नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण करना और देश में समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा के कोर एजेंडे में रहा है। भाजपा राष्ट्रवाद और हिंदुत्व से जुड़े अपने तीन कोर एजेंडे में से दो एजेंडे को पूरा कर चुकी है। अब सिर्फ तीसरा और अंतिम मुद्दा शेष रह गया है - देशभर में समान नागरिक संहिता कानून लागू करना। भाजपा सरकार, अपने तीसरे वायदे को पूरा करने की दिशा में भी आगे बढ़ चुकी है।
हालांकि, समान नागरिक संहिता कानून के पड़ने वाले व्यापक प्रभाव के मद्देनजर सरकार और भाजपा इसे लेकर बहुत ज्यादा जल्दबाजी नहीं करना चाहती है। क्योंकि इस कानून के लागू होने का असर देश के मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ ईसाई और सिख सहित अन्य समुदायों पर भी पड़ेगा।
हिंदू धर्म में भी अलग-अलग रीति रिवाज और परंपराओं को मानने वाले अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के साथ-साथ दलितों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा। कई दशकों तक लगातार प्रयास करने के बाद आज भाजपा नॉर्थ ईस्ट के कई राज्यों में सरकार चला रही है। अगर देशभर में यूसीसी लागू होता है तो इसका बड़ा प्रभाव पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले लोगों पर भी पड़ना तय है ही।
यही वजह है कि सरकार और भाजपा, दोनों की कोशिश फिलहाल इस मुद्दे पर देश में ज्यादा से ज्यादा चर्चा कराने की है ताकि सभी वर्गों के लोगों के विचार सामने आ सके।
यूसीसी को लेकर जारी विवाद के बीच यह भी स्पष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता का मकसद सभी पर, सभी मायनों में एक जैसा कानून या नियम थोपना भर नहीं है बल्कि देश के विभिन्न धर्मों और वर्गो की आस्था और पहचान से जुड़े विषयों का भी पूरा सम्मान किया जाएगा। हाल ही में यूसीसी मसले पर कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय मामलों की संसद की स्थायी समिति की बैठक बुलाने वाले समिति के अध्यक्ष एवं भाजपा राज्य सभा सांसद सुशील मोदी ने भी प्रस्तावित समान नागरिक संहिता से आदिवासियों और उत्तर पूर्वी राज्यों को बाहर रखने की वकालत की।
सरकार के फैसले से भी यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि वह यूसीसी पर सभी पक्षों को साध कर ही आगे बढ़ना चाहती है। हाल ही में मोदी सरकार ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर सभी महत्वपूर्ण पक्षों से और सभी पहलुओं पर विचार विमर्श करने के लिए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की अध्यक्षता में अनौपचारिक तौर पर मंत्रियों के जिस जीओएम का गठन किया है, उसमें शामिल मंत्रियों को अलग-अलग तबके से बात करने की जिम्मेदारी भी दी है।
इस अनौपचारिक जीओएम में शामिल केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू आदिवासी से जुड़े मसलों पर, स्मृति ईरानी महिला अधिकारों से जुड़े मसलों पर जी किशन रेड्डी पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़े मसलों पर और अर्जुन राम मेघवाल कानूनी पहलुओं से जुड़े मसलों पर विचार विमर्श करेंगे। दरअसल, भाजपा समान नागरिक संहिता को लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियों और देश में बनाए जा रहे माहौल को लेकर बहुत सतर्क है और फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है। विधि आयोग द्वारा लोगों से यूसीसी को लेकर सुझाव और राय मांगने से देशभर में इस पर राष्ट्रीय बहस शुरू हो गई है।
वहीं भाजपा और भाजपा की विचारधारा से जुड़े आरएसएस और आरएसएस से जुड़े -- मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन भी इसे लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार चर्चा और संवाद कर रहे हैं ताकि मुस्लिमों सहित समाज के हर तबके,समुदाय और हर वर्ग की राय खुलकर सार्वजनिक तौर पर देश की जनता के सामने आ जाए और उस आधार पर सरकार अपनी भविष्य की रणनीति तय कर सके। यह माना जा रहा है कि भाजपा देशभर में यूसीसी लागू करने की प्रयोगशाला उत्तराखंड को बना सकती है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य में यूसीसी लागू करने के ड्राफ्ट के लिए पहले ही समिति का गठन कर चुके हैं।
हाल ही में अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष से अलग-अलग मुलाकात कर समान नागरिक संहिता कानून के ड्राफ्ट को लेकर अहम चर्चा भी की थी।