन शव को कंधा देने में भी परहेज करते हैं। ऐसे में बीड़ जिले की शिरूर कासार तहसील के जांब गांव में छह बहनों द्वारा अपनी मां की रस्मो रिवाज से अंत्येष्टि करना प्रशंसनीय कहा जा सकता है। इस परिवार में सिर्फ छह बेटियां हैं।
जांब गांव की लक्ष्मीबाई रामभाऊ कांबळे की 90 साल की उम्र में गुरुवार को वृद्धावस्था के कारण मृत्यु हो गई। उनके परिवार में छह बेटियां व दामाद हैं। कोई बेटा नहीं होने से सवाल उठे कि कौन अंत्येष्टि करेगा, मुखाग्नि कौन देगा? बेटा नहीं है तो मुखाग्नि के लिए किसे कहा जाए। लक्ष्मीबाई के दामाद अंतिम संस्कार कराने के लिए आगे आए, लेकिन उनकी बेटियों ने मना कर दिया। इसके बाद छहों बहनों ने एक स्वर से तय किया कि अंतिम संस्कार का सारा काम वे ही करेंगी। फिर छहों बहनों ने मां को अंतिम यात्रा के लिए सजाया-संवारा। अंतिम यात्रा शुरू हुई तो सभी ने कंधा दिया। यह नजारा देख गांव के लोगों की आंखें भर आईं। जब मुक्तिधाम में जब मुखाग्नि की बारी आई तो उन्हीं में से एक ने यह रस्म भी पूरी कर समाज के सामने मिसाल पेश की।