छह वर्ष की उम्र में बाल विवाह, 15 की उम्र में बालिका ने कोर्ट से लगाई गुहार
जोधपुर। हार्डकोर तेरह वर्ष पूर्व 6 वर्षीय बालिका की शादी 12 वर्ष के नाबालिग लड़के से सामाजिक कुरीति के चलते करवा दी। उस वक्त बालिका को लगा कि गुड्डे-गुड़ियों का खेल हो रहा है। वक्त बीतने के साथ और बालिका के शिक्षित होने पर उसे पता चला कि वह शादी के बंधन मे बंध चुकी है। तथाकथित पति और उसके परिवार वाले बालिका का गौना तथा पति के साथ रहने का दबाव डालने लगे। बालिका ने माता-पिता से बात की। माता-पिता ने इस बात को स्वीकार किया कि दबाव में तथा गलत तरीके से बाल विवाह हो गया और वे स्वयं अब नहीं चाहते कि बालिका का गौना हो। बालिका के परिवार वाले तथाकथित पति तथा उसके परिवार की आपसी सहमति से शादी खत्म करने की कोशिश की, लेकिन दूसरा पक्ष तैयार नहीं हुआ। मजबूरन बालिका को अपने पिता के माध्यम से पारिवारिक न्यायालय में विवाह को शून्य कराने के लिए न्याय मित्र जसवंत सुथार के माध्यम से परिवाद पेश करना पड़ा। पति की ओर से ना जवाब आया ना ही उसकी ओर से कोई अधिवक्ता उपस्थित हुआ। कोर्ट ने एक पक्षीय कार्रवाई करते हुए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 के तहत विवाह को निरस्त करने का आदेश दिया।
जोधपुर पारिवारिक न्यायालय संख्या एक के पीठासीन अधिकारी मुजफ्फर चौधरी ने बालिका की उम्र से संबंधित दस्तावेज, पिता और अन्य लोगों के मौखिक साक्ष्य तथा कानून के तहत आनंदी और जगीया के बीच हुए बाल विवाह को शून्य घोषित कर दिया। जोधपुर जिले के बालेसर तहसील स्थित एक गांव की 6 वर्ष की आनंदी (परिवर्तित नाम) का बालविवाह फलोदी तहसील के निवासी 12 वर्षीय जगीया (परिवर्तित नाम) के साथ 18 जून 2012 को करवा दिया। 6 दिसम्बर 2021 में 15 वर्ष की होने पर आनंदी ने अपने पिता के माध्यम से कोर्ट में 21 वर्षीय पति के खिलाफ विवाह निरस्त करने की अर्जी लगाई। बालिका ने कोर्ट में बताया कि जब वह 6 वर्ष की थी तब उसके ताऊ ने उसका बाल विवाह जगीया के साथ करवा दिया। बालिका ने कहा कि नासमझी व दबाव में हुए विवाह को निरस्त करवाना चाहती है। जबकि उसका पति तथा उसके घर वाले गौना करवाने के लिए दबाव बना रहे हैं। वह अपनी स्वतंत्र इच्छा से रहना चाहती है। कोर्ट के बार-बार नोटिस भेजने के बावजूद पति का कोई जवाब नहीं आया।