तलवारें खींची! केंद्र ने IPS अधिकारियों को बुलाया दिल्ली, मुख्यमंत्री ने किया इनकार, जानिए क्या है नियम?

इन अधिकारियों को किया गया दिल्ली तलब.

Update: 2020-12-14 05:29 GMT

केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच तलवारें खींच गई हैं. दरअसल, ममता बनर्जी की अगुवाई वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने से इनकार कर दिया है. ठीक ऐसा ही इनकार 2001 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने किया था, जिसकी गूंज दिल्ली में खूब सुनाई दी थी.

भारत सरकार ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले के बाद तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर भेजने का आदेश जारी किया. ये अधिकारी सुरक्षा के प्रभारी थे. केंद्र प्रतिनियुक्ति पर भेजने से इनकार करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने आईपीएस अधिकारियों की कमी का हवाला दिया है.
जयललिता ने किया था इनकार
केंद्र और राज्य सरकार की ठीक इसी तरह टक्कर 2001 में हुई थी. 13 मई, 2001 को जयललिता ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 29-30 जून की रात को तमिलनाडु पुलिस की सीबी-सीआईडी ने पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के घर पर छापा मारा और करूणानिधि और केंद्र में मंत्री मुरासोली मारन और टीआर बालू को गिरफ्तार कर लिया. यह दोनों अटल सरकार में मंत्री थे.
इसके परिणामस्वरूप राज्यपाल फातिमा बीवी को हटा दिया गया, क्योंकि केंद्र उनकी रिपोर्ट से खुश नहीं थी. तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि राज्यपाल की रिपोर्ट ने आज तमिलनाडु में सही स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं किया है और राज्यपाल संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में पूरी तरह से विफल रहे.
इसके साथ ही छापे में शामिल तीन आईपीएस अधिकारियों की पहचान की गई, जिसमें तत्कालीन चेन्नई पुलिस आयुक्त के. मुथुकरुप्पन, संयुक्त आयुक्त सेबेस्टियन जॉर्ज और उपायुक्त क्रिस्टोफर नेल्सन शामिल थे. तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इन तीनों अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली बुला लिया था.
तब जयललिता ने ममता बनर्जी की तरह उन अधिकारियों को दिल्ली भेजने से इनकार कर दिया था. इसके साथ ही जयललिता ने अन्य मुख्यमंत्रियों को राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए चिट्ठी भी लिखी थी. उन्होंने अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्र-राज्य संबंधों के राज्य संवर्गों के प्रबंधन में परेशान करने वाली प्रवृत्ति के बारे में लिखा था.
कैट ने रोका था गृह मंत्रालय का आदेश
केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच मची रार पर चेन्नई पुलिस के पूर्व कमिश्नर के. मुथुकरुप्पन ने एक अखबार से कहा कि मैं इस बारे में टिप्पणी नहीं कर सकता कि केंद्र सरकार, पश्चिम बंगाल के अधिकारियों के खिलाफ क्या कर सकती है, लेकिन हमने कैट (केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण) से संपर्क किया, जिसने गृह मंत्रालय के आदेश पर रोक लगा दी थी. 2001 के बाद से हममें से किसी ने भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए प्रयास नहीं किया. हमारे खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा कोई अन्य कार्रवाई नहीं की गई.
क्या कहता है नियम
केंद्र सरकार ही आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों को कैडर आवंटित करता है. गृह मंत्रालय आईपीएस कैडर, आईएएस कैडर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग और आईएफएस कैडर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन आते हैं.
नियम के मुताबिक, राज्य सरकार के अधीन तैनात सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ केंद्र कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के नियम 7 में कहा गया है कि यदि अधिकारी राज्य के मामलों के संबंध में सेवा कर रहा है, तो प्राधिकरण कार्यवाही करने और जुर्माना लगाने का अधिकार राज्य सरकार का होगा.
अखिल भारतीय सेवाओं (IAS, IPS, IFS) के एक अधिकारी पर की जाने वाली किसी भी कार्रवाई के लिए, राज्य और केंद्र दोनों को सहमत होने की आवश्यकता है. भारतीय पुलिस सेवा (कैडर) नियम, 1954 के नियम 6 (1) में प्रतिनियुक्ति के बारे में कहा गया है: किसी भी असहमति के मामले में केंद्र सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा और उसे राज्य लागू करेंगी.
इन अधिकारियों को किया गया दिल्ली तलब
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर केंद्र द्वारा मांगे गए अधिकारियों में राजीव मिश्रा (अतिरिक्त महानिदेशक, दक्षिण बंगाल), प्रवीण त्रिपाठी (उप महानिरीक्षक, प्रेसीडेंसी रेंज) और भोलानाथ पांडे (एसपी, डायमंड हार्बर) हैं. इन अधिकारियों को दिल्ली भेजने से ममता सरकार ने मना कर दिया है.
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