हिंसा के खिलाफ न्याय के नाम पर बुलडोजर... क्या औचित्य?

Update: 2023-08-10 05:54 GMT
त्वरित टिप्पणी
मणिपुर और हरियाणा के नूंह में हुई जातिवाद के नाम पर हिंसा को सरकार नियंत्रित नहीं कर पाई, जिसके कारण सैकड़ों निरापद लोगों की हत्या हो गई। देश में राजनीतिक मठाधीश धर्म और जाति के नाम पर स्वार्थ की राजनीति कर रहे है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को संज्ञान लेकर फटकार लगानी पड़ी। यह सरकार की अक्षमता और स्वार्थ निहित राजनीति का परिणाम के रूप में देखा जा रहा है। न्याय तो न हरियाणा में मिला और न ही मणिपुर में मिल पाया। जातिय वर्चस्व के नाम पर हत्या जैसे जघन्य वारदात को बल मिला। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए सरकारों से पूछा आपने दंगा को रोकने के क्या उपाय किए। सरकार का मतलब सबसे साथ न्याय की शपथ का परिपालन है न कि एक पक्षीय बयानबाजी कर मामले में लीपापोती करना है। हरियाणा के नूंह में पिछले दिनों हुई हिंसा ने सांप्रदायिक एकता को छिन्न-भिन्न कर दिया है। दो समुदायों में आपसी भाई चारा खत्म करने पर उतारू लोग किसी भी हद तक जा रहे थे। मजे की बात सरकार चुन-चुन कर एक संप्रदाय के लोगो के मकान व दुकान में बुलडोजर चलवा रही है। गुरुग्राम की एक मस्जिद में सोते हुए नायब इमाम ही हत्या कर दी जाती है और सीसीटीवी कैमरा फुटेज के मुताबिक जिस सख्स को गिरफ्तार किया गया उसे छुड़ाने लोग थाने को घेर लेते हैं। जब हिंसा रोकने में नाकाम सरकार द्वारा बुलडोजर की कार्रवाई को गलत बताते हुए हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ता है और सरकार को इस काम पर रोक लगाने फटकार लगाते हुए पूछती है कि क्या यह किसी एक समुदाय को टारगेट किया जा रहा है हाई कोर्ट ने यह भी पूछा की यह नस्लीय सफाया करने की कवायद तो नहीं हो रही है। अब सवाल उठता है कि सरकार जिसे आम जनता चुन कर सत्ता के शिखर पर पहुंचाती है वही सरकार उन लोगों के जान माल के दुश्मन बन जाये और कोर्ट को इस तरह का कमेंट करना पड़े यह दुर्भाग्यपूर्व है। ऐसी स्थिति निर्मित क्यों होती है जब चुनी हुई सरकार ही जनता को अपना दुश्मन मानने लगे, इसके लिए जिम्मेदार कौन है। मध्यप्रदेश में पेशाब कांड के बाद सीधी, शिवपुरी, ग्वालियर के बाद इंदौर में मामूली विवाद पर मजदूरी करने वाले दो आदिवासी भाइयों को 8 घंटे तक बंधक बनाकर लगातार बुरी तरीके से पीटा गया। आदिवासियों के हमलावरों के मकान दुकान पर बुलडोजर चले। यही हाल पूर्वोत्तर की बनी हुई है। मणिपुर में बीते ढाई महीने से जारी जातीय हिंसा के बीच शायद ही कोई दिन रहा हो जब इस राज्य के किसी इलाक़े में हिंसक झड़प, हत्या या आगजऩी जैसी ख़बरें नहीं मिल रही हों। सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं किसी के मकान दुकान में बुलडोजर नही चला। क्या उनका और इनका अपराध अलग अलग प्रकार का था? बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के नारे देने वालों को जंतर मंतर में धरना देने वाले पहलवान बेटियों का मामला हो या मणिपुर में बेटियों के साथ हुए अत्याचार नही दिखना बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। फिर देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इस पर सख्त टिप्पणी की। विपक्ष सवाल भी पूछ रहा है कि हिंसा शुरू होने के बाद से पीएम मोदी ने अभी तक मणिपुर का दौरा क्यों नहीं किया है। प्रधानमंत्री जी को मणिपुर, हरियाणा और मध्यप्रदेश या अन्य जगह जहां मामला खराब चल रहा है दौरा कर शांति बहाली की अपील करनी चाहिए। अगर राहुल गांधी मणिपुर जा सकते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों नहीं जा सकते। इस सम्बन्ध में कांग्रेस नेता कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि प्रधानमंत्री की चुप्पी और निष्क्रियता ने मणिपुर को अराजकता की ओर धकेल दिया है। मणिपुर का वीडियो वायरल होने के दूसरे दिन संसद परिसर में पीएम मोदी ने कहा, मणिपुर की घटना से मेरा हृदय दुख से भरा है। ये घटना शर्मसार करने वाली है। पाप करने वाले कितने हैं, कौन हैं वो अपनी जगह है, पर बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। क्या देश में चल रहे साम्प्रदायिक दंगों और किसी एक समुदाय को, गरीबों को टारगेट कर उनके घरों दुकानों में बुलडोजर चलने से देश की बेज्जती नहीं हो रही है। प्रधानमंत्री जी को चाहिए वे राज्य सरकारों को तत्काल इस प्रकार की हिंसा रोकने कड़ाई से काम करने का आदेश दें, लेकिन किसी एक धर्म संप्रदाय को ही टारगेट न करते हुए बल्कि सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की नीति पर अमल हो।
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