BIG BREAKING: वर्कलोड की वजह से CA की मौत

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Update: 2024-09-18 13:44 GMT
New Delhi. नई दिल्ली। कॉर्पोरेट कल्चर का जिक्र आने पर दिन-रात काम करते हुए युवा चेहरों की तस्वीर अपने-आप खिंच आती है. लेकिन चौबीसों घंटे काम या इसका तनाव जानलेवा साबित हो रहा है. पुणे के Ernst & Young में काम करने वाली अन्ना सेबेस्टियन की मौत इसी कॉर्पोरेट का खौफनाक चेहरा सामने लाती है. यहां काम करने वाले जाना कि 24*7 के असल मायने क्या हैं, और ये कितना घातक साबित हो रहा है. दफ्तरों में होने वाली दिक्कतों पर बात करने वाले ग्लोबल थिंक टैंक यूकेजी वर्कफोर्स इंस्टीट्यूट ने मार्च 2024 में एक आंकड़ा जारी किया, जो चौंकाता है. इसके मुताबिक, भारत में काम कर रहे करीब 78 फीसदी कर्मचारी बर्नआउट की शिकायत करते हैं. ये वो स्थिति है, जब मन और शरीर दोनों इतनी थकान से भर जाए कि कुछ भी प्रोडक्टिव न हो सके. ये बर्नआउट कितना असल है, इसका अंदाजा इस बात से लगा लें कि इनमें से 64 फीसदी लोगों ने माना कि अगर थोड़ी तनख्वाह कटवाने पर उनका वर्कलोड कम हो सके, तो वे खुशी-खुशी तैयार हैं।

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन का भी कहना है कि भारत दुनिया के उन टॉप देशों में है, जहां वर्क वीक सबसे लंबा होता है. एक औसत कामकाजी भारतीय हफ्ते में लगभग 48 घंटे काम करता है, वहीं अमेरिका में ये लगभग 37 घंटे, जबकि यूके में 36 घंटे है. हमारे यहां लेबर लॉ सप्ताह में 48 घंटे काम की इजाजत देता रहा. यहां तक भी ठीक है, लेकिन कॉर्पोरेट की स्थिति कहीं ज्यादा खराब है. कोविड में वर्क फ्रॉम होम के दौरान काम के घंटे जो खिंचे तो खिंचते ही चले गए. ये शिकायत कॉर्पोरेट में काम करते लगभग सबकी है. नाम जाहिर न करने की शर्त पर मुंबई के एक कॉर्पोरेट में मिड लेवल कर्मचारी कहते हैं- रोज कई-कई क्लाइंट और रोज कितनी ही डेडलाइन हमारे सिर पर रहती हैं. कुछ भी मिस न हो जाए, इसके लिए मेरे लैपटॉप से लेकर घर की वर्क वॉल पर भी स्टिकर ही स्टिकर लगे हैं. इसके बाद भी काम पूरा नहीं होता. वैसे तो शिफ्ट 9 घंटे की है, लेकिन पिछले तीन सालों में एक बार भी वक्त पर लैपटॉप बंद नहीं हो सका।

इंटरनेशनल एमएनसी में काम करने वाली चेतना भगत के लिए जूम कॉल सबसे बड़ा टॉर्चर है. वे बताती हैं- हमारा हेड ऑफिस न्यूयॉर्क में बैठता है. उनसे कदमताल के लिए हमें चौबीसों घंटे तैयार रहना पड़ता है. आएदिन कोई ईमेल आता है, जिसपर बहुत ही सभ्य जबान में वो मीटिंग का वो समय मेंशन्ड होता है, जो हमारे लिए देर रात है, या अलसुबह. हम कभी मना नहीं कर सकते. हर वक्त येस बॉस ही लिखना पड़ेगा, वरना अप्रेजल नहीं मिलेगा। मैटरनिटी लीव से लौटी अर्चना कहती हैं- इतने वक्त बाद काम पर लौटी तो वैसे ही धुकधुकी लगी हुई थी. बॉस तक बदल चुके थे. वे मेरे काम के बारे में सुनी-सुनाई ही जानते हैं. आने के दो हफ्ते तक तो मुझे साइडलाइन करके रखा गया, फिर ऐसा काम दे दिया जो मेरे तजुर्बे से काफी कम है. शिकायत करने पर मुझे शिफ्ट ड्यूटी में डाल दिया. अब छोटी बच्ची को छोड़कर मैं शिफ्ट कर रही हूं. वर्क-लाइफ बैलेंस एकदम खत्म हो गया. शुरुआत में घर के लोगों ने मदद की, अब वे भी मुझे मेरे हाल पर छोड़ चुके।
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