प्रयागराज: पारिवारिक विवाद के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए थानों में दर्ज होने वाली एफआईआर को लेकर अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए के तहत प्राथमिकी दर्ज होने के बाद कूलिंग की 2 महीने की अवधि समाप्त होने से पहले कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए.
इसमें यह भी कहा गया है कि 2 महीने की इस अविधि के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से वैवाहिक विवादों का हल करने के प्रयास के लिए मामले को तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाना चाहिए. वहीं अदालत ने यह भी कहा है कि केवल उन वैवाहिक विवादों को परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा जो आईपीसी की धारा 498 ए और आईपीसी की अन्य धाराओं के संबंध में होंगे, जिसमें 10 वर्ष से कम का कारावास है लेकिन महिला को कोई शारीरिक चोट नहीं है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह दिशा-निर्देश हापुड़ जिले के पिलखुत्थाने के एक मामले की सुनवाई के दौरान आया, जहां साहिब बंसल की पत्नी शिवांगी बंसल ने अपने पति सास, ससुर, देवर, नंद पर मारपीट करने और यौन उत्पीड़न के साथ ही दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था.
ससुर मुकेश बंसल, सास मंजू बंसल, पति साहिल बंसल द्वारा पुनरीक्षण याचिका पर ये आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने दिया है, जिसमें निचली अदालत में शिकायतकर्ता ने निर्वहन आवेदन को खारिज करने को चुनौती दी गई थी.
दरअसल आरोपी साहिल बंसल की पत्नी में अपने पति और ससुराल वालों पर प्राथिमिकी दर्ज करा कर पति के ऊपर यौन शोषण और क्रूरता करने का आरोप लगाया था. आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने के बाद निचली अदालत में मुकदमा चल रहा था, जिसमें आरोपियों ने आरोपमुक्त करने की अर्जी दाखिल की थी.
हाई कोर्ट ने ससुराल पक्ष के आरोपमुक्त करने वाली याचिका स्वीकार कर ली लेकिन पति की याचिका को खारिज करके निचली अदालत में सुनवाई के लिए पेश होने के लिए कहा है.