नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और रामपुर से विधायक आजम खान को आखिरकार जमानत मिल ही गई. सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने गुरुवार को आजम खान को अंतरिम जमानत दे दी. यूपी के सीतापुर जेल में वो 27 फरवरी 2020 से बंद हैं. अब देश की सबसे बड़ी अदालत से राहत मिलने के बाद आजम खान 27 महीने बाद जेल से बाहर आएंगे.
वैसे ये पहला मौका नहीं है जब आजम खान महीनों जेल में बिताकर आ रहे हों. आपातकाल के दौरान भी वे जेल में रहे थे. इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में देश में लगाई गई इमरजेंसी का विरोध करने के चलते आजम खान को जेल जाना पड़ा था. तब वो 19 महीने सलाखों के पीछे रहने के बाद बाहर आए थे.
साल 2017 में यूपी में योगी सरकार के आने के बाद आजम खान के खिलाफ ऐसा कानूनी शिकंजा कसा कि एक के बाद एक कुल 89 मुकदमे दर्ज हो गए. 26 फरवरी 2020 को आजम रामपुर में गिरफ्तार हुए और 27 फरवरी 2020 से सीतापुर की जेल में बंद हैं. अब 27 महीने जेल में रहने के बाद आजम खान को सभी मामलों में जमानत मिल गई है.
देश में करीब पांच दशक पहले 1975 में जब इमरजेंसी लगी थी, तब आजम खान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्र संघ के महासचिव थे. छात्र संघ की बैठक में आजम खान ने प्रस्ताव रखा था कि कांग्रेस का कोई भी नेता अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैंपस में प्रवेश नहीं करेगा. इस कारण कांग्रेस के नेता उनसे खफा हो गए.
आजम खान आपातकाल के विरोध में यूनिवर्सिटी में छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. इसी के चलते उन्हें भारतीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में मीसा (आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम) लगाकर जेल में डाल दिया गया. आपातकाल के दौरान आजम खान को जेल की पांच गुणा आठ फीट की कोठरी में रखा गया था, जहां न धूप पहुंचती थी और न हवा.
जेल में आजम की कोठरी जमीन से छह फीट नीचे थी. वे इसी कोठरी में शौच-पेशाब करते थे. आजम खान ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पायजामे का नाड़ा भी जेल कर्मियों ने निकाल दिया था ताकि वे फांसी न लगा सकें. आजम खान आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में रहे, लेकिन काल कोठरी में उनके ये 20 दिन सबसे बुरे गुजरे थे .
जेल में रहते हुए आजम खान ने जिलाधिकारी और जेल अधीक्षक को अवगत कराया कि वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एलएलएम फाइनल के छात्र हैं. ऐसे में उन्हे बी क्लास जेल की सुविधा दी जाए, तब कहीं जाकर उन्हें उस काल कोठरी से निजात मिली थी और फिर उनकी जगह बदली गई.
आजम खान ने एक बार इंटरव्यू में बताया था कि इमरजेंसी के दौरान उनके परिजनों पर भी बहुत दबाव बनाया गया. उनके बड़े भाई शरीफ खान इंजीनियर थे. ऐसे में उनके चीफ ने बुलाकर कहा कि अपने भाई आजम से कहो कि वह माफी मांगे, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद आजम के भाई को नौकरी से इस्तीफा देना पड़ गया. 19 महीने जेल में रहने के बाद 1977 में आजम खान रिहा हुए और फिर सियासत में कदम रखा.
आजम खान 10वीं बार विधायक हैं और दो बार सासंद रहे. सपा की सभी सरकारों में आजम खान मंत्री रहे और उनकी पूरी राजनीति रामपुर नवाब खान, कांग्रेस और बीजेपी के विरोध पर टिकी रही. आजम खान सपा के सबसे कद्दावर मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं, लेकिन उनकी उलटी गिनती 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद शुरू हुई. बीजेपी की सरकार बनने के बाद आजम खान, उनकी पत्नी तंजीम फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम पर एक के बाद एक मुकदमे दर्ज किए गए.
26 फरवरी 2020 को आजम खान, तंजीम फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम ने रामपुर की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. इसके बाद उन्हें रामपुर जेल में रखा गया और दूसरे दिन 27 फरवरी को सुबह तीनों को सीतापुर जेल में शिफ्ट किया गया. जिला प्रशासन को आशंका थी कि आजम खान के रामपुर में रहने से जिले की कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है. दिसंबर 2021 में उनकी पत्नी जमानत पर जेल से बाहर आईं और फिर मार्च 2022 में अब्दुल्ला आजम को जमानत मिली और अब 27 महीने के बाद आजम खान जेल से बाहर आएंगे.