ओडिशा। ओडिशा में भविष्य की राजनीति को देखते हुए भाजपा ने राज्य में सत्तारूढ़ बीजद से गठबंधन न कर अकेले लड़ने का फैसला कर एक साथ कई मोर्चों पर काम शुरू कर दिया है। राज्य में बीजद के विकल्प के रूप में अपनी मजबूत पकड़ बनाना और लोकसभा, विधानसभा में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना इस रणनीति का हिस्सा है। पार्टी बीजद के अंदरूनी संकट का भी लाभ उठा रही है, जिसमें वीके पांडियन के चलते उसके कई नेता भाजपा में आ रहे हैं।
ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव एक साथ होने से खासा महत्वपूर्ण है। एक साथ चुनाव होने से बीजद को नवीन पटनायक की लोकप्रियता का खासा लाभ मिलता है और भाजपा को अन्य राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का जो लाभ मिलता है, वह नहीं मिल पाता है। हालांकि इस बार बीजद के अंदरूनी हालात अलग है और भाजपा उसी का लाभ लेने की जुगत में हैं। बीजद प्रमुख और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के करीबी नौकरशाह के पार्टी में बढ़ते हस्तक्षेप से नाराजगी बढ़ रही है। भाजपा भी राज्य में पांडियन को ही मुद्दा बना रही है और अगले पांच साल में सत्ता में आने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
भतृहरि महताब का भाजपा में आना इसका सबसे ताजा उदाहरण है। अभी कुछ और प्रमुख नेता बीजद छोड़कर भाजपा में आ सकते हैं। भाजपा नेताओं का मानना है कि इस बार बीजद नवीन पटनायक का आखिरी चुनाव बताकर लोगों से विधानसभा में सहानुभूति बटोर सकती है, लेकिन लोकसभा में मोदी की गारंटी भारी पड़ेगी। इस सबमें सबसे ज्यादा नुकसान में कांग्रेस है, जिसके लिए राज्य में अपनी यथास्थिति बनाए रख पाना भी मुश्किल हो रहा है। इसके पहले कांग्रेस को उम्मीद थी कि बीजद व भाजपा का गठबंधन होने पर वह अकेली विपक्ष में रहेगी और सत्ता विरोधी वोट के जरिये अपनी स्थिति मजबूत करने में सफल रहेगी।