कोरोना की मार, रिसर्च स्कॉलर चले रहे जूस की दुकान, कही ये बात

Update: 2021-06-23 06:57 GMT

कोई TET पास युवा टायर पंक्चर की दुकान चला रहा, कहीं पढ़ी-लिखी लड़कियां धान लगा रही हैं. कहते हैं कि काम करने में शर्म नहीं करनी चाहिए, लेकिन सच्चाई तो यही है कि सभी चाहते हैं कि अगर वो अटूट मेहनत से पढ़ाई करके डिग्री लें तो उन्हें एक अच्छी प्रतिष्ठित नौकरी मिले.

अब पंजाब के संगरूर के लहरागागा में जूस की दुकान चला रहे पंजाबी यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर का ही उदाहरण लीजिए. यूजीसी नेट पास करके अब वो जूस की दुकान चलाने को मजबूर है. यूजीसी नेट पास इस स्कॉलर को यह काम करने के लिए कोरोना ने मजबूर किया है.
जूस की दुकान चलाने वाले इस स्कॉलर ने कहा कि मुझे अब जूस की दुकान चलाने पर पता चला कि रेहड़ी लगाने वालों या जूस की दुकान पर निर्भर लोगों को कितना मुश्किल है घर चलाना.
बता दें कि संगरूर के लहरागागा का पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में पीएचडी की डिग्री कर रहा यूजीसी नेट पास युवा भी हालात के चलते अब उन अनपढ़ प्रवासी मजदूरों या रेहड़ीवालों की श्रेणी में शामिल हो गया है. वजह सरकारों की अनदेखी और कोरोना से बिगड़े हालात दोनों हैं. जब कोरोना के दौर में कोई ढंग की जॉब नहीं मिली तो इस युवा ने जूस की छोटी दुकान खोल ली है.
मीडियाकर्मियों ने जब इस युवा किसान पुत्र चेतन शर्मा से इतनी बड़ी क्वालिफिकेशन के बाद इस तरह का काम करने की वजह पूछी तो एक एक करके उसने सब कुछ सामने रख दिया. उसने बताया कि किस तरह मेहनत से पढ़ाई की और जब नौकरी लगने के किनारे ही था कि कोरोना आ गया.
घर के हालातों को देखते हुए उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर फार्मर जूस पॉइंट के नाम से दुकान खोल ली. उसने यह भी बताया कि टीईटी पास युवा टायर पंक्चर की दुकान चला रहे या पढ़ी- लिखी लड़कियां धान लगा रही हैं, काम करने में शर्म नहीं करनी चाहिए.
चेतन की दुकान की खासियत यह है कि इसमें घर में पड़े हल को काउंटर बनाया है. वहीं तेल के खाली ढोलों को बैठने की मेज बनाया गया है और दुकान में किताबें रख कर पहली बार प्रयास किया गया है लोग जूस का ऑर्डर देने के बाद फेसबुक व्हाट्सएप के स्थान पर एक बार किताबों में रुचि लें.
चेतन के दोस्त अवतार सिंह ने कहा कि दुकान को देखकर कई लोग चेतन की दुकान की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. वे इसकी सराहना कर रहे है. वहीं सरकारों को आड़े हाथ भी ले रहे हैं. यहां आने वाले ग्राहक कहते हैं कि सरकारें पहले तो बड़े-बड़े वायदे करती हैं लेकिन बाद में युवाओं को इसी तरह सड़कों पर आकर रोना पड़ता है. हरेक को नौकरी देने का वायदा करने वाली सरकार कुछ नहीं करती सिवाय नेताओं के बच्चों को नौकरी देने के.


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