पर्यावरण व प्रशासनिक विशेषज्ञ बोले, देश में 'राष्ट्रीय नदी ढांचा' तत्काल बनाने की जरूरत

Update: 2022-12-19 04:37 GMT

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नई दिल्ली (आईएएनएस)| पर्यावरण और प्रशासनिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से देश में एक राष्ट्रीय नदी ढांचा बनाने की तत्काल जरूरत पर सहमति व्यक्त की है। यह ढांचा नदी की स्वच्छता, प्रक्रिया और उत्तरदायित्व की निगरानी के लिए मानदंड निर्धारित करेगा। इसके अलावा, सभी विशेषज्ञों के इस पर एकसमान विचार हैं कि केवल जैव रासायनिक मापदंडों के आधार पर नदी की स्वच्छता की दिशा का पता नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने कहा कि नदी में मौजूद जलीय जीवन की स्थिति नदी के स्वास्थ्य का सूचक हो सकती है। इस प्रक्रिया में व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नदी में विकसित विदेशी प्रजातियों की जगह जलीय जीवन की स्वदेशी प्रजातियों को शामिल किया जाना चाहिए।
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जल संरक्षण और नदी कायाकल्प के महत्वपूर्ण पहलुओं पर एक तीन दिवसीय भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें बड़े बेसिनों के संरक्षण के लिए छोटी नदियों के पुनरुद्धार पर विशेष जोर दिया गया। इस सम्मेलन के तीसरे और अंतिम दिन विशेषज्ञों ने अपनी राय सामने रखी।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक जी. अशोक कुमार ने इसके कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया और उम्मीद जताई कि आगे सकारात्मक बदलाव जमीन पर दिखाई देंगे। कुमार ने कहा, "इस विचार-विमर्श ने हमें उन क्षेत्रों की पहचान करने में सक्षम बनाया है, जिन पर हमें काम करना है। अब यह लागू करने और जमीन पर इसके परिणामों को देखने का समय है।"
उन्होंने कहा कि भारत में जल अपनी उच्च स्थिति में है और पिछले 6-7 वर्षो में देश में जल से संबंधित मुद्दों पर बेहतर जागरूकता आई है। जी. अशोक कुमार ने कहा, "मानव जाति के अस्तित्व के लिए जल महत्वपूर्ण है और आखिरकार वह सम्मान और मूल्य प्राप्त कर रहा है, जिसका उसे अधिकार है। हम सभी देख सकते हैं कि अब जिला प्रशासन के स्तर पर भी जल से संबंधित मुद्दों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, यह लगभग एक दशक पहले नहीं था।"
उन्होंने कहा कि 'नमामि गंगे' ने जल प्रबंधन, चक्रीय अर्थव्यवस्था, संसाधनों को फिर से प्राप्ति को सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिससे कि नदियां प्रदूषित न हों। साथ ही, इसने नदी-शहर गठबंधन जैसी पहल की है, जो शहरी नियोजन स्तर पर नदियों के संरक्षण को शामिल करने पर केंद्रित है। कुमार ने इस साल के भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन की विषयवस्तु पर कहा कि इसमें छोटी नदियों के पुनरुद्धार पर काफी चर्चा हुई, जो बड़े बेसिनों के कायाकल्प के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा उन्होंने साइलो को तोड़ने और जल को एक संसाधन के रूप में देखने की जरूरत पर भी जोर दिया।
महानिदेशक ने कहा, "जल की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है और इसके साइलोफिकेशन को तोड़ने की जरूरत है।" उन्होंने नमामि गंगे को एक आत्मनिर्भर मॉडल बनाने के लिए अर्थ गंगा के तहत अपशिष्ट जल और गाद के मुद्रीकरण, प्राकृतिक खेती, आजीविका उत्पादन आदि की दिशा में किए जा रहे कार्यो के बारे में बताया।
स्वच्छ गंगा के प्रोफेसर विनोद तारे ने कहा कि क्षेत्रवार कार्यक्रमों का एकीकरण और समन्वय उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि क्षेत्र विशिष्ट ज्ञान व विशेषज्ञता वाली परियोजनाओं का कार्यान्वयन। उन्होंने बताया कि विचार-विमर्श में इस बात को रेखांकित किया गया कि बड़े बेसिन और राष्ट्रीय स्तर के समन्वय के साथ नीचे से ऊपर की ओर दृष्टिकोण (समुदाय संचालित छोटी नदी बेसिन समितियां) अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
यहां यह भी प्रदर्शित किया गया कि बड़े बेसिन, राष्ट्रीय स्तर के ज्ञान आधारित संगठनों को सभी नदियों की स्वच्छता की स्थिति के बारे में स्थायी रूप से जानकारी एकत्र करने के लिए नेतृत्व करना चाहिए।
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