कांग्रेस की चुनौती: राहुल गांधी की फौज निराश

Update: 2021-08-19 07:40 GMT

पप्पू फरिश्ता

कहां से आएगी उम्मीद की किरण ?

नई दिल्ली (ए/नेट डेस्क/टीवी चैनल्स)। कांग्रेस पार्टी में कहां से और कैसे आएगी उम्मीद की किरण? पार्टी के भीतर पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धि दूसरी पीढ़ी तैयार करने की थी। सांसद रहते हुए राहुल गांधी ने एनएसयूआई और युवक कांग्रेस में बड़ा बदलाव किया था। राजीव सातव समेत तमाम नेताओं को युवाधारा में लेकर आए थे। सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेता राहुल गांधी के साथ कमांडो की तरह खड़े हो जाते थे। महिला नेताओं में सुष्मिता देव, मीनाक्षी नटराजन जैसी नेता राहुल ब्रिगेड में शुमार हो जाती थीं। अब इस ब्रिगेड के तमाम नेता कांग्रेस पार्टी को छोड़ चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी युग के कई नेता गुट-23 में गिने जाने लगे हैं। जो इससे अलग हैं उनके चेहरे पर भी निराशा ज्यादा और उम्मीद कम है।

कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जगदंबिका पाल ने कांग्रेस छोड़ी तो हमने उन पर ताना कसा। यह जायज भी लग रहा था, लेकिन सुष्मिता देव, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता पार्टी को छोड़ रहे हैं तो हमें मंथन करना चाहिए। सुष्मिता देव के पास तो अखिर भारतीय महिला कांग्रेस का प्रभार और पद भी था। यह गंभीर संकेत हैं।

पार्टी नेतृत्व सोचे- किस मजबूरी में छोडऩी पड़ती है पार्टी?: कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर गईं पूर्व नेता कहती हैं कि पार्टी के नेतृत्व को सोचना चाहिए? आखिर किस मजबूरी में छोडऩी पड़ी पार्टी? गुजरात में हर रोज कांग्रेस के ब्लॉक और जिला स्तर के नेता पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी में क्यों शामिल हो रहे हैं? सूत्र का कहना है कि हमारी पूर्व पार्टी के पास चेहरे हैं। इन चेहरों की भाजपा, कांग्रेस और विरोधी दलों के नेताओं को जरूरत है, लेकिन हमारी पूर्व की पार्टी एक अनिर्णय की स्थिति में फंसी हुई है। राजीव सातव की कोरोना से मृत्यु हुए कितना समय गुजर गया, लेकिन अगला निर्णय नहीं लिया जा सका। गुजरात में प्रदेश अध्यक्ष अमित चावड़ा को इस्तीफा दिए कितने दिन हो गए, लेकिन हम निर्णय नहीं ले सके। सूत्र का कहना है कि यही हाल असम समेत अन्य राज्यों का है। आप कहिए और कहते रहिए। न पार्टी के संगठन में जान लाने की कोशिश हो रही है और न ही समय पर निर्णय लिए जा रहे हैं। ऐसे तो कांग्रेस किसी भी राजनीतिक स्थिति का मुकाबला नहीं कर सकती?

कांग्रेस रखे, उसका मुकाबला भाजपा नहीं मोदी और शाह से है : कांग्रेस पार्टी को छोड़कर गई एक नेता साफ कहती हैं कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को याद रखना चाहिए कि उसका राजनीतिक मुकाबला भाजपा से नहीं प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से है। वह दोनों चैन से नहीं बैठते? अपने दर्द को साझा करते हुए कहती हैं कि यहां हारने वाले विपक्षी दल के नेता को किस दर्द से गुजरना पड़ता है, इसका कांग्रेस के बड़े नेताओं को अंदाजा भी नहीं होगा। वह कहती हैं कि कांग्रेस ने विपक्षी दलों के नेता और हारे हुए नेताओं से इस तरह का कभी व्यवहार नहीं किया, जैसा पिछले कुछ सालों से भाजपा कर रही है। मुझे इसे खुलकर नहीं कहना है, लेकिन भाजपा तोडऩे, फोडऩे, परेशान करने, प्रलोभन देने के सभी उपायों को अपनाती है।

