कोरोना कोहराम 2.0: संकट किस हद तक बढ़ चुका है, कैसे कंट्रोल होगी ये लहर? जाने सब कुछ
इस साल 2 फरवरी को जब देश में कोरोना के केस 8,635 दर्ज किए गए तो लोगों को उम्मीद जगने लगी थी कि महामारी खत्म होने को है. यहां तक कि सरकारें पैनडेमिक की बजाय एनडेमिक का नारा देने लगी थीं. संकट खत्म मानकर सबकुछ खोल दिया गया, लोग घरों से निकल पड़े, सोशल डिस्टेंसिंग केवल प्रतीकात्मक दिखने लगी, मास्क मुंह और नाक से नीचे खिसककर गले तक आ गए. शादी समारोहों, पार्टियों में भीड़ दिखने लगीं, चुनावी रैलियों में भीड़ बढ़ने लगी, स्कूल-दफ्तर खोल दिए गए. सिनेमा हॉल, मॉल्स, पर्यटन स्थल गुलजार होने लगे. और फिर अचानक मार्च खत्म होते-होते देशभर में और दुनियाभर में कोरोना की दूसरी लहर का शोर लौट आया. अप्रैल की शुरुआत से ही महामारी का दौर ऐसा लौटा कि पिछली लहर को काफी पीछे छोड़ गया.
देश में 2 फरवरी के मिनिमम केस के ठीक 70 दिन बाद कोरोना वायरस संक्रमण सारे रिकॉर्ड तोड़ चुका है. भारत में कोरोना की रफ्तार इतनी तेज़ है कि 12 अप्रैल को देश में कुल 1.69 लाख मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि 900 से अधिक लोगों की मौत हुई है. अकेले दिल्ली में ही 10 हजार से अधिक केस जबकि महाराष्ट्र में 55 हजार के पार नए मरीज रोज सामने आ रहे हैं. 30 जनवरी 2020 को देश में कोरोना का पहला केस सामने आया था. 15 महीने में इस महामारी से 1 करोड़ 34 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं जबकि 1 लाख 70 हजार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. देश में अभी 11 लाख से भी अधिक एक्टिव मरीज हैं.
संकट किस हद तक बढ़ चुका है?
देश में कोरोना विस्फोट की स्थिति से निपटने में संसाधन कम पड़ रहे हैं. शहर-शहर अस्पतालों में बेड्स, ICU बेड्स, वेंटिलेटर की कमी देखी जा रही है तो श्मशान घाटों पर लाइनें लग रही हैं. कोरोना से निपटने में जरूरी रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए घंटों लोगों को लाइनों में लगते देखा जा रहा है. आखिर गया हुआ कोरोना संकट कैसे लौट आया. कोरोना की दूसरी लहर इतनी खतरनाक क्यों हैं? और कब तक राहत की उम्मीद है? इन सब सवालों के जवाब आज हर कोई जानना चाहता है. हम आपको बताते हैं कि एक्सपर्ट इस हालात को कैसे देखते हैं और हालात किस दिशा में जाते दिख रहे हैं.
कोरोना बदल रहा रूप, बच्चों में भी फैल रहा इंफेक्शन
पिछली वेव में कोरोना संक्रमित लोगों में अधिकांश युवा लोग असिम्प्टोमैटिक या माइल्ड सिम्प्टोमैटिक थे और ज्यादा संक्रमित नहीं हो रहे थे. बच्चों में इनफेक्शन बहुत कम था. नई लहर में बच्चों में भी संक्रमण फैल रहा है. गंभीर मसला ये है कि जिन यंग लोगों को कोरोना हो रहा है बहुतों में कोई सिम्पट्म नहीं है और जिनमें लक्षण हैं वो कई बार टेस्ट होने के बाद भी निगेटिव आ रहे हैं.
असिम्प्टोमैटिक केस भी बढ़ा रहे हैं खतरा
कोरोना की इस लहर का एक बड़ा फैक्टर हैं असिम्प्टोमैटिक केस. यानी ऐसे मरीज जिनमें संक्रमण तो हैं लेकिन संक्रमण के लक्षण नहीं दिख रहे. इनके मामले सीरो सर्वे या रैंडम टेस्ट में पकड़ में आ रहे हैं. मुंबई में बीएमसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च से शुरू हुई कोरोना की दूसरी लहर में 80 फीसदी से अधिक केस असिम्प्टोमैटिक हैं. इन मामलों में ज्यादा खतरा इसलिए है कि संक्रमण की स्थिति गंभीर होने के बाद मरीज अस्पतालों तक पहुंच रहे हैं. इसलिए स्थिति को संभालना मुश्किल हो रहा है.
