ईडी केस: आरोपी को बड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को किया रद्द

जमानत मिली थी.

Update: 2025-02-14 03:17 GMT
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए ईडी केस में आरोपी के आत्मसमर्पण का आदेश दिया। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने हाई कोर्ट द्वारा जारी जमानत आदेश को हल्का और लापरवाही भरा बताया। गुरुवार को जारी आदेश में शीर्ष अदालत ने कहाकि पीएमएलए के तहत जमानत के लिए कठोर शर्तें पूरी नहीं की गई थीं। मामला जेडीयू एमएलसी राधाचरण साह के बेटे कन्हैया प्रसाद का है। कन्हैया प्रसाद को ईडी ने अवैध बालू खनन मामले में गिरफ्तार किया था। जमानत रद्द करने के लिए ईडी की याचिका को स्वीकार करते हुए, जस्टिस त्रिवेदी ने कहा आरोपी को आज से एक हफ्ते के भीतर विशेष अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा।
कन्हैया प्रसाद को हाई कोर्ट ने पिछले साल मई में जमानत दी थी। इस फैसले में कहा गया था कि आरोपी ने गवाह के दबाव का सामना किया। साथ ही यह भी कहा गया कि पीएमएलए के तहत जमानत के कठोर प्रावधानों को पूरी तरह लागू करना अनिवार्य नहीं है। कोर्ट इस मामले में स्वविवेक का इस्तेमाल कर सकता है। इसके अलावा कोर्ट ने शीर्ष अदालत के उस फैसले का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि ‘जेल एक अपवाद है और जमानत नियम है’। इसके बाद आरोपी को जेल से रिहा कर दिया गया। इसके बाद ईडी ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
जस्टिस त्रिवेदी ने अपने आदेश में कहाकि पटना हाई कोर्ट ने प्रसाद को सेक्शन 45 की कठोरताओं पर विचार किए बिना, पूरी तरह से बाहरी और अप्रासंगिक विचारों के आधार पर जमानत दी। पीएमएलए के सेक्शन 45 में कहा गया है कि जमानत पर विचार करते समय, अदालत ईडी अभियोजक को जमानत का विरोध करने का अवसर देगी। कोर्ट केवल तभी याचिका को मंजूरी देगी जब उसे विश्वास हो कि मनी लॉण्ड्रिंग का अपराध नहीं हुआ है।
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने फैसला सुनाते हुए कहाकि आदेश में इसका कोई निष्कर्ष नहीं था कि जिसमें यह भरोसा हो कि आरोपी अपराध के लिए दोषी नहीं था। साथ ही यह बात भी नजरअंदाज की गई कि वह जमानत पर रहते हुए कोई अपराध कर सकता है। इन सबके साथ सेक्शन 45 की अनिवार्य आवश्यकता का अनुपालन न करने के चलते आदेश कानून की दृष्टि में अस्थिर और असंगत हो गया।
हालिया समय में मनी लॉण्ड्रिंग के कई आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी है। इन फैसलों में जेल में लंबा समय बिताने, मुकदमे में देरी, प्रक्रियात्मक चूक और जमानत के आधार बने हैं।
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