कृषि विश्वविद्यालय की जमीन पर संकट
धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के बाद अब कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के अस्तित्त्व पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। लैंड ग्रांट पैटर्न के तहत 1978 में अस्तित्त्व में आए पालमपुर स्थित चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय की भूमि को अब तक आधा दर्जन संस्थानों को बांटा जा चुका है। कुछ को भूमि दे दी …
धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के बाद अब कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के अस्तित्त्व पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। लैंड ग्रांट पैटर्न के तहत 1978 में अस्तित्त्व में आए पालमपुर स्थित चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय की भूमि को अब तक आधा दर्जन संस्थानों को बांटा जा चुका है। कुछ को भूमि दे दी गई है और कुछ को देने की तैयारी चल रही है। ऐसे में नार्थ वेस्ट्रन हिमालयन रिजनल सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी बनाने का सपना भी कभी पूरा नहीं हो पाएगा। इसके लिए भी कम से कम पांच हजार हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता रहती है। हिमाचल प्रदेश से वर्ष 2018-19 में सेंट्रल एग्रीकल्चल यूनिवर्सिटी बनाने का केंद्र सरकार को प्रस्तावित कन्सेप्ट नोट भेजा जा चुका है। इसमें हिमाचल के साथ उत्तराखंड कृषि विवि और जे एंड के कृषि विवि का भी दावा है। एग्रीकल्चर साइंटिस्ट फोर्म ने भी इस प्रस्ताव को विभिन्न माध्यमों से केंद्र सरकार को भेजा है।
जिससे हिमाचल कृषि विवि को रिसर्च विश्वविद्यालय के रूप में देश के अग्रणी विवि में लाया जा सके, लेकिन जिस तरह से सियासी हितों को साधने के लिए कृषि विवि पालमपुर के भू-भाग को समाप्त किया जा रहा है, उससे इसके मूल भविष्य पर भी संकट गहरा सकता है। कृषि विवि से अब तक दी गई भूमि के हालात को देखें, तो डिग्री कालेज बनाने को 123 कनाल भूमि दी जा चुकी है। इसी तरह साइंस म्यूजियम बनाने को 50 कनाल भूमि, आईजीएफआरआई यानि इंडियन ग्रास लैंड फोरज रिसर्च इंस्टीटयूट को 111 कनाल भूमि व विद्युत बोर्ड को दो कनाल भूमि दी गई है, जबकि हेलिपोर्ट बनाने को 83 कनाल भूमि दी जा रही है और अब टूरिज्म विलेज बनाने को भी करीब 2900 कनाल भूमि देना प्रस्तावित की गई है। ऐसे में विवि के पास पांच हजार में से करीब 280 हेक्टेयर भूमि ही रह जाएगी। प्रदेश के विश्वविद्यालयों के प्रति सरकार के ऐसे रवैये से खफा शिक्षाविद और बुद्विजीवी कह रहे हैं कि प्रदेश में विजनरी लोगों से ऐसे मामलों में कोई चर्चा नहीं करता है। इसका खामियाजा भविष्य की पीढिय़ों को भुगतना पड़ेगा।