CAG की रिपोर्ट आई सामने, दिल्ली सरकार का कर्ज 7 फीसदी बढ़ा, जानें पूरी डिटेल्स

Update: 2022-07-06 05:26 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के नफा-नुकसान पर CAG रिपोर्ट मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में पेश की गई. CAG रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सरकार का कर्ज पिछले 4 साल में 7 फीसदी बढ़ गया है. रिपोर्ट में पेश दिये गए ये आंकड़े 2019-20 तक के हैं. हालांकि इसने राजस्व अधिशेष (रेवेन्यू सरप्लस) बनाए रखा हुआ है.

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट को डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को विधानसभा में पेश किया.
CAG रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015-16 में कर्ज 32,497.91 करोड़ रुपये था. जो कि 2019-20 के आखिर में 34,766.84 करोड़ रुपये हो गया. मतलब इसमें 2,268.93 करोड़ रुपये (6.98 फीसदी) का इजाफा हुआ.
रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सरकार का रेवेन्यू सरप्लस 2019-20 में 7,499 करोड़ रुपये रहा. यह दिखाता है कि राजस्व के खर्च के हिसाब से उसपर पर्याप्त पैसा है.
CAG की रिपोर्ट को ट्वीट करते हुए अरविंद केजरीवाल ने लिखा है, 'CAG रिपोर्ट कह रही है कि दिल्ली में जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तबसे दिल्ली सरकार फायदे में चल रही है. ये आम आदमी पार्टी सरकार की ईमानदारी का सबसे बड़ा सबूत है. इसी ईमानदारी ने हमारे विरोधियों की नींद उड़ा रखी है.'
दिल्ली सरकार के पास रेवेन्यू सरप्लस होने की बड़ी वजह यह भी है कि उसके ज्यादातर कर्मचारियों की पेंशन का जिम्मा केंद्र सरकार द्वारा उठाया जाता है. इसके साथ-साथ दिल्ली पुलिस का खर्च भी गृह मंत्रालय द्वारा उठाया जाता है.
CAG रिपोर्ट में यह भी बताया कि दिल्ली सरकार द्वारा की जाने वाली सब्सिडी पर खर्च बढ़ा है. जैसे 2015-16 में सब्सिडी पर दिल्ली सरकार 1,867.61 करोड़ खर्च करती थी. जो कि 2019-20 में बढ़कर 3,592.94 करोड़ हो गया. चार साल में यह 92.38 फीसदी बढ़ गया. वहीं 2018-19 के मुकाबले यह बढ़ोतरी 41.85 फीसदी है.
CAG रिपोर्ट में डीटीसी बस सर्विस पर भी बात की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019-20 में दिल्ली राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम को जो नुकसान हुआ, उसमें 99 फीसदी हिस्सेदारी DTC की थी. मतलब डीटीसी बस सर्विस दिल्ली सरकार के लिए 'घाटे का सौदा' साबित हो रही है.
CAG रिपोर्ट में दिल्ली महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) विभाग पर निशाना भी साधा गया है. कहा गया है कि विभाग ने अबतक वर्किंग वुमन के लिए हॉस्टल नहीं बनाया है. जबकि 16 साल पहले (2002) उसके लिए जगह ली गई थी. कहा गया है कि यह सिर्फ ना फंड को दबाकर बैठने का मामला है बल्कि इसने महिलाओं को सुरक्षित आवास से वंचित रखा. बताया गया कि इसके लिए तब 97.53 लाख रुपये का फंड अलॉट हुआ था.


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