देश में सभी धर्मों के पूजा स्थलों के लिए एक समान कानून की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
सभी धर्म के पूजा स्थलों के लिए एक समान कानून बनाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
सभी धर्म के पूजा स्थलों के लिए एक समान कानून बनाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। अभी वर्तमान में हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के बड़े पूजा स्थलों पर देश की विभिन्न राज्य सरकारों का नियंत्रण होता है, जबकि मुस्लिम और ईसाई समुदाय के धार्मिक स्थलों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से धार्मिक आधार पर विभिन्न पूजा स्थलों में भेदभाव को समाप्त कर सबके लिए एक जैसा दिशा-निर्देश देने, या केंद्र सरकार को सबके लिए एक समान कानून बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अमर उजाला से कहा कि वर्तमान में देश के 18 राज्यों ने हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के चार लाख पूजा स्थलों पर नियंत्रण कर रखा है। इन मंदिरों से होने वाली आय का एक बेहद छोटा हिस्सा इन्हें देकर शेष पूरा पैसा राज्य सरकारों के नियंत्रण में चला जाता है। लेकिन इसी बीच मुस्लिम और ईसाई धर्म के पूजा स्थलों पर किसी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है।
हिंदू, जैन और सिख धर्मों के पूजा स्थलों पर नियंत्रण के लिए इन राज्यों में 30 से ज्यादा कानून बनाए गए हैं। इनके द्वारा मंदिरों की चढ़ावे से होने वाली आय, मंदिरों की संपत्ति और रखरखाव से संबंधित कानून बनाए गए हैं। जबकि अन्य धर्मों के कानूनों के लिए इसी प्रकार की बात नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट में इन सभी कानूनों को चुनौती दी गई है।
'सेकुलर स्टेट का काम मंदिर संचालन नहीं'
याचिका के प्रमुख वादी स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि किसी सेकुलर स्टेट का काम मंदिरों का संचालन करना नहीं होता है। सेकुलर स्टेट का काम जनता की भलाई के लिए काम करना होता है। अगर कोई राज्य धार्मिक आधार पर काम करती है या धार्मिक आधार पर भेदभाव करती है तो इससे राज्य की सेकुलर होने की मूल भावना पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है।
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा कि अगर सरकार मंदिरों का नियंत्रण करना चाहती है तो उसे इसके संदर्भ में पूरे देश के सभी धर्मों के पूजा स्थलों के बारे में एकरूपता लानी चाहिए।
विहिप कर चुका है ये मांग
इसके पहले विश्व हिंदू परिषद (विहिप) इस मुद्दे को उठा चुका है। विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने मांग की है केंद्र सरकार देश के चार लाख से ज्यादा धर्म स्थलों-मठों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाना चाहिए। इसके लिए केंद्रीय स्तर पर कानून बनाने की भी मांग की गई है जिससे सभी धर्मों को एक समानता के सिद्धांत पर लाया जा सके।
'अंग्रेजों ने पैसा लूटने के लिए बनाया था कानून'
विहिप के ज्वाइंट जनरल सेक्रेटरी डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि हिंदू धर्म स्थलों से होने वाली आय को हथियाने के लिए अंग्रेजों ने गुलामी के समय यह कानून बनाया था। एक तरफ तो वे इन मंदिरों से होने वाली आय को हासिल कर रहे थे, दूसरी तरफ ईसाई और मुस्लिम धर्म के पूजा स्थलों से कोई आय न लेकर समाज में धार्मिक तनाव भी पैदा कर रहे थे।
दुर्भाग्य है कि देश के आजाद होने के बाद भी इन कानूनों में कोई बदलाव नहीं किया गया। लेकिन अब उचित समय है कि सभी धर्मों को एक समान कानून के अंतर्गत लाया जाए जिससे किसी भी धर्म को अपने साथ भेदभाव का अनुभव न हो।
मंदिरों पर नियंत्रण के पीछे सरकारें उनके बेहतर प्रबंधन और रखरखाव का तर्क देती रही हैं। लेकिन हिंदू धर्माचार्यों का आरोप है कि सरकारें केवल बड़े मंदिरों को ही अपने नियंत्रण में लेती हैं जबकि वे उन छोटे मंदिरों की कोई परवाह नहीं करतीं जिससे उसे कोई आय नहीं होती।
जबकि इसी दौरान स्वामी नारायण संप्रदाय के मंदिर, इस्कॉन के मंदिर और झंडेवालान मंदिर जैसे बड़े मंदिर संस्थानों ने सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के बाद भी रखरखाव, स्वच्छता और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में बेहतर आदर्श पेश किया है।