केंद्र सरकार किसानों से बात करने को तैयार, कृषि मंत्री बोले- 'आधी रात को भी स्वागत'
केंद्र सरकार के द्वारा पारित किए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर से आए किसान पिछले छह महीने से भी अधिक समय से धरना दे रहे हैं।
केंद्र सरकार के द्वारा पारित किए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर से आए किसान पिछले छह महीने से भी अधिक समय से धरना दे रहे हैं। किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी की मांग कर रहे हैं। इसी बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है कि वे किसानों से बात करने को तैयार हैं और बातचीत के लिए आधी रात को भी किसान यूनियन का स्वागत करते हैं।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि भारत सरकार कृषि बिलों को लेकर किसानों से बातचीत करने के लिए तैयार है। एक्ट से संबंधित प्रावधानों पर कोई भी किसान यूनियन अगर आधी रात को भी बातचीत करने के लिए तैयार है तो मैं उसका स्वागत करता हूं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सरकार किसान संगठनों के साथ किसी भी प्रावधानों पर बातचीत करने को तैयार है लेकिन कृषि कानूनों को वापस लेने पर कोई बात नहीं होगी।
वहीं शुक्रवार को किसान नेता राकेश टिकैत ने ट्वीट कर तीनों कृषि कानूनों को देश के किसानों के लिए डेथ वारंट बताया। किसान नेता राकेश टिकैत ने ट्वीट करते हुए लिखा कि तीनों काले कृषि कानून किसानों के लिए डेथ वारंट हैं! इसके अलावा एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा कि सरकारें आरोप ढूंढती हैं समाधान नहीं। यह कौन सा लोकतंत्र है! देशभर के किसान सात महीने से राजधानी में धरने पर बैठे हैं और केंद्र सरकार तानाशाह रवैया अपनाए हुए है।
बता दें कि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच आखिरी बातचीत 22 जनवरी को हुई थी। केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक निलंबित करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन किसान संगठनों ने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। किसान संगठनों ने केंद्र सरकार से इन कानूनों को वापस लेने को कहा था लेकिन सरकार ने इससे साफ़ साफ़ मना कर दिया था।
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने भी कृषि कानूनों को निरस्त करने के बजाय इसकी कमियों को सुधारने की वकालत की है। उन्होंने कहा है कि किसानों को बातचीत शुरू करने के लिए कृषि कानूनों को ख़त्म करने के बजाय इसकी खामियों को स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार के सामने रखना चाहिए। हालांकि राकेश टिकैत सहित सभी किसान नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसान संगठन केंद्र सरकार के साथ बातचीत करने को तैयार है लेकिन चर्चा सिर्फ कानून को निरस्त करने के बारे में ही होना चाहिए।