दिल्ली HC ने राकेश अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ याचिका SC में दायर याचिका का कॉपी-पेस्ट पर याचिकार्ता को चेताया
दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी राकेश अस्थाना (Rakesh Asthana) की दिल्ली पुलिस कमिश्नर (Delhi Police Commissioner) के पद पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को गुरुवार को 'कॉपी-पेस्ट' बताया और ऐसा करने वाले को चेतावनी दी कि वह भविष्य में ऐसा कुछ नहीं करें। हाईकोर्ट ने इस पर भी नाराजगी जताई कि याचिकाकर्ता के वकील याचिका में लिखी बातों को समझा पाने में असमर्थ थे, जोकि कथित रूप से नकल की गई थीं।
चीफ जस्टिस डी.एन. पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने कहा कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में दायर दो याचिकाओं से पूरी की पूरी याचिका नकल की गई है, यहां तक कि अर्द्धविराम और पूर्णविराम भी। बेंच ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को कोई आवेदन करना है तो वह स्वतंत्र रूप से करें। बेंच ने कहा कि जिस वकील की याचिका से इसे नकल किया गया है वह अपने मुकदमे की पैरवी करने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
हाईकोर्ट अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ वकील सद्रे आलम की जनहित याचिका और गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की हस्तक्षेप अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। इस संगठन की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने आवेदन दिया है। इसी संगठन ने अस्थाना की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी है।
वकील प्रशांत भूषण की अर्जी से की गई नकल
बेंच ने कहा कि आपने यह सारी बातें एक वकील (प्रशांत भूषण) की अर्जी से नकल की हैं। अगर आप नकल कर रहे हैं तो आप पांच फीसदी करते हैं और 95 फीसदी अपनी ओर से लिखते हैं। यहां 97 फीसदी नकल है, यहां तक कि अर्द्धविराम और पूर्णविराम तक भी। इस बार हम कुछ नहीं कर रहे हैं, लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं करें।
इस पर याचिका दायर करने वाले की ओर से पेश हुए वकील बी.एस. बग्गा ने कहा कि मुझे नहीं पता कि यह आरोप कहां से लग रहे हैं। इससे पहले, प्रशांत भूषण ने कहा था कि आलम की याचिका दुर्भावनापूर्ण है और सुप्रीम कोर्ट में लंबित उनकी याचिका की यह पूरी तरह से नकल है।
केन्द्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी भूषण से सहमति जताई और कहा कि नकल की इस प्रवृत्ति की निंदा की जानी चाहिए। सुनवाई के दौरान जब बग्गा ने अंतर-कैडर स्थानांतरण के संबंध में अपना पक्ष रखना शुरू किया तो चीफ जस्टिस ने उनसे सवाल किया कि 'सुपर टाइम स्केल' से उनका क्या तात्पर्य है।
अदालत ने उनसे बार-बार यही सवाल किया, लेकिन वह समझाने में असफल रहे और इसके लिए समय देने का अनुरोध किया। बेंच ने कहा कि हम आपसे अंतिम बार पूछ रहे हैं, हम याचिका खारिज कर देंगे। समस्या यह है कि आपने याचिका के मेमो से इसे नकल किया है। बिना समझे आप सिर्फ पढ़ रहे हैं। अब हम अतिरिक्त स्पष्टीकरण चाहते हैं। 'सुपर टाइम स्केल क्या है?
आप भलमनसाहत में यह कर रहे हैं, लेकिन यह एक हथियार बन गया है
भूषण को संबोधित करते हुए बेंच ने कहा कि आप लोग अपनी प्रतियां हर जगह वितरित करते हैं। ऐसा मत कीजिए। वह यह नहीं जानते कि सुपर टाइम स्केल क्या है। आप भलमनसाहत में यह कर रहे हैं, लेकिन यह एक हथियार बन गया है। मैंने यह सवाल जानबूझ कर पूछा। हमें इनसे क्या सहयोग मिलेगा? दिल्ली हाईकोर्ट में क्या हमें इस तरीके से सहयोग मिल रहा है।
बेंच ने आदेश लिखाते हुए कहा कि मामले में पेश वकील ने अंतर-कैडर स्थानांतरण पर बहस शुरू की। वह बगैर किसी स्पष्टीकरण के पैराग्राफ पढ़ रहे थे। जब सुपर टाइम स्केल शब्द पढ़ा गया तो हमने एक सवाल पूछा कि क्या वह इसका स्प्ष्टीकरण दे सकते हैं या नहीं, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ऐसा करने में असमर्थ थे कि सेवा मामलों में सुपर टाइम स्केल का मतलब क्या है।
वकील ने समय देने का अनुरोध किया और अदालत ने इसे आगे सुनवाई के लिए 27 सितंबर को सूचीबद्ध कर दिया। हाईकोर्ट ने इससे पहले याचिका पर केन्द्र और अस्थाना को नोटिस जारी किए थे। याचिकाकर्ता ने अस्थाना को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर नियुक्त करने और अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति देने और सेवाकाल में विस्तार निरस्त करने का गृह मंत्रालय का 27 जुलाई का आदेश निरस्त करने का अनुरोध किया था।