तमिलनाडु में भाजपा की किस्मत बदलेंगे अन्नामलाई

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Update: 2024-04-15 12:33 GMT
तमिलनाडु। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक से भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन समाप्त होने के बाद से साऊथ की राजनीति पर चर्चा बढ़ गईं है. तमिलनाडु में बीजेपी का यह आत्मविश्वास यूं ही नहीं है कि अब दक्षिण के इस राज्य में वह छोटे भाई की भूमिका में राजनीति नहीं करना चाहती है. तमिलनाडु विधानसभा में अभी पार्टी के केवल 4 विधायक हैं पर हौसलों का उड़ान 140 वाला दिख रहा है. तