आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने संबंधित नागरिकों और विशेषज्ञों के साथ शनिवार को 'इमीनेट हिमालयन क्राइसिस' पर एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया और हिमालय को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने के लिए एक मसौदा प्रस्ताव पारित किया। इसमें कहा गया है कि जोशीमठ के डूबने से हमारे इतिहास और समृद्ध संस्कृति और विरासत के हिस्से ढहने के कगार पर हैं। गोलमेज बैठक में कहा गया कि पूरे उत्तराखंड में विकास के नाम पर निर्माण कार्य और प्रकृति से छेड़छाड़ लगातार हो रहा है।
बड़े पैमाने पर वनों की कटाई के कारण पहाड़ों पर शायद ही कोई हरियाली बची है और इस वजह से, इन सबसे नए वलित पहाड़ों में भूस्खलन एक आम विशेषता बन गई है। इसमें कहा गया- यह समझना होगा कि वर्तमान पीढ़ी और सरकार की न केवल हिमालय क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, बल्कि इस भूमि पर रहने वाले उन सभी लोगों के भविष्य की भी जिम्मेदारी है, जो इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियों पर निर्भर हैं। केंद्र और राज्य दोनों की वर्तमान सरकारों को अत्यंत संवेदनशीलता का परिचय देना होगा, अन्यथा आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।
इसमें कहा गया है कि यह पहली बार नहीं है जब हिमालयी क्षेत्र में इस तरह की त्रासदी हुई है। इससे पहले साल 2021 में भी तपोवन बांध के मजदूरों समेत 200 लोगों की चमोली की बाढ़ में मौत हो गई थी। इससे पहले 2013 में भी भारी बारिश के बाद क्षेत्र में गंगा, यमुना और उसकी सहायक नदियों में आई बाढ़ के कारण बड़ी संख्या में पुल, सड़कें और इमारतें ढह गए थे। हाल के वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में इस तरह की आपदाओं की संख्या में वृद्धि हुई है।
चर्चा हुई कि इस तरह के नाजुक इलाके में अनियंत्रित निर्माण कार्य जोशीमठ के ढहने और हाल की आपदाओं का कारण है। सम्भावित समाधानों की चर्चा करते हुए कहा, ''अपेक्षित प्रभाव का आकलन किए बिना विकास के नाम पर विनाशकारी निर्माण आज और पहले की त्रासदियों का कारण बन रहा है। इस अंधाधुंध निर्माण पर रोक लगाकर ही इस संकट से बचा जा सकता है। लेकिन अलग-अलग जगहों पर बिना कानून बनाए निर्माण कार्य नहीं रोका जा सकता है।