गाँव छोड़व नहीं...जंगल छोड़व नहीं...माय माटी छोड़व नहीं...लड़ाई छोड़व नहीं...सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा ये वीडियो

Update: 2021-08-19 08:02 GMT

आज देश के विभिन्न इलाकों में अपनी पहचान, अपनी अस्मिता और अपनी संस्कृति की लड़ाई जोरों से चल रही है| ऐसे में ये गीत उनलोगों के अंदर एक नयी उर्जा प्रदान करती है|

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गांव छोडब नहीं, जंगल छोडब नहीं,
माय माटी छोडब नही लड़ाय छोडब नहीं।

बाँध बनाए, गाँव डुबोए, कारखाना बनाए,
जंगल काटे, खदान खोदे , सेंक्चुरी बनाए,
जल जंगल जमीन छोड़ी हमिन कहा कहा जाए,
विकास के भगवान बता हम कैसे जान बचाए॥

जमुना सुखी, नर्मदा सुखी, सुखी सुवर्णरेखा,
गंगा बनी गंदी नाली, कृष्णा काली रेखा,
तुम पियोगे पेप्सी कोला, बिस्लरी का पानी,
हम कैसे अपना प्यास बुझाए, पीकर कचरा पानी? ॥

पुरखे थे क्या मूरख जो वे जंगल को बचाए,
धरती रखी हरी भरी नदी मधु बहाए,
तेरी हवस में जल गई धरती, लुट गई हरियाली,
मछली मर गई, पंछी उड़ गए जाने किस दिशाएं ॥

मंत्री बने कंपनी के दलाल हम से जमीन छीनी,
उनको बचाने लेकर आए साथ में पल्टनी
हो… अफसर बने है राजा, ठेकेदार बने धनी,
गाँव हमारी बन गई है उनकी कॉलोनी ॥

बिरसा पुकारे एकजुट होवो छोड़ो ये खामोशी,
मछवारे आवो, दलित आवो, आवो आदिवासी,
हो खेत खालीहान से जागो, नगाड़ा बजाओ,
लड़ाई छोड़ी चारा नही सुनो देशवासी॥

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