चीन मामलों के विशेषज्ञ प्रदीप रावत बीजिंग में भारत के नए दूत होंगे, जानें ड्रैगन की चालें क्यों होंगी ध्वस्त

Update: 2021-11-14 05:17 GMT

फाइल फोटो 

नई दिल्ली: सीमा विवाद को लेकर चीन की अब ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की चालें ध्वस्त होंगी, क्योंकि बीजिंग में भारत अपने उस दूत को भेजने जा रहा है, जिसे चीनी मामलों पर महारथ हासिल है। चीनी मामलों के एक्सपर्ट और विदेश मंत्रालय में पूर्वी एशिया डिवीजन के प्रमुख रह चुके प्रदीप कुमार रावत के बीजिंग में भारत के नए दूत के रूप में पदभार ग्रहण करने की उम्मीद है। बीजिंग में भारत के वर्तमान दूत विक्रम मिश्री सचिव के रूप में नई दिल्ली लौट रहे हैं। फिलहाल, प्रदीप रावत जनवरी 2021 से नीदरलैंड में दूत हैं।

मंदारिन चीनी भाषा में धाराप्रवाह बात करने वाले प्रदीप रावत ने अपने राजनयिक करियर का अधिकांश समय या तो चीन में या फिर दिल्ली से बीजिंग को हैंडल करने में बिताया है। वह 2014 से 2017 तक संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) थे। उन्हें 2017 से 2020 तक एक राजदूत के रूप में इंडोनेशिया में तैनात किया गया था। प्रदीप रावत 1990 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी हैं।
प्रदीप रावत की पोस्टिंग ऐसे समय में हो रही है, जब भारत और चीन सीमा विवाद की वजह से आमने-सामने हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अपनी सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत और हथियारों की तैनाती कर रही है, जिसकी वजह से भारत और चीन के बीच टकराव जारी है। बीजिंग द्वारा मई 2020 में पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर यथास्थिति को एकतरफा रूप से बदलने की कोशिश के बाद से ही भारतीय सेना और चीनी सेना लद्दाख में 1597 किलोमीटर एलएसी के साथ पूरी तरह से तैनात हैं। इतना ही नहीं, चीनी आक्रमण के कारण जून 2020 में गालवान घाटी में झड़प हुई, जहां भारतीय सेना ने कर्नल संतोष बाबू सहित 20 कर्मियों को खो दिया, मगर शहीद होने से पहेल भारत के इन जवानों ने चीनी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया और उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया।
रावत की नियुक्ति में मोदी सरकार ने एक ऐसे राजनयिक पर विश्वास किया है, जिसकी द्विपक्षीय संबंधों पर बड़ी मजबूत पकड़ और संस्थागत स्मृति है क्योंकि बीजिंग अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को मोड़ने के लिए जाना जाता है। ऐसे में प्रदीप ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत की ओर से माकुल जवाब होंगे। जब विदेश मंत्री एस जयशंकर विदेश सचिव थे, तब प्रदीप रावत ने उनके साथ उनके पूर्वी एशिया डिवीजन प्रमुख के रूप में काम किया है। उन्होंने सभी द्विपक्षीय तंत्रों को संभाला है और वह अपने शांत और पेशेवर व्यवहार के लिए जाने जाते हैं।
मौजूदा दूत विक्रम मिश्री बीजिंग में एक सफल कार्यकाल के बाद विदेश मंत्रालय में सचिव के रूप में दिल्ली लौट रहे हैं, जहां उन्होंने लद्दाख संकट को गंभीरता से संभाला। 1989 बैच के आईएफएस अधिकारी विक्रम मिश्री के विदेश मंत्रालय में लौटने से भारत को फायदा होगा और चीन पर अपनी अर्जित विशेषज्ञता से मंत्रालय को अवगत करा पाएंगे।
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