शहीद का दर्जा पत्र देने पहुंचे बीएसएफ अफसर, लग गए 18 साल

Update: 2022-05-27 11:45 GMT

फाइल फोटो 

भरतपुर: राजस्थान के भरतपुर निवासी वीरेंद्र सिंह कुंतल वर्ष 2004 में जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. उस वक्त उनको शहीद का दर्जा नहीं मिला था. शहीद का परिवार इसकी उम्मीद खो चुका था, लेकिन 18 वर्ष बाद वीरेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा दिया गया है. बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट अधिकारियों के साथ शहीद वीरेंद्र सिंह के घर पहुंचे, जहां शहीद का दर्जा देने का पत्र उनकी पत्नी को सौंपा, तो वीरांगना की आंखें भर आईं.

कुम्हेर तहसील के गांव रारह निवासी वीरेंद्र सिंह 16 अगस्त, 1994 में बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में भर्ती हुए थे. वह जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में 52 बीएसएफ बटालियन में तैनात थे. इसी दौरान 9 जून 2004 को रात्रि में सूचना मिली थी कि एक मस्जिद में कुछ आतंकवादी छुपे हुए हैं. बीएसएफ जवानों की एक यूनिट रात में ही आतंकवादियों को पकड़ने के लिए सर्च ऑपरेशन करने गई. इसी दौरान मस्जिद में छिपे आतंकवादियों ने बीएसएफ यूनिट पर हमला कर दिया. बीएसएफ जवान और आतंकवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में वीरेंद्र सिंह की गोली लगने से जान चली गई. जाबांज के घर में उनकी पत्नी सुमन देवी के एक पुत्र और पुत्री हैं.
शहीद के घर पहुंचे 178 बीएसएफ बटालियन के डिप्टी कमांडेंट मनोज कुमार ने बताया कि बीएसएफ में पहले शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता था, लेकिन अब लागू हो चुका है. वीरेंद्र सिंह आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे, इसलिए आज विभाग की तरफ से उन्हें शहीद का दर्जा दिया गया है. मैं उनकी पत्नी सुमन देवी को उनके पति के लिए शहीद का दर्जा का प्रमाण पत्र देने आया हूं. इससे उनके बच्चों को सरकारी नौकरी में फायदा मिलेगा. राज्य सरकार और केंद्र सरकार के जितने भी शहीदों के लिए सुविधाएं होती है, वह मिल सकेगा. यदि शहीद परिवार चार हजार स्क्वायर मीटर का कोई मकान बनाता है, तो उनको फ्री सीमेंट दिया जाएगा.



 


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