मुंबई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एमजी देशपांडे ने मंगलवार को वडोदरा में 2002 के बेस्ट बेकरी दंगों के मामले में गिरफ्तार किए गए दो लोगों को उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत के अभाव में बरी कर दिया है. इन दंगों में 14 लोग मारे गए थे. अदालत ने दो आरोपी हर्षद सोलंकी और मफत गोहिल को बरी किया है. इन्हें साल 2013 में गिरफ्तार किया गया था. यह दोनों अपनी गिरफ्तारी से पहले 11 साल तक फरार रहे थे. इनके खिलाफ मुकदमे का दूसरा पार्ट साला 2019 में शुरू हुआ था. गोधरा कांड के तीन दिन बाद 1 मार्च 2002 को वड़ोदरा की बेस्ट बेकरी पर हमला किया गया था, लूटपाट की और इसे आग के हवाले कर दिया था. इस हमले में भीड़ ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी. गुजरात पुलिस ने हत्या के आरोप में 21 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, लेकिन सभी आरोपियों को 2003 में बरी कर दिया गया था.
इसके तुरंत बाद, पीड़ितों में से एक जाहिरबी शेख ने एक एनजीओ के साथ फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आग्रह किया कि निचली अदालत और गुजरात हाईकोर्ट के आदेशों और फैसलों को रद्द कर दिया जाना चाहिए. साल 2004 में याचिका को स्वीकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने फिर से जांच और पुनर्विचार का आदेश दिया था, और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया था. मुंबई मुकदमे में सेवानिवृत्त जस्टिस अभय थिप्से (तत्कालीन सत्र न्यायालय के न्यायाधीश) ने 2006 में नौ लोगों को दोषी पाया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई और आठ को बरी कर दिया गया. इसके बाद, 2012 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने घटना के चश्मदीदों की गवाही पर भरोसा करते हुए पांच को बरी कर दिया और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि की.
हालांकि गोहिल और सोलंकी ने वड़ोदरा की अदालत में पहले मुकदमे का सामना किया था, लेकिन वे मुंबई में फिर से सुनवाई के दौरान फरार हो गए थे. गिरफ्तारी के बाद दोनों ने यह दावा करते हुए जमानत के लिए आवेदन किया कि उन्हें पुनर्विचार के बारे में पता नहीं था, लेकिन उनकी दलीलों को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उन पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत थे. मुकदमे के दौरान, उनके वकील प्रकाश सालसिंगीकर ने उनके खिलाफ पहले के मुंबई मुकदमे के सबूतों के इस्तेमाल के खिलाफ जोरदार तर्क दिया. मामले के दो अन्य आरोपी और मुकदमे का सामना कर रहे थे, मामले की लंबितता के दौरान उनकी मौत हो गई थी.