दिल्‍ली में वकालत के लिए स्‍थानीय पते की अनिवार्यता गलत: हाईकोर्ट

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Update: 2023-07-13 16:14 GMT
नई दिल्ली(आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्‍ट्रीय राजधानी में वकालत की प्रैक्टिस के लिए दिल्ली-एनसीआर का पता वाला आधार और मतदाता पहचान पत्र अनिवार्य बनाने की बार काउंसिल की अधिसूचना को गुरुवार को तत्काल प्रभाव से रद्द करने के लिए कहा है। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने सवाल किया कि जो लोग दिल्ली के नहीं हैं उन्हें दिल्‍ली बार काउंसिल (बीसीडी) में नामांकन से कैसे रोका जा सकता है। वकील शन्नू बघेल द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने टिप्पणी की, “आप अकेले दिल्ली के लोगों को बीसीडी में पंजीकरण करने की अनुमति कैसे दे सकते हैं? इस अधिसूचना को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। आप बीसीडी सदस्यता को केवल दिल्ली तक सीमित नहीं कर सकते।”
न्यायाधीश ने कहा, दिल्ली कानून की प्रैक्टिस करने के लिए एक अच्छी जगह है। यही वजह है कि लोग यहां आते हैं। उन्‍होंने कहा, “मान लीजिए कि मैं रामनाथपुरम में रह रहा हूं, मैं सिलचर या कच्छ या मेहसाणा में रहता हूं। मै क्या करूं? मुझे अपनी रोटी कमानी है, यहां आना है और प्रैक्टिस करनी है।” यहां उच्च न्यायालय और जिला अदालतों में प्रैक्टिस करने वाले वकील बघेल ने तर्क दिया कि अधिसूचना भेदभावपूर्ण है। यह दिल्ली-एनसीआर के बाहर के लोगों को दिल्ली में नामांकन करने और यहां प्रैक्टिस करने से रोकती है। इसके बाद अदालत ने बघेल की याचिका को अगस्त में आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जब इसी तरह की याचिकाएं निर्धारित की जाएंगी।
एक वकील और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र ने भी बीसीडी की अधिसूचना को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की थी। बीसीडी के फैसले को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए बिहार की वकील रजनी कुमारी द्वारा दायर याचिका में बीसीडी के 13 अप्रैल को जारी नोटिस को चुनौती दी गई है। बीसीडी ने अपने नोटिस में कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी में नामांकन करने के इच्छुक नए कानून स्नातकों के लिए दिल्ली/एनसीआर में पते वाले अपने आधार और मतदाता पहचान पत्र की प्रतियां संलग्न करना अनिवार्य है। इनके अभाव में कोई नामांकन नहीं होगा। कुमारी के अनुसार, बार काउंसिल का निर्णय देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले और बेहतर संभावनाओं के लिए राजधानी में कानून की प्रैक्टिस करने के इच्छुक कानून स्नातकों के लिए एक बाधा की तरह काम करेगा। याचिका में तर्क दिया गया है, "दिल्ली या एनसीआर के पते के साथ आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र की आवश्यकता उन कानून स्नातकों के साथ भेदभाव करती है जिनके पास दिल्ली या एनसीआर में कोई पता नहीं है। यह उनके आवासीय पते के आधार पर कानून स्नातकों के बीच एक मनमाना वर्गीकरण करता है, जो अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।''
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