सुष्मिता देव की दलील : सुष्मिता देव कहती हैं कि वह कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में नहीं गई। उनका मामला ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद से अलग है। वह उस पार्टी में शामिल हुई हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ तालमेल बिठाकर चल रही है। उनकी पार्टी का मकसद कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना या राजनीतिक चुनौती नहीं देना है। दूसरा, ममता बनर्जी पहले कांग्रेस की नेता थीं, धर्म निरपेक्षता की राजनीति में विश्वास रखती हैं। इसलिए कांग्रेस को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थामा। इसके आगे सुष्मिता देव कुछ भी बोलने से परहेज करती हैं। लेकिन उनके तृणमूल में शामिल होने का रहस्य कुछ और इशारा करता है।

दरअसल ममता बनर्जी की निगाह पूर्वोत्तर के राज्य और उड़ीसा समेत अन्य राज्यों पर है। ममता बनर्जी के राजनीतिक सलाहकारों के अनुसार वामदलों के राजनीतिक प्रभाव और तृणमूल के उभार के साथ ममता 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा के बाद बंगाली अस्मिता की नेता बन चुकी हैं। कांग्रेस के ही एक बड़े नेता मानते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी के तृणमूल में शामिल होने के बाद कांग्रेस के पास क्या बचा है? बंगाल के नेता के नाम पर बस अधीर रंजन चौधरी? कहां कभी प्रणब मुखर्जी, प्रियरंजन दास मुंशी, संतोष मोहन देव जैसे नेता थे।

कांग्रेस के ही नेताओं का आकलन है कि बंगाली नेताओं की लीडरशिप सिकुड़ गई है। पूर्वोत्तर में भी नेताओं में झगड़ा काफी बढ़ गया है। उड़ीसा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की राजनीति को कोई टक्कर देने वाला नहीं है। त्रिपुरा में भी कांग्रेस की स्थिति ऐसी ही है। ऐसे में ममता बनर्जी ने बहुत सोच समझकर सुष्मिता देव को अपने साथ जोड़ा है।

कहां खड़ी है राहुल गांधी की ब्रिगेड?: राजबब्बर को बड़े उत्साह से राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी थी। अरुण यादव, प्रिया दत्त, मीनाक्षी नटराजन, कमल किशोर कमांडो, सुष्मिता देव, मीनाक्षी नटराजन, ज्योति मिर्धा, अजय माकन, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, आरपीएन सिंह, गौरव गगोई, दीपेन्द्र हुड्डा समेत तमाम नेता राहुल गांधी को घेरे रहते थे। अजॉय कुमार को बड़े मन से झारखंड का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था। आज राज बब्बर राजनीति की चर्चा करने पर लंबी सांस लेते हैं। प्रियादत्त ने खुद को मुंबई तक सीमित कर लिया है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर दी और चुनी सरकार गिराकर भाजपा में चले गए। सचिन पायलट अपनी ही सरकार और मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हैं। मिलिंद देवड़ा के भीतर पहले जैसा उत्साह नहीं है। जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया। राहुल के जमाने की उभारी हुई युवा पीढ़ी करीब-करीब हताश और निराश है।

बूढ़े कांग्रेसियों में पहले जैसा जोश नहीं

अंबिका सोनी दूसरों को काम करने का मौका देने का बहाना बनाकर पार्टी की बड़ी जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहती। कांग्रेस पार्टी के पूर्व महासचिव मोहन प्रकाश के पास कई राज्यों के प्रभार होते थे। परंपरागत तरीके से आधुनिक राजनीति का तालमेल बनाकर चलने वाले मोहन प्रकाश गुमनाम से हैं। पार्टी के पूर्व महासचिव और कभी कांग्रेस पार्टी तथा सोनिया गांधी की आवाज कहे जाने वाले जनार्दन द्विवेदी को सबसे ज्यादा सुकून फिरोजशाह रोड के अपने छोटे से घर में मिलता है। राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाम नबी आजाद पूरे जीवन भर राजनीतिक सक्रियता के लिए जाने गए। लेकिन अब वहीं आजाद, सिब्बल, मनीष तिवारी गुट-23 में गिने जा रहे हैं। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की हमेशा राजनीति की एक शैली रही है। पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी कोरोना से उबरने के बाद अभी भी उसकी कमजोरी और सुस्ती को झेल रहे हैं। सोनिया गांधी के पूर्व राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के निधन के बाद से जैसे पूरी कांग्रेस ही सुस्त पड़ी है। ऐसे में कांग्रेस का क्या होगा सबके मन में यही सवाल है।

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