डबल म्यूटेंट वायरस-नए स्ट्रेन दूसरी लहर को बना रहे खतरनाक
कई एक्सपर्ट मानते हैं कि भारत में दूसरी लहर के लौटने और इतने प्रचंड रूप के पीछे कोरोना का नया स्ट्रेन और डबल म्यूटेंट वायरस जिम्मेदार है. देश में कोरोना का एक डबल म्यूटेंट वायरस दिल्ली और महाराष्ट्र में पाया गया. इसके अलावा यूके, ब्राजील और साउथ अफ्रीकन स्ट्रेन भी संक्रमण के तेज होने के पीछे प्रमुख फैक्टर हैं. इस नए फेज में युवा आबादी, बच्चों में संक्रमण के केस ज्यादा पाए जा रहे हैं. इसका कारण ये भी है कि केस घटने के साथ दफ्तर-स्कूल खुल गए और घूमने के लिए भी लोग बाहर निकलने लगे. इसलिए नई लहर में युवा आबादी में संक्रमण के केस ज्यादा देखे जा रहे हैं.
वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील मानते हैं कि- 'केस घटते ही सबकुछ पुराने लेवल पर खोल दिया गया. जबकि पहली लहर में कई ऐसे लोग जिनका संक्रमण पकड़ में नहीं आया था उनके सोशल गैदरिंग में मिक्स होते ही संक्रमण फिर से बढ़ने लगा. इसके अलावा वायरस के म्यूटेंट जो कि कुछ घरेलू हैं और कुछ बाहरी देशों से आए हैं ये भी संक्रमण के तेज होने का कारण हैं.'
हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में 15 से 20 फीसदी केस डबल म्यूटेंट वायरस के हैं. जबकि इसी तरह पंजाब में नए फेज के 80 फीसदी केस नए स्ट्रेन के पाए जा रहे हैं. कोरोना के नए स्ट्रेन पर ब्रिटेन में हुए शोध में खुलासा हुआ था कि इनका प्रसार तेजी से होता है. हालांकि देश में एक्सपर्ट ये भी मानते हैं कि पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में केस भले ही ज्यादा आ रहे हैं लेकिन मृत्यु दर कम दर्ज हो रहा है. पिछले साल जून, सितंबर और नवंबर में जब तबाही का दौर तेज था तब कोरोना के केस 97 हजार तक पहुंचे थे और मौतों का आंकड़ा 1100 से ऊपर. जबकि आज डेढ़ लाख से ऊपर डेली केस के बावजूद मौतों का आंकड़ा 800 के करीब बना हुआ है.
कैसे कंट्रोल किया जा सकता है इस लहर को?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की साउथ-ईस्ट एशिया रीजनल डायरेक्टर डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह कहती हैं- ' कोरोना की दूसरी लहर हालात को किस दिशा में ले जा रही है अभी ये कहना तो संभव नहीं लेकिन तमाम देशों में पिछले एक साल का अनुभव ये बताता है कि पब्लिक हेल्थ नियमों को जमीनी स्तर पर लागू करने और कोविड के बचाव के उपाय लोगों द्वारा अपनाने के नतीजे दिखते हैं. और संक्रमण को रोकने का यही एकमात्र उपाय है. इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग, हेल्थ हाइजीन, और टेस्टिंग के साथ-साथ तुरंत इलाज तक पहुंच की व्यवस्था ही काम करेगी.'
गुजरात में कोविड टास्क फोर्स के मेंबर डॉ. वीएन शाह कहते हैं- 'वर्तमान में हम कोरोना के यूके वैरिएंट का सामना कर रहे हैं. पहले के वैरिएंट से 4 से 6 गुणा ज्यादा तेजी से इसका प्रसार होता है. इसका नतीजा ये हो रहा है कि पहले जहां एक परिवार से एक आदमी संक्रमित हो रहा था वहीं अब एक परिवार से कई-कई लोग एक साथ संक्रमित होकर सामने आ रहे हैं.' इससे बचाव का अचूक हथियार वो SMS को मानते हैं. वे कहते हैं SMS यानी "social distancing, mask and sanitiser". इसके अलावा बचाव का चौथा फैक्टर वे वैक्सीन को बताते हैं जो हर्ड इम्युनिटी के लिए जरूरी है. डॉ. शाह वर्तमान स्थिति को युद्ध जैसे हालात मानते हैं जिससे लोगों को मिलकर लड़ना होगा और वो सोशल डिस्टेंसिंग से ही संभव हो सकता है.
अमेरिकी केमिकल बायोलॉजिस्ट डॉक्टर असीम अंसारी चेताते हैं कि- 'टीकाकरण करना जरूरी है लेकिन टीकाकरण के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनना बेहद जरूरी है. इन सब चीजों का ख्याल रखना है. रंग बदल-बदल कर नए-नए वायरस आ रहे हैं और इसे संभालना कठिन है. लेकिन टीका लगवाना जरूरी है. अमेरिका में अब इसी बात पर सरकार का जोर है.'
कोरोना की इस लहर से निजात कब तक?
जिस तरह से कोरोना की दूसरी लहर बेकाबू होती दिख रही है अभी राहत की कोई उम्मीद तो नजर नहीं आती. देश के 13 राज्यों के कई हिस्सों में टोटल लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू तो मुंबई, इंदौर समेत कई शहरों में वीकेंड लॉकडाउन लगा हुआ है. स्कूल-कॉलेज बंद हैं, दफ्तरों में संख्या सीमित करने के निर्देश सभी राज्य सरकारों ने जारी किए हैं. हाल ही में वैज्ञानिकों की एक स्टडी आई जिसमें आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक भी शामिल थे. स्टडी में मैथमैटिकल एनालिसिस के आधार पर ये अनुमान जताया गया है कि कोरोना की ये दूसरी लहर अप्रैल के मध्य महीने तक चरम पर आ जाएगी. इसके बाद सख्त पाबंदियों के कारण केसलोड में गिरावट देखने को मिलेगी और मई तक हालात कुछ सुधर सकते हैं लेकिन इस दौरान मेडिकल संसाधनों की कमी से देश को दो-चार होना पड़ेगा. हालांकि, अगर लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग और पाबंदियों का सही से पालन नहीं किया तो हालात सुधरने में और देर लग सकती है.
ऐसे हालात में लोगों को क्या करना चाहिए?
ICMR यानी इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के अनुसार कोरोना की इस नई लहर में पैनिक होने की जरूरत नहीं है. सरकारी प्रयासों के अलावा लोगों को अपने लेवल पर भी संक्रमण से बचने और उसे फैलने से रोकने के लिए कदम उठाने होंगे. लोग अपनी ओर से इन बातों का ख्याल रख सकते हैं-
-सोशल डिस्टेंसिंग रखें
-मास्क का इस्तेमाल करें
-उन लोगों के संपर्क में आने से बचें जिनमें कोविड-19 के लक्षण दिख रहे हैं. जैसे कोई भी व्यक्ति जिसमें सर्दी, जुकाम, खांसी या बुखार हो.
-गैर-जरूरी यात्राओं से बचें.
-सार्वजनिक गाड़ियों के इस्तेमाल से बचें.
-सार्वजनिक समारोहों जैसे- शाही समारोहों, पार्टियों में जानें से बचें.
-बहुत जरूरी नहीं होने पर अस्पतालों/लैब की विजिट से बचें.
-जरूरी होने पर डॉक्टरों से ऑनलाइन संपर्क करें.
-लोगों से गले मिलने, हाथ मिलाने से बचें.
-हाथों से चेहरा, नाक-मुंह छूने से परहेज करें.
-अपने हाथों को साबुन से बार-बार धोएं.
-अल्कोहलयुक्त हैंड-सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें.
-जहां तक संभव हो दूषित जगहों/चीजों को छूने से बचें.
-सार्वजनिक शौचालय, दफ्तरों या किसी सार्वजनिक इमारत में दरवाजों और दरवाजों के हैंडल को छूने से बचें. या छूने की स्थिति में तुरंत हाथ को सैनिटाइज करें.