बंदी संजय की यूसीसी समर्थक बयानबाजी तेलंगाना में भाजपा की मंशा की ओर करती है इशारा

Update: 2022-12-17 06:24 GMT
हैदराबाद (आईएएनएस)| भाजपा के एक सांसद द्वारा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश करने और भाजपा शासित कई राज्यों जाने द्वारा यूसीसी को लागू करने की घोषणा ने इस विवादास्पद मुद्दे को राजनीति के केंद्र में ला दिया है।
अपनी स्थापना के बाद से भाजपा के एजेंडे में तीन प्रमुख मुद्दों में से यूसीसी एक रहा है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और धारा 370 को खत्म करने में मिली सफलता के बाद अब भगवा पार्टी की निगाहें तीसरे लक्ष्य पर टिकी हैं।
राज्यों में धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय और भाषाई समूहों की विविधता और उनकी प्रथाओं को देखते हुए देश आखिरकार यूसीसी के लिए सहमत होगा या नहीं, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा को लगता है कि इस भावनात्मक मुद्दे से उसे चुनाव में लाभ मिल सकता है।
अगले साल कई राज्यों में चुनाव होने हैं और उसके बाद 2024 में आम चुनाव होने हैं, ऐसे में भाजपा ध्रुवीकरण के मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर सकती है।
उत्तराखंड राज्य में यूसीसी की संभावना का पता लगाने के लिए एक पैनल गठित करने वाला पहला राज्य है। मध्य प्रदेश ने भी घोषणा की कि राज्य में यूसीसी को लागू करने के लिए एक समिति गठित की जाएगी।
भाजपा ने यूसीसी को हिमाचल प्रदेश चुनाव में अपने घोषणापत्र का हिस्सा बनाया था, लेकिन पार्टी जीतने में नाकाम रही। गुजरात में, जहां भाजपा ने रिकॉर्ड बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रखी, कुछ महीने पहले किए गए वादे के अनुसार यूसीसी की दिशा में कदम उठाने की संभावना है।
2023 के अंत में तेलंगाना में होने वाले विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए भाजपा द्वारा इस विवादास्पद मुद्दे का उपयोग करने की संभावना है।
ऐसे राज्यों में जहां भाजपा के नेताओं को पार्टी के सत्ता में आने का मौका दिखाई दे रहा है, वहां इसके जरिए वे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक पी. राघवेंद्र रेड्डी कहते हैं, ''बीजेपी इमोशनल इश्यू का इस्तेमाल नैरेटिव तैयार करने के लिए कर सकती है और इस तरह वह खुद को उन इलाकों में और मजबूत कर सकती है, जहां उसे पहले से ही मजबूत माना जाता है।''
उन्होंने कहा, राज्य भाजपा अध्यक्ष बंदी संजय जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, अगर पार्टी इसे चुनाव में अहम मुद्दा बनाने का फैसला करती है तो आश्चर्य नहीं होगा।
बंदी संजय ने दोबारा चुने जाने के बाद समान नागरिक संहिता को लागू करने के वादे के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सराहना की थी। सासंद संजय ने कहा था कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने वोट बैंक की राजनीति से हटकर भाजपा के मिशन को आगे बढ़ाने की बात कही है।
उन्होंने कहा था, मुझे यकीन है कि यह बहुत जरूरी और प्रतीक्षित सुधार देवभूमि से शुरू होने के बाद पूरे देश में फैल जाएगा।
अपनी प्रजा संग्राम यात्रा के दौरान संजय कई विवादास्पद मुद्दों को उठाते रहे हैं। भाजपा नेता, जिन्होंने 15 दिसंबर को अपने वॉकथॉन के पांचवें चरण को पूरा कर लिया, अब बाद के चरणों में इस मुद्दे को उठाने की संभावना है। वह पहले ही कुछ अन्य मुद्दों पर अपनी टिप्पणियों से विवाद खड़ा कर चुके हैं।
भाजपा नेता ने सभी मस्जिदों में खुदाई कार्य की मांग करते हुए कहा कि इनके नीचे शिवलिंग मिलने की संभावना है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भाजपा तेलंगाना में सत्ता में आती है, तो वह सभी मदरसों को बंद कर देगी, मुसलमानों के लिए आरक्षण समाप्त कर देगी और उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में हटा देगी।
संजय भड़काऊ भाषण देते रहे हैं और खुद को हिंदुओं के अधिकारों के चैंपियन के रूप में पेश करते रहे हैं। वह बार-बार अपने भाषणों में इस बात का जिक्र करते हैं कि हिंदुओं की आबादी 80 फीसदी है।
पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के रूप भारत राष्ट्रीय समिति (बीआरएस) द्वारा यूसीसी के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाने की संभावना है। अतीत में पार्टी ने यूसीसी लाने के कदम का विरोध किया था।
चूंकि मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली पार्टी को मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल है, इसलिए उस पर यूसीसी के खिलाफ बोलने का दबाव होगा।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), जो राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक ताकत है और बीआरएस और अन्य मुस्लिम राजनीतिक और सामाजिक-धार्मिक समूहों के साथ यूसीसी लाने के किसी भी कदम का कड़ा विरोध करती रही है।
आंध्र प्रदेश में, जहां 2024 में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं, सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) द्वारा यूसीसी का विरोध करने की संभावना है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चूंकि आंध्र प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना नहीं है, इसलिए इस मुद्दे को उठाने से भाजपा को कोई बड़ा लाभ नहीं मिल सकता है।
हालांकि टीआरएस और वाईएसआरसीपी दोनों ने संसद में तीन तलाक और कुछ अन्य विवादास्पद कानूनों पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयक का समर्थन किया था, लेकिन वे यूसीसी का समर्थन करके अल्पसंख्यकों के समर्थन को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।
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