अतीक की बहन ने की हत्याकांड की जांच सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराने की मांग
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में मारे गए गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की बहन आयशा नूरी ने सुप्रीम कोर्ट से हत्याकांड की जांच सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयाेग से कराने की मांग की है।
मारे गए गैंगस्टरों की मेरठ निवासी बहन नूरी ने याचिका में कहा कि प्रतिवादी-पुलिस अधिकारी यूपी सरकार के समर्थन का आनंद ले रहे हैं, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें प्रतिशोध वश याचिकाकर्ता के सदस्यों को मारने, अपमानित करने, गिरफ्तार करने और परेशान करने की पूरी छूट मिल गई है।
नूरी ने यूपी सरकार द्वारा मुठभेड़ में हत्याओं, गिरफ्तारियों और उसके परिवार के उत्पीड़न के अभियानों की जांच के आदेश देने की मांग की। याचिका में कहा गया है,“याचिकाकर्ता के पास राज्य को इन घटनाओं की प्रभावी ढंग से जांच करने के लिए मजबूर करने का अधिकार है, क्योंकि अनुच्छेद 21 के तहत उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है। याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों को चुप कराने के लिए, राज्य उन्हें एक-एक करके झूठे मामलों में फंसा रहा है। ”
संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा कि यह याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों की हिरासत में हुई मौतों की प्रभावी ढंग से जांच करने के लिए राज्य के अधिकारियों पर एक सकारात्मक प्रक्रियात्मक दायित्व डालता है। उन्होंने अपने भतीजे और अतीक अहमद के बेटे की मुठभेड़ में हत्या की भी जांच की मांग की। याचिका में कहा गया है," जांच का उद्देश्य संविधान के तहत जीवन और स्वतंत्रता की गारंटी के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना है और यह सुनिश्चित करना है कि जहां भी राज्य के एजेंट और निकाय न्यायेतर हत्या के किसी भी मामले में शामिल हों, उन्हें इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाए।"
याचिका में तर्क दिया गया कि उसके परिवार के सदस्यों - अतीक अहमद, खालिद अजीम उर्फ अशरफ और अतीक के बेटे असद और उनके सहयोगियों की मौत दो पुलिस कर्मियों संदीप निषाद और राघवेंद्र सिंह की मौत का बदला लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे गैरकानूनी अभियान' का हिस्सा है। याचिका में दलील दी गई है कि टुकड़ों-टुकड़ों में की गई जांच, जो याचिकाकर्ता के परिवार के खिलाफ यूपी सरकार के अभियान के दौरान हुई एक-एक मुठभेड़/हत्याओं पर ही गौर करती है, उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी को सामने लाने में विफल रहेगी।
“इसके अलावा, यह उन अधिकारियों के बजाय प्रत्येक मामले में मौके पर मौजूद अधिकारियों पर मौतों का दोष केंद्रित करेगा, जो इस तरह के कृत्यों को अधिकृत करने, योजना बनाने और समन्वय करने के लिए जिम्मेदार हैं।” गौरतलब है कि फूलपुर के पूर्व सांसद अतीक और उनके भाई की 15 अप्रैल को पुलिस हिरासत में तीन शूटरों ने मीडिया के सामने उस समय हत्या कर दी थी, जब उन्हें मेडिकल जांच के लिए प्रयागराज के एक अस्पताल ले जाया जा रहा था। अतीक के बेटे असद को भी अप्रैल में झाँसी में एक मुठभेड़ के दौरान स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) की टीम ने मार गिराया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल को वकील विशाल तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्याओं के मामले में शुरू की गई जांच सहित उठाए गए कदमों को रिकॉर्ड में लाने का निर्देश दिया।