भारत के इतिहास में सबसे बड़ी सजा, पढ़े जब कांस्टेबल के फोन कॉल से अवाक रह गए थे पुलिस के बड़े अफसर
अहमदाबाद: 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद शहर में एक के बाद एक कुल 22 बम विस्फोट हुए। 75 मिनट के भीतर 56 लोगों की जान चली गई और 240 लोग घायल हो गए। प्रतिबंधित आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ने सीरियल धमाकों की जिम्मेदारी ली थी। जांच एजेंसी के पास सबसे बड़ी चुनौती मास्टरमाइंड को पकड़ने और उन्हें न्याय के कटघरे में खड़ा करने की थी। उस खूनी दिन के बाद, सभी कानून प्रवर्तन एजेंसियां मामले को सुलझाने में लगी थीं। संयुक्त पुलिस आयुक्त आशीष भाटिया और पुलिस उपायुक्त अभय चुडास्मा के नेतृत्व में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को यह मामला सौंपा गया था।
सभी जांच अधिकारी इस केस को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए अत्यधिक दबाव में थे। उन्होंने मुखबिरों को एक्टव किया और चौबीसों घंटे काम करके लीड हासिल करने की पूरी कोशिश की। शुरुआत में कुछ सफलता भी मिली, लेकिन कोई ठोस सुराग नहीं मिल रहा था।
आपको बता दें कि विस्फोटों में मुख्य रूप से साइकिल बमों का उपयोग किया गया था। एलजी अस्पताल और सिविल अस्पताल में विस्फोट कारों के अंदर रखे गैस सिलेंडर का उपयोग करके किया गया था। पुलिस इन वाहनों के बारे में किसी भी जानकारी का पता लगाने में असमर्थ थी। उनके पास इस बात का कोई सुराग नहीं था कि वे कहां से आए थे और किसके थे।
पहली सफलता कब मिली?
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब ऐसा लगा कि जांच का अंत हो गया, तो डीसीपी अभय चुडास्मा को भरूच में याकूब अली नाम के एक कांस्टेबल का अचानक फोन आया। कांस्टेबल का पहला सवाल यह था कि क्या उसे विस्फोटों को अंजाम देने वाली कार के बारे में कोई सूचना मिली है। चुडास्मा शुरू में मामले का कोई विवरण साझा करने को तैयार नहीं थे, लेकिन फिर याकूब अली ने कहा, "सर, मैंने विस्फोट मामले की तस्वीरें देखी हैं। जिन कारों का इस्तेमाल अस्पतालों में विस्फोटों के लिए किया गया था, मैंने उन्हें भरूच में देखा है।" अभय चुडास्मा अवाक रह गए। याकूब ने आगे कहा, "मैंने इन दोनों वाहनों को भरूच में देखा था। मुझे लगता है कि मैंने इन वाहनों को भरूच में रहने वाले गुलाम भाई की पार्किंग में उनके घर के पास से गुजरते हुए देखा था।''
याकूब को मिला जांच का आदेश
जानकारी साझा करते ही तुरंत चुडास्मा ने याकूब को यह जांचने का आदेश दिया कि कारें किसके हैं और उन्हें कौन लाया था। याकूब दौड़कर गुलाम भाई के घर पहुंचा। उनके हाथ में एक पुराना अखबार था। उसने गुलाम भाई को अखबार में छपी कार की तस्वीर दिखाई और पूछा कि क्या वह कार को पहचानता है।
गुलाम भाई ने दी कार की जानकारी
गुलाम भाई अवाक रह गए। उसने अखबार की तस्वीर की जांच की और याकूब को बताया कि कार कुछ लोगों की कार से मिलती-जुलती थी, जो कुछ दिनों के लिए उसके घर किराए पर रहती थी। गुलाम भाई से कार के मालिक का पता लेने के बाद याकूब तुरंत पुलिस स्टेशन लौट आया और यह जानकारी उसने डीसीपी चुडास्मा को दे दिया। उस समय याकूब अली को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसे मिली जानकारी कितनी मूल्यवान होगी। इसने पूरी जांच का रुख ही बदल दिया।
वन मैन सर्विलांस
याकूब अली की तरह एक अन्य कांस्टेबल ने जांच में प्रमुख भूमिका निभाई। कांस्टेबल दिलीप ठाकुर को अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाकों के दौरान कॉल करने वाले सभी फोन नंबरों की निगरानी का काम सौंपा गया था। ठाकुर ने मैन्युअल रूप से लाखों फोन नंबरों की जांच की और जांच अधिकारियों को कुछ संदिग्ध नंबर दिए गए। इसके बाद क्राइम ब्रांच लखनऊ के अबू बशर तक पहुंची, जो अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस का मुख्य आरोपी था।