रायबरेली में कांग्रेस के किले में बीजेपी ने लगाई सेंध, अदिति सिंह और राकेश सिंह को मिला टिकट, जानिए इनके बारे में...
रायबरेली: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बीच कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले रायबरेली में कद्दावर नेता अदिति सिंह और राकेश सिंह ने हाथ का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. इन दोनों ही नेताओं पर कांग्रेस छोड़ने के बाद बीजेपी मेहरबान हो गई और उन्हें उम्मीदवार भी घोषित कर दिया.
यूची चुनावों के लिए बीजेपी ने उम्मीदवारों की जो दूसरी लिस्ट जारी की है उसमें सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की 2 सीटों पर भी उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं. इन दोनों सीटों पर पूर्व कांग्रेस नेता अदिति सिंह और राकेश सिंह को मैदान में उतारा गया है.
बता दें कि अदिति सिंह और राकेश सिंह 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर जीतकर यहां से विधानसभा पहुंचे थे. दोनों ही नेता बगावती तेवर के साथ अलग-अलग मुद्दों पर कांग्रेस को घेरते रहे थे.
भारतीय जनता पार्टी ने अदिति सिंह को रायबरेली सदर सीट से, वहीं राकेश सिंह को हरचंदपुर विधानसभा सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया है. ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर अदिति सिंह और राकेश सिंह कौन हैं और रायबरेली में इनका राजनीतिक वजूद क्या है.
रायबरेली सीट पर 33 सालों से अदिति सिंह के परिवार का दबदबा
बीते 70 सालों में रायबरेली की बात करें तो यह गांधी परिवार का गढ़ रहा है लेकिन बीते 33 सालों से सदर विधानसभा पर एक ही परिवार का वर्चस्व बना रहा है. यह परिवार कोई और नहीं बल्कि अदिति सिंह का परिवार है.
रायबरेली की सदर विधानसभा से पहली बार पूर्व सांसद अशोक सिंह जनता दल के टिकट पर साल 1989 में विधायक चुने गए.
1993 में उन्होंने यह सीट अपने भाई बाहुबली विधायक अखिलेश सिंह के लिए छोड़ दी जिन्हें कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया था. 1993 से अखिलेश सिंह की जीत का सिलसिला शुरू हुआ तो वो लगातार पांच बार इस सीट पर चुनाव जीते.
साल 2003 राकेश पांडे हत्याकांड में नाम सामने आने के बाद उन्हें कांग्रेस ने पार्टी से निकाल दिया जिसके बाद वह एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और फिर विधायक बने. आखिरी बार वह 2012 में इस विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बने थे.
साल 2017 में स्वास्थ्य खराब होने वजह से उन्होंने अपनी सीट बेटी के लिए छोड़ दी और कांग्रेस ने बाहुबली अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया. अदिति सिंह साल 2017 में लगभग 89000 मतों से अपने विरोधियों को धूल चटाते हुए चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची.
जिस अदिति सिंह को कांग्रेस ने बड़े तामझाम के साथ अपनी पार्टी में शामिल किया था और संगठन में बड़ा पद दिया था वही आदिति सिंह 2022 आते-आते कांग्रेस के लिए ही सबसे बड़ी चुनौती बन गई हैं क्योंकि इस बार उन्हें कांग्रेस ने नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है.
प्रियंका गांधी को आदर्श मानने वाली अदिति सिंह गांधी परिवार के करीब दिखाई देती रही लेकिन धीरे-धीरे उनकी निकटता खटास में बदलने लगी थी.
2017 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद अदिति सिंह का कांग्रेस से मोहभंग हो रहा था और बीजेपी की तरफ उनकी निकटता जगजाहिर होने लगी थी. विधानसभा के कई मुद्दों पर अदिति सिंह कांग्रेस का विरोध करती दिखाई दे रही थी वहीं भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करती नजर आ रही थीं.
हाल के दिनों में अदिति सिंह ने लखनऊ जाकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस विधायक राकेश सिंह को लक्ष्मीकांत बाजपेई की अगुवाई में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की एक रैली में रायबरेली में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता दिलवाई गई थी.
अब दोनों ही नेता कांग्रेसी से भाजपाई बन गए हैं. दोनों को ही कांग्रेस के किले में सेंध लगाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपना सिपहसालार बना लिया है.
हरचंदपुर सीट पर राकेश सिंह के परिवार का प्रभाव
अब बात करते हैं हरचंदपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर उम्मीदवार बने राकेश सिंह की जो अभी वहां के मौजूदा विधायक हैं. वैसे तो राकेश सिंह का कोई बहुत बड़ा राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है लेकिन अब रायबरेली में उनके परिवार की राजनैतिक उपस्थिति को किसी भी तरीके से कमतर नहीं आंका जा सकता.
राकेश सिंह के भाई दिनेश प्रताप सिंह वर्तमान में एमएलसी हैं और 2019 में सोनिया गांधी के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं.
वहीं राकेश सिंह की भाभी और भाई पूर्व में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भी काबिज रह चुके हैं. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि रायबरेली की राजनीति भी इस परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती है.
पहली बार राकेश सिंह ने 2017 में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर हरचंदपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राहुल लोधी को हराकर विधानसभा पहुंचे थे.