प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल, यहां जानें क्या है मांग

Update: 2022-05-25 08:09 GMT

नई दिल्ली: ज्ञानवापी, मथुरा, ताजमहल और कुतुब मीनार को लेकर जारी विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के खिलाफ (Places of Worship Act 1991) एक और याचिका दाखिल की गई है. इस याचिका में कहा गया है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का खुलकर उल्लंघन करता है. साथ ही यह नागरिक अधिकारों को लेकर भी अवैध है.

यह याचिका स्वामी जितेन्द्रनाथ सरस्वती की ओर से दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि 1192 से 1947 के बीच विदेशी हमलावरों ने हिंदू, सिख, जैन और बौद्धों के सैकड़ों धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया है. इतिहास में इसकी जानकारी और प्रमाण हैं. लेकिन ये कानून ऐसी जगहों पर देवी देवताओं की उपासना, सेवा और पूजा करने के अधिकार को हासिल करने के लिए कोर्ट जाने से रोकता है.
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
1990 में अयोध्या में राम मंदिर को लेकर आंदोलन हुआ था. उस वक्त मौजूदा नरसिम्हा राव सरकार ने देशभर में अलग-अलग धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ते विवाद को देखते हुए 11 जुलाई 1991 को Places of Worship Act 1991 लेकर आई थी. इस एक्ट के अनुसार 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था, भविष्य में भी उसी का रहेगा. लेकिन अयोध्या का मामला उस समय हाई कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था.
1991 में केंद्र सरकार जब ये कानून लाई तब भी संसद में इसका विरोध हुआ था और इस मामले को संसदीय समिति के पास भेजने की मांग उठाई गई थी. हालांकि ये एक्ट पास होकर लागू हो चुका था. इसके बाद नवंबर 2019 में राम मंदिर विवाद खत्म होने के बाद काशी और मथुरा सहित देशभर के लगभग 100 मंदिरों की जमीनों को लेकर दावेदारी की बात उठने लगी. लेकिन Places of Worship Act के कारण दावेदारी करने वाले लोग, अदालत का रास्ता नहीं चुन सकते, इससे ये विवाद और बढ़ता चला गया.
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