केस को बेवजह नहीं खींचा जाएगा

Update: 2023-08-12 03:52 GMT

 इंडियन पीनल कोड (IPC), क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CRPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम आने के बाद देश की अदालतों में केस का बोझ कम करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही न्याय के लिए दशकों का इंतजार भी खत्म होगा और तीन वर्ष में न्याय मिल सकेगा। साक्ष्य अधिनियम में संशोधनों के बाद अपराधियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी।

सरकार का अनुमान है कि प्रस्तावित कानूनों पर पूरी तरह अमल के बाद सात वर्ष बाद अपराधियों को सजा की दर 90 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी जो फिलहाल 50 प्रतिशत से भी कम है।

समरी ट्रायल का प्रविधान

प्रस्तावित कानूनों में पहली बार छोटे-मोटे अपराधों के निपटारे के लिए पूरे देश में समरी ट्रायल का स्थायी प्रविधान किया गया है। चोरी, चोरी की संपत्ति को रखना, शांति भंग, धमकी देने जैसे मामलों का अब समरी ट्रायल होगा और एक ही सुनवाई में जुर्माने या छोटे दंड के साथ इसे निपटा दिया जाएगा।

यही नहीं, तीन वर्ष से कम सजा (पुराने कानून में दो वर्ष) के सजा के मामलों में मजिस्ट्रेट समरी ट्रायल की इजाजत दे सकता है। अकेले इस प्रविधान अदालतों में 40 प्रतिशत तक केस का बोझ कम हो सकता है।

अकारण लंबा नहीं खिंचेगा केस

नए प्रविधानों में जांच और ट्रायल को समयबद्ध पूरा करने का बंदोबस्त किया गया है। पुलिस को किसी मामले की जांच एफआइआर दर्ज करने के बाद 90 दिनों में पूरी कर चार्जशीट दाखिल करनी होगी। यदि किसी विशेष परिस्थिति में जांच पूरी नहीं हो पाती है, अदालत 90 दिनों का अतिरिक्त समय दे सकती है, लेकिन किसी भी स्थिति में यह 180 दिनों से अधिक नहीं हो सकती है।

यही नहीं, ट्रायल के दौरान बार-बार स्थगन लेने को सीमित कर दिया गया है। कोई भी आरोपित या वकील दो बार से अधिक स्थगन नहीं ले सकता। अधिकांश केस इसी कारण वर्षों तक लटके रहते हैं। यही नहीं, सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत को भी अब 30 दिनों के अंदर फैसला सुनाना पड़ेगा। इसे अनिश्चित काल के लिए नहीं टाला जा सकेगा।

ट्रायल के दौरान पुराने अधिकारियों की गवाही के कारण होने वाली देरी को रोकने का भी प्रविधान किया गया है। अब मौजूदा समय में तैनात अधिकारी ही अदालत में पुराने मामलों में गवाही देंगे, स्थानांतरित, पदोन्नत या फिर सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारियों को आने की जरूरत नहीं होगी। इससे 70 प्रतिशत मामलों के ट्रायल में देरी खत्म हो जाएगी।

इसी तरह से आरोप पत्र पर पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर अदालत को आरोपितों पर आरोप तय करने होंगे। आरोपितों में सरकारी अधिकारी के शामिल होने की स्थिति में सरकार के लिए जरूरी मंजूरी हासिल करने की समयसीमा तय कर दी गई है।

अब सरकार को ऐसे आरोपितों के विरुद्ध केस चलाने की अनुमति 120 दिनों के अंदर देनी होगी, नहीं तो डीम्ड अनुमति मानकर सुनवाई शुरू कर दी जाएगी। इन सुधारों के जरिये सरकार की कोशिश ट्रायल को तीन वर्ष के भीतर पूरा कर आरोपितों को सजा सुनिश्चित करना है।

दुर्घटना के बाद चोटिल को छोड़कर भागे तो ज्यादा सजा

दुर्घटना के मामलों में अलग-अलग सजा का प्रविधान किया गया है। दुर्घटना के बाद यदि आरोपित चोटिल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा देता है तो कम सजा होगी, लेकिन यदि वह उसे छोड़कर भाग जाता है, तो इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है।

पहली बार स्नैचिंग के लिए अलग से कानून

महानगरों में स्नैचिंग की बढ़ती समस्या से निपटने और उसके विरुद्ध स्पष्ट कानूनी प्रविधान नहीं होने की वजह से पुलिस कार्रवाई में दिक्कत को देखते हुए इसके लिए अलग से प्रविधान बनाया गया है। इससे चेन, बैग, लैपटाप स्नैचिंग के मामलों को रोकने में मदद मिल सकती है।

डिजिटल होगी जांच, सुनिश्चित होगी सजा

सात वर्षों से अधिक सजा वाले मामलों में फोरेंसिक जांच को अनिवार्य बना दिया गया है। दिल्ली में इसे सफलतापूर्वक लागू किया गया है और पूरे देश में अगले सात वर्षों के भीतर हर जिले में तीन मोबाइल फोरेंसिक लैब की तैनाती का प्रविधान किया गया है। ऐसे मामले में क्राइम सीन पर पुलिस जांच शुरू करने के पहले फोरेंसिक टीम को साक्ष्य जुटाना होगा। इसकी मदद से आरोपितों को सजा मिलेगी।

डिजिटल होगी न्यायिक प्रक्रिया

अभी तक सिर्फ आरोपितों की कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेशी का प्रविधान है। आगे एफआइआर से लेकर चार्जशीट और अदालत के फैसले तक पूरी प्रक्रिया डिजिटल होगी। अब गवाहों और शिकायतकर्ता को भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये पेश किया जा सकेगा। गवाहों और आरोपितों या किसी अन्य को समन या नोटिस एसएमएस या ई-मेल से भेजा सकेगा। तकनीकी माध्यम से इसकी रिसी¨वग की भी व्यवस्था की गई है।

भगोड़ों का भी होगा ट्रायल, प्रत्यर्पित कराने में मिलेगी मदद

अभी तक भगोड़े अपराधियों के ट्रायल का प्रविधान नहीं था। प्रस्तावित कानून में इसका रास्ता साफ हो गया है। इससे दाऊद इब्राहिम जैसे भगोड़े अपराधियों के विरुद्ध 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट समेत अन्य मामलों में ट्रायल शुरू किया जा सकेगा।

अदालत को ऐसे अपराधियों का पक्ष रखने के लिए वकील की व्यवस्था करनी होगी। इससे विदेश भाग गए अपराधियों के प्रत्यर्पण में मदद मिलेगी। दुनिया के लगभग 95 प्रतिशत देशों में अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए पहले सजा होने का कानूनी प्रविधान है।

तलाशी और जब्ती की वीडियो रिकार्डिंग अनिवार्य

बिना वीडियो रिकार्डिंग के पुलिस किसी के घर या दफ्तर की तलाशी नहीं ले सकती या जब्ती नहीं कर सकती। यदि वीडियो रिकार्डिंग के बिना कोई चालान या चार्जशीट दाखिल की जाती है तो उसे वैध नहीं माना जाएगा।

जेलों का बोझ कम होगा

विचाराधीन मामलों में एक तिहाई सजा काट चुके आरोपितों की रिहाई के लिए कानूनी प्रविधान किया गया है। इससे जेलों का बोझ कम होगा। ऐसे आरोपितों की जानकारी ट्रायल कोर्ट को देने की जिम्मेदारी जेल अधीक्षक की होगी। लेकिन आजीवन कारावास या मृत्युदंड जैसी सजा वाले गंभीर अपराध के मामलों में यह लागू नहीं होगा।

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