बॉम्बे हाई कोर्ट ने ISIS के सदस्य होने के आरोप में UAPA के तहत गिरफ्तार किये गए आरोपी को दी पांच साल बाद जमानत

बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को प्रतिबंधित आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) का सदस्य होने के आरोप में UAPA के तहत गिरफ्तार किए गए 28 वर्षीय युवक को जमानत दे दी है.

Update: 2021-08-13 15:39 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने शुक्रवार को प्रतिबंधित आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) का सदस्य होने के आरोप में UAPA के तहत गिरफ्तार किए गए 28 वर्षीय युवक को जमानत दे दी है. अभियोजन एजेंसी एनआईए (NIA) ने कोर्ट को बताया था कि युवक और उसके दोस्त दुनियाभर में 'इस्लाम पर अत्याचार' पर चर्चा करने के लिए शाम में एक-साथ बैठते थे. जिसके बाद उसे अगस्त 2016 में गिरफ्तार था. अब जाकर 5 साल बाद उसे जमानत दी गई है.

जस्टिस एस एस शिंदे और जस्टिस एन जे जमादार की बैंच ने इकबाल अहमद कबीर अहमद की अपील पर उसे जमानत दी है. अहमद ने उसकी जमानत खारिज करने के स्पेशल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. बैंच ने कहा, " स्पेशल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है. याचिकाकर्ता (अहमद) को एक लाख रुपये के मुचलके और इतनी ही राशि के एक या दो जमानतदारों को पेश करने के बाद जमानत पर रिहा किया जाएगा."
कैद में रखना जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन
पीठ ने कहा कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत जमानत देने पर रोक है, लेकिन मामले में जल्द ही सुनवाई के पूरी होने की कोई संभावना नहीं है और उसे लगातार कैद में रखना जीवन और स्वतंत्रता के उसके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होगा. अहमद पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं. कोर्ट ने अहमद को पहले महीने में हफ्ते में दो बार और इसके बाद अगले दो महीने हफ्ते में एक बार NIA के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया.
SP ऑफिस में कथित तौर पर हमले की साजिश का आरोप
दरअसल अहमद को सात अगस्त 2016 को गिरफ्तार किया गया था और ISIS का सदस्य होने के आरोप में उसके खिलाफ UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया था. अभियोजन के मुताबिक, अहमद ISIS के "परभणी मॉड्यूल" का हिस्सा था जो परभणी के एसपी कार्यालय पर कथित तौर पर हमले की साजिश रच रहे थे. मामले में अभियोजन एजेंसी एनआईए ने अदालत को बताया है कि अहमद और उसके दोस्त दुनियाभर में 'इस्लाम पर अत्याचार' पर चर्चा करने के लिए शाम में एक-साथ बैठते थे और ऐसे जुल्मों का बदला लेने के बारे में विचार करते थे.
सिर्फ चर्चा करना अपराध करना नहीं: बॉम्बे हाई कोर्ट
पीठ ने अहमद के वकील मिहिर देसाई की दलीलों का संज्ञान लिया जिन्होंने कहा कि सिर्फ चर्चा करना अपराध करना नहीं हो जाता है. देसाई ने दलील दी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं और मामले में सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है और 150 से अधिक गवाहों का परीक्षण किया जाना है. कोर्ट ने कहा कि इस चरण में यह साफ करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया सबूत नहीं है कि आरोपी ने अपराध या विद्रोह को उकसाया, या उसने हिंसक प्रतिक्रियाओं की वकालत की.
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