भाजपा के हिंदुत्व कार्ड को टक्कर देने के लिए कांग्रेस एक नए सामाजिक रोडमैप पर काम रही

Update: 2023-03-01 05:43 GMT

दिल्ली: आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर कांग्रेस एक नए सामाजिक रोडमैप पर काम रही है, जो भाजपा के हिंदुत्व कार्ड को टक्कर दे सकती है। अगर कांग्रेस अपनी इस स्ट्रेटजी में कामयाब होती है तो उसको सफलता मिल सकती है। साल 2009 में कांग्रेस ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 131 लोकसभा सीटों में से 53 पर जीत हासिल की थी, लेकिन यह संख्या 2014 में 12 और 2019 में 10 पर आकर सिमट गई। वहीं पार्टी की भी कुल सीटों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। भाजपा के हिंदुत्व को बढ़ावा देने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापक अपील ने कांग्रेस के सामाजिक अंकगणित को तोड़ दिया है और इसके वोट आधार को खत्म कर दिया है, लेकिन कांग्रेस अब एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों तक पहुंचने के लिए एक नई योजना पर काम कर रही है।

2024 के लोकसभा चुनावों के लिए के लिए कांग्रेस पांच राज्यों- तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक विधानसभा में अपना पूरा दमखम दिखाना चाहेगी। इन राज्यों में 262 सीटें एससी/एसटी के लिए आरक्षित हैं। वहीं अल्पसंख्यक भी इन चुनावों के नतीजे तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इसलिए रायपुर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के पूर्ण सत्र में पार्टी ने सभी समितियों में ब्लॉक स्तर से लेकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) तक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के लिए 50 प्रतिशत पदों को आरक्षित करने का निर्णय लिया।

एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए जगह का विस्तार करने का निर्णय पूरी तरह से राजनीति को बढ़ावा देगा। क्योंकि इन नेताओं को उनका उचित स्थान मिलेगा, उनकी आवाज हर स्तर पर सुनी जाएगी। एससी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और आदिवासी विभागों के नेशनल कोऑर्डिनेटर राजू ने कहा कि इससे कांग्रेस पार्टी की राजनीति की गतिशीलता बदल जाएगी। रविवार को पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि न्यायपालिका देश की सामाजिक विविधता को प्रतिबिंबित करे, इसलिए पार्टी उच्च न्यायपालिका में एससी-एसटी-ओबीसी के लिए आरक्षण पर विचार करेगी। इसमें कहा गया है कि भारतीय न्यायिक सेवा बनाने के लिए भी सुधार किए जाएंगे।

सत्ता में आने पर कांग्रेस बनाएगी रोहित वेमुला के नाम पर अधिनियम: कांग्रेस ने पूर्ण अधिवेशन में कहा कि अगर वह सत्ता में वापस आती है तो वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के शिक्षा के अधिकार और सम्मान की रक्षा और सुरक्षा के लिए रोहित वेमुला के नाम पर एक विशेष अधिनियम बनाएगी। कांग्रेस ने कहा कि भारत की सामाजिक न्याय नीतियों और विधानों को लागू करने में प्रगति और अंतराल की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद की तर्ज पर सामाजिक न्याय के लिए एक राष्ट्रीय परिषद की स्थापना की जाएगी।

राजू ने कहा कि भाजपा सरकार समय-समय पर कांग्रेस सरकारों द्वारा बनाए गए सामाजिक न्याय के ढांचे को नष्ट कर रही है और उन प्रावधानों की उपेक्षा कर रही है जो हम विभिन्न क्षेत्रों में लाए थे। उदाहरण के लिए, पीएसयू के बंद होने और बैकलॉग रिक्तियों को भरने के लिए पहल की कमी का मतलब था कि सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध नौकरियां कम हो गई हैं। ऐसे में आरक्षण पर कमजोर तबके को बड़ा झटका लगा है। इसने हमें निजी क्षेत्र में आरक्षण का वादा करने के इस संकल्प के बारे में सोचने के लिए मजबूर किया है।

उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना कराने को लेकर बहस छिड़ी हुई है, मोदी सरकार ओबीसी वोट बैंक वाले क्षेत्रीय दलों की मांग का विरोध कर रही है, कांग्रेस ने दशकीय जनगणना के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना का भी प्रस्ताव रखा है। राजू ने कहा कि पार्टी ने पहले जातिगत जनगणना का समर्थन किया था।

कांग्रेस के प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि एससी, एसटी और ओबीसी को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटा से बाहर नहीं किया जा सकता है, यह कहते हुए कि पार्टी यह सुनिश्चित करेगी कि ईडब्ल्यूएस छात्रों को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए दी गई उम्र में छूट दी जाए। कई पार्टियों ने इसी तरह तर्क दिया है कि ईडब्ल्यूएस कोटा उच्च जातियों तक सीमित नहीं किया जा सकता है, और एससी/एसटी और ओबीसी के लिए एक अलग प्रावधान होना चाहिए। राजू ने कहा कि हमने जो भी कमिटमेंट किया है, उसकी एक पृष्ठभूमि है। यह इस क्षेत्र के प्रति भाजपा सरकार के दृष्टिकोण के वर्षों के हमारे विश्लेषण पर आधारित है।

राम नाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू से भाजपा ने बनाई पकड़

वहीं कांग्रेस हाशिए पर पड़े समुदायों के बीच अपने समर्थन के आधार को फिर से हासिल करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। कांग्रेस के नेताओं ने न चाहते हुए भी स्वीकार किया कि भाजपा इस खेल में आगे है, क्योंकि उसने राष्ट्रपति के रूप में राम नाथ कोविंद (एक दलित) और द्रौपदी मुर्मू (एक आदिवासी) को राष्ट्रपति बनाया। जिसने कांग्रेस को एक राजनीतिक संदेश दिया है।

तेलंगाना में कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनावों में 31 आरक्षित सीटों में से केवल 7 पर ही जीत हासिल कर सकी थी। कर्नाटक में इसने 2018 में 51 आरक्षित सीटों में से 18 पर जीत हासिल की। छत्तीसगढ़ में संख्या बहुत बेहतर थी, क्योंकि पार्टी ने भारी बहुमत से राज्य के चुनावों में जीत हासिल की थी। मध्य प्रदेश में पार्टी के पास अभी भी 82 आरक्षित सीटों में से आधी सीटें हैं। राजस्थान में इसने 59 आरक्षित सीटों में से 30 पर जीत हासिल की। इन्हीं सब को देखते हुए कांग्रेस पार्टी अब पांच राज्यों की सभी 262 आरक्षित सीटों के लिए समन्वयक नियुक्त करने की तैयारी कर रही है।

एससी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और आदिवासी विभागों के नेशनल कोऑर्डिनेटर राजू ने कहा कि हमने देखा है कि जब तक कांग्रेस एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच अपनी पहुंच का विस्तार नहीं करती, तब तक हम अपने वोट शेयर में सुधार नहीं कर पाएंगे। इन समुदायों के बीच अपने वोट शेयर को बढ़ाने के लिए हमें उनकी मौजूदा चिंताओं को दूर करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, ओबीसी समुदाय जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। अगर जनगणना नहीं हुई तो उनका आरक्षण भी दांव पर लग जाएगा। इसलिए हमने खुले तौर पर और स्पष्ट रूप से जाति आधारित जनगणना की मांग की है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस 56 संसदीय क्षेत्रों में अपने नेतृत्व विकास मिशन को चलाने जा रही है, जहां पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों में उपविजेता रही थी। इन सभी सीटों पर एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों से अपना नया नेतृत्व विकसित करने का विचार है।

एआईसीसी के प्रस्ताव में असमानताओं का अध्ययन करने के लिए देशव्यापी सर्वेक्षण करने और एससी/एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को “व्यापक रूप से” मानचित्रित करने की बात की गई है, जिसमें राज्य की सामाजिक न्याय रिपोर्ट सालाना प्रकाशित की जाएगी। इसके अलावा, पार्टी ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रीय कानून का वादा किया कि देश में एससी और एसटी की जनसंख्या के अनुपात में केंद्रीय बजट का एक हिस्सा निर्धारित किया जाए और ओबीसी के विकास में तेजी लाने के लिए विशेष बजटीय आवंटन प्रदान किया जाए।

पार्टी ओबीसी के सशक्तिकरण के लिए एक मंत्रालय का वादा करती है, जिसमें कहा गया है कि यह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग को संवैधानिक दर्जा देगा। अल्पसंख्यकों और एससी/एसटी के बीच “असुरक्षा और पीड़ा की उच्च भावना” को स्वीकार करते हुए कांग्रेस ने उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी तंत्र को मजबूत करने की भी बात की। प्रस्ताव में मनरेगा की तर्ज पर शहरी गरीबों को काम के अधिकार की गारंटी देने के लिए कानून बनाने की भी बात कही गई है।

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