वाराणसी से चुनाव लड़ेंगी किन्नर महामंडलेश्वर हिमांगी, सुनाया पुराना किस्सा- 'पहचान छिपाकर आश्रम में रहना पड़ा'
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नई दिल्ली: किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर और अखिल भारत हिंदू महासभा की वाराणसी से घोषित अधिकृत प्रत्याशी हिमांगी सखी ने वाराणसी पहुंचकर खास बातचीत के दौरान न केवल अपने चुनाव लड़ने के पीछे की वजह बताई, बल्कि अपने जीवन की अनसुनी बातों को भी शेयर किया.
हिमांगी सखी ने बताया कि उनका जन्म गुजरात के बड़ौदा में हुआ है. उनके पिता राजेंद्र बेचर भाई पंचाल थे. उनकी मां चंद्रकांता रघुवीर कुमार गिरी पंजाबी फैमिली से थी. हिमांगी के मुताबिक, 'मुंबई के होली फैमिली कॉन्वेंट स्कूल में मेरी पढ़ाई हुई. मगर, मेरे पिताजी का हार्ट अटैक से मौत हो गई. फिर मां समेत सभी मुंबई से गुजरात आ गए.'
उन्होंने बताया कि उनके पिता के जीवित रहते घर के हालात बहुत अच्छे थे. पिताजी के जिंदा रहते हम लोग हाई प्रोफाइल और संपन्न परिवार हुआ करते थे. पिता के जाने के बाद हमारी स्थिति दयनीय हो गई. मां एक डॉक्टर थी, लेकिन घर के साथ-साथ उनको काफी कुछ संभालना था. पिताजी के जाने के बाद मेरी मां उन्हीं की याद में खोई रहती थी और वह पागल हो गई. मेरी मां के चले जाने के बाद मेरी छोटी बहन की जिम्मेदारी भी मेरे सिर पर आ गई.
उन्होंने आगे बताया कि मेरे माता-पिता को लगा था कि एक बेटे को जन्म दिया है और वे बड़े प्रसन्न हुए थे. लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि वह बेटा एक नपुंसक है. उन्होंने बताया कि वह अपने आप को मेल बॉडी नहीं मानती हैं, क्योंकि पुरुषों के ऊपर इसका गलत प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने बताया कि हेमंत नाम मेरे माता-पिता के द्वारा दिया गया था. लेकिन मेरे माता-पिता के गुजर जाने के बाद मैंने अपनी बहन की शादी करवाई. उसके ससुराल जाने के बाद मैं कृष्ण भक्ति करने लगी.
उन्होंने बताया कि वह ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाई. लेकिन जहां तक याद है वे पांचवी या छठी कक्षा तक की शिक्षा ली. उन्होंने बताया कि फिल्मों में आने के पीछे कारण यह था कि उनके पिताजी मुंबई में फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर थे. उनकी कंपनी का नाम विश्वकर्मा ओवरसीज था. पेट पालने के लिए फिल्मों में काम किया, लेकिन कभी भी सड़कों पर या सिग्नल पर भीख नहीं मांगी. वे बतौर कलाकार आशुतोष राणा के साथ 'शबनम मौसी' फिल्म में काम किया.
अध्यात्म से जुड़ाव के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह तो बचपन से ही उनके अंदर था. इसी वजह से वह मुंबई छोड़कर ब्रजभूमि वृंदावन चली गई. वहां रहकर शास्त्रों का अध्ययन किया. जिसमें गुरु जी ने काफी मदद की. शास्त्रों के अध्ययन के लिए मुझे अपनी असल पहचान छुपाने पड़ी. क्योंकि उस समय किन्नर का प्रवेश आश्रम में वर्जित हुआ करता था. उन दिनों पहचान छुपाने के लिए एक लूंगी और एक कुर्ता पहनकर आश्रम में ही रहा करती थी.
भगवान की सेवा में होने के अलावा सड़कों पर खड़ी होकर सबको भागवत गीता बाटा करती थी. एक दिन गुरु को मुझ पर शक हुआ और उन्होंने मुझसे पूछ लिया. जिनको मैंने सब कुछ बताया और उन्होंने मुझे मुंबई जाकर अपने लोगों के बीच में ज्ञान का प्रचार करने का निर्देश दिया. इसके बाद मैं मुंबई जाकर प्रचार प्रसार में संलग्न हो गई. उन्होंने बताया कि वह पांच भाषाओं हिंदी, गुजराती, पंजाबी, मराठी और अंग्रेजी में भागवत कथा करती हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के पीछे के मकसद के बारे में हिमांगी सखी ने बताया कि उनके किन्नर समाज के लिए एक सीट सांसद में आरक्षित करना चाहिए. बीजेपी सरकार ने ऐसा नहीं किया. इसलिए मैं वाराणसी क्षेत्र में आपके सामने हुंकार भरने आई हूं.