लखनऊ: अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल बिसात बिछाने में जुटे हैं। भाजपा, कांग्रेस और सपा ने तो गठबंधन के साथी भी तलाशने शुरू कर दिए हैं। लेकिन, बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बसपा मुखिया मायावती ने लगातार राजनीतिक दलों की होने वाली हर हलचल पर पैनी निगाहें गड़ा रखी हैं। वह काफी मजबूती के साथ समीकरण बनाने में जुटी हैं।
सियासी जानकार बताते हैं कि यूपी में चुनाव दर चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद मायावती बड़ी मजबूती के साथ अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने में जुटी हैं। उनकी कोशिश यह है कि लोकसभा चुनाव से पहले जहां यूपी में पार्टी को मजबूती मिल जाए तो वहीं अन्य राज्यों में भी ग्राफ थोड़ा ऊपर चला जाए। बसपा सुप्रीमो लगातार अन्य राज्यों के पदाधिकारियों की बैठक ले रही हैं।
बसपा के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो पार्टी की मुखिया मायावती लोकसभा चुनाव को लेकर काफी गंभीर हैं। वह लगातार संगठनात्मक बैठक के माध्यम से कार्यकर्ताओ में जोश भर रही हैं। उन्होंने बताया कि वह नए सिरे से प्रभारियों के मिले फीडबैक पर अमल कर रही हैं। फीडबैक पर ही वह मैदान में निकलकर समीकरण ठीक करने की योजना पर काम कर रही हैं। इसकी शुरुआत वह हरियाणा से करेंगी। बसपा नेता की मानें तो यूपी के साथ ही बसपा इन सभी राज्यों में युवाओं पर फोकस कर रही हैं।
दरअसल, बसपा की मंशा है कि पुराने ऐसे कार्यकर्ता जो अब निष्क्रिय हैं, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर यूथ टीम खड़ी की जाए। जिससे लोकसभा चुनाव में काफी आसानी से कामयाबी मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि पार्टी में आंतरिक सर्वे भी कराया गया है। हालांकि, उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है। जमीन पर जिस हिसाब से काम होना चाहिए वैसे काम नहीं हो पा रहा है। इसके लिए पार्टी के पदाधिकारियों को कसा भी जा रहा है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि उनके खास सलाहकारों ने भी उन्हें इस बार चुनाव से पहले बाहर निकलने की सलाह दी है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमोदकांत का कहना है कि बसपा को लगातार मिल रही हार से पार्टी कार्यकर्ता निराश होता है। इस बात से मायावती ठीक से वाकिफ हैं। इसीलिए उन्होंने विधानसभा की हार के बाद निकाय चुनाव काफी जोर-शोर से लड़ा था। उसमें भी इन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली है।
आमोद कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह सभी पुरानी बातों को भूलकर सपा मुखिया अखिलेश यादव से गठबंधन कर चुनाव लड़ी। वर्ष 2014 के चुनाव की अपेक्षा उन्हें फायदा हुआ। शून्य पर रहने वाली बसपा 10 सीटें जीत गई। यह बात अलग है कि मायावती ने गठबंधन तोड़ते वक्त सपा के खाते का वोट न मिलने का आरोप लगाया। यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव बसपा अपने दम पर लड़ी और मात्र एक सीट ही जीत पाई। इसीलिए, मायावती के लिए यह चुनाव अहम है। वह इन दिनों दिल्ली में बैठक करके राज्यवार स्थिति की समीक्षा कर रही हैं। सभी सियासी दलों की गतिविधियों पर विशेष नजर बनाए हैं।