वकील को बड़ा झटका, कोर्ट का समय बर्बाद करने पर हुआ ये एक्शन
जानें पूरा मामला.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया में वीडियोग्राफी की प्रामाणिकता, अखंडता, सुरक्षा और सत्यापन के संबंध में याचिका करके न्यायालय का कीमती समय बर्बाद करने के लिए अधिवक्ता महमूद प्राचा पर एक लाख का हर्जाना लगाया है। कोर्ट ने उनके आचरण पर भी आपत्ति जताई कि वह (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से) कोट व बैंड पहनकर आए और अपने केस में न्यायालय को सूचित किए बिना बहस की कि वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो रहे हैं। न्यायालय ने उन्हें भविष्य में सतर्क रहने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि वह न्यायालय की मर्यादा और गरिमा बनाए रखें।
न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ एवं न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने आदेश में कहा कि महमूद प्राचा ने पहले भी दिल्ली हाईकोर्ट में समान विषय पर दो याचिकाएं की थीं। जिनमें उनकी संतुष्टि के अनुसार आदेश किए गए थे। इसके बावजूद उन्होंने इसी तरह की राहत की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। ऐसे में न्यायालय यह नहीं समझ पा रहा है कि जब उन्होंने एक ही विषयवस्तु (वर्ष 2024 के लिए उत्तर प्रदेश में 7-रामपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव) के संबंध में पहली दो रिट याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट में करने का विकल्प चुना था, तो उन्होंने उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट का रुख क्यों किया।
एडवोकेट प्राचा के कोट और बैंड पहनकर व्यक्तिगत रूप से दाखिल मामले पर बहस करने के उनके आचरण के संबंध में कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया। यह देखते हुए कि एडवोकेट प्राचा ने बहस करने से पहले अपना बैंड नहीं उतारा था। न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह व्यवहार बार के एक वरिष्ठ सदस्य के लिए अनुचित था, जिसे व्यक्तिगत रूप से बेंच को संबोधित करते समय आवश्यक बुनियादी शिष्टाचार के बारे में पता होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि बार के वरिष्ठ सदस्य से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की जाती। उनसे व्यक्तिगत रूप से बेंच को संबोधित करते समय पालन किए जाने वाले बुनियादी शिष्टाचार के बारे में जानकारी होने की उम्मीद की जाती है। श्री प्राचा को भविष्य में सतर्क रहने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि वह न्यायालय की मर्यादा और गरिमा बनाए रखें। ध्यान देने योग्य एक और पहलू यह है कि याची ने यह रिट याचिका अधिवक्ता उमर जामिन के माध्यम से की थी। ऐसा करने के बाद वह अपने वकील को हटाए बिना या न्यायालय से अनुमति लिए बगैर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सकते थे।
कोर्ट ने इस तथ्य के मद्देनजर कि याचिका गलत तरीके से की गई थी और इसके परिणामस्वरूप इस न्यायालय का बहुमूल्य समय नष्ट हुआ। साथ ही व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के दौरान उनके द्वारा अपनाई गई अनुचित कार्यप्रणाली के कारण न्यायालय ने उनकी याचिका को एक लाख रुपये के हर्जाने के साथ खारिज कर दिया। जिसे उन्हें 30 दिनों के भीतर उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भुगतान करना होगा। कोर्ट ने कहा कि हर्जाने का भुगतान नहीं किया जाता तो रजिस्ट्रार जनरल को कानून के अनुसार इसे वसूलने के लिए आवश्यक कार्रवाई करेंगे।