नई दिल्ली: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बीरभूम जिले के रामपुरहाट की घटना में स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया। चीफ जस्टिस की बेंच आज दोपहर 2 बजे मामले की सुनवाई करेगी।
बीरभूम में पहली बार नरसंहार नहीं हुआ
बीरभूम में 8 लोगों को जलाकर मौत के घाट उतार दिया गया। यह नरसंहार बंगाल की राजनीतिक हिंसा की सूची में जुड़ने वाला एक और कांड है। बंगाल में सत्ता बदली लेकिन यहां के हालात नहीं बदले। राज्य का इतिहास छोटू अंगरिया, नानूर, नेताई या कोलकाता के बिजन सेतु में आनंद मार्गियों की भीड़ और मार्च 1970 में बर्दवान में सैनबारी हत्याओं जैसी घटनाओं से भरा पड़ा है।
फर्क सिर्फ इतना है कि कई मामलों में तृणमूल कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी के लोगों के हमले का शिकार होते हैं जबकि वाम मोर्चा शासन के दौरान नरसंहार सीपीएम और कांग्रेस के बीच और बाद में तृणमूल के साथ हुए। 2007 में नंदीग्राम में 14 लोगों की हत्या इस सूची में सबसे ऊपर थी, हालांकि इस घटना ने राज्य की सतत्ता पलट दी।
बोगटुई में मंगलवार को बरामद जले हुए शवों ने 22 साल पहले बीरभूम के सुचपुर में नानूर थाने के तहत इसी तरह की घटना की यादें ताजा कीं। 22 साल पहले जब सीपीएम कार्यकर्ताओं ने 27 जुलाई, 2000 को एक घर के अंदर कथित तौर पर 11 खेतिहर मजदूरों को जिंदा जला दिया था।
2001 में छोटू अंगरिया में कथित तौर पर सीपीएम के लोगों ने 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। छोटू अंगरिया मामले में सीबीआई ने सीपीएम के कुछ लोगों को पकड़ा था। दस साल बाद, जनवरी 2011 में, पश्चिम मिदनापुर में एक सीपीएम कार्यकर्ता के घर से कथित रूप से गोलीबारी में नौ लोग मारे गए थे। इन सभी घटनाओं ने मई 2011 में सत्ता परिवर्तन की और जब ममता बनर्जी सीएम बनीं।