एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन...जानें पूरा मामला
पूर्व विधायक के बेटे द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.
मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने नौ साल की एक लड़की की कस्टडी उसकी मां को देते हुए कहा कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन बच्चे की कस्टडी देने का नहीं. न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की एकल पीठ ने 12 अप्रैल को पूर्व विधायक के बेटे द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया. इस याचिका में फरवरी 2023 में पारिवारिक अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसकी बेटी की कस्टडी उसकी पत्नी को दी गई थी.
इस जोड़े ने साल 2010 में शादी की और उनकी बेटी का जन्म साल 2015 में हुआ था. इसके बाद महिला ने दावा किया कि साल 2019 में उसे घर से निकाल दिया गया था. हालांकि, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी अपनी इच्छा से घर छोड़कर चली गई थी. याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत से कहा कि महिला के कई अफेयर हैं. लिहाजा, बच्ची की कस्टडी उसे सौंपना उचित नहीं होगा.
न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि बच्चे की कस्टडी के मामले पर निर्णय लेते समय महिला के एडल्ट्री के आरोपों का कोई असर या संदेह नहीं होगा. अदालत ने कहा कि एक अच्छी पत्नी नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि वह एक अच्छी मां नहीं है. व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह कस्टडी नहीं देने का आधार नहीं हो सकता.
व्यक्ति ने अपनी याचिका में दावा किया कि उसके और उसके माता-पिता के साथ रहना बच्ची के हित में है. वह अपनी मां से खुश नहीं थी और उसके व्यवहार में कुछ बदलाव थे. जयसिंह ने अदालत को बताया कि लड़की के स्कूल के अधिकारियों ने याचिकाकर्ता की मां को ई-मेल लिखकर उनके व्यवहार के बारे में चिंता जताई थी.
हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सवाल उठाया कि जब बच्ची के माता-पिता अच्छी तरह से शिक्षित हैं, तो स्कूल ने दादी से संपर्क क्यों किया. इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता की मां पूर्व विधायक थीं और लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छुक थीं. अदालत ने कहा कि बच्चे के माता-पिता दोनों उपलब्ध हैं, अच्छी तरह से शिक्षित हैं, और वास्तव में बच्चे की मां एक डॉक्टर है. मेरे अनुसार स्कूल अधिकारियों के पास लड़की से संबंधित मुद्दों के बारे में दादी को सूचित करने का कोई कारण नहीं है, जो एक राजनीतिज्ञ हैं.
न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि लड़की केवल नौ वर्ष की थी, जो कि युवावस्था से पहले की उम्र है. ऐसे कस्टडी के मामलों में अदालत को बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि मानना चाहिए. उन्होंने कहा, कि लड़की की देखभाल उसकी नानी ने की और मां के संरक्षण के दौरान उसका शैक्षणिक रिकॉर्ड भी अच्छा था. अदालत ने कहा कि इसलिए मेरे अनुसार पत्नी से बच्ची की कस्टडी लेकर पति को सौंपने का कोई कारण नहीं है.