नई दिल्ली: ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शृंगार गौरी की पूजा की मांग वाली अर्जी को सुनवाई योग्य माने जाने के वाराणसी कोर्ट के फैसले से हिंदू संगठनों में खुशी का माहौल है। विश्व हिंदू परिषद ने अदालत के फैसले को पहली बाधा पार होने वाला बताया है। वीएचपी ने कहा कि इस फैसले से ज्ञानवापी परिसर पर हिंदू श्रद्धालुओं के दावे की पहली बाधा खत्म हो गई है। वीएचपी लंबे समय से काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में बनी ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्णजन्मभूमि से सटे ईदगाह पर हिंदुओं के हक की बात कर रही है। वीएचपी का कहना है कि दोनों मंदिरों को तोड़कर ही इनका निर्माण किया गया था। इसलिए इन्हें वापस हिंदुओं को सौंपा जाए।
वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, 'वाराणसी की अदालत ने अब यह फैसला लिया है कि इस मामले में 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट लागू नहीं होगा। दूसरे पक्षों के आवेदन को खारिज कर दिया गया है। पहली बाधा इस मामले में पार हो गई है। अब अदालत में इस केस की मेरिट के आधार पर सुनवाई की जाएगी।' आलोक कुमार इससे पहले भी कहते रहे हैं कि ज्ञानवापी मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट लागू नहीं होता है। उनका कहना है कि यहां शिवलिंग का मिलना इस बात का प्रमाण है कि दशकों से मंदिर यहां रहा है। बता दें कि 1991 का कानून यह कहता है कि किसी भी धार्मिक स्थल का 15 अगस्त, 1947 यानी देश की आजादी तक जो स्वरूप रहा है, वही माना जाएगा।
उसके बाद यदि उसके स्वरूप में कोई बदलाव किया जाता है और उसके आधार पर दावेदारी की जाती है तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। हिंदू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदू मंदिर होने के सूबत हैं और यह सदियों से हैं। ऐसे में 1991 का ऐक्ट इस परिसर पर लागू नहीं होता। वीएचपी की ओर से कई बार यह कहा जाता रहा है कि इस ऐक्ट के दायरे में मथुरा और काशी के मामले नहीं आते। आलोक कुमार ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि अंत में जीत हमारी ही होगी। न्याय और सत्य हमारे साथ हैं।' उन्होंने कहा कि यह धार्मिक और आध्यात्मिक मामला है। इसलिए इस मामले में किसी निर्णय को जीत या हार के तौर पर नहीं देखना चाहिए। शांति बनाकर रखना जरूरी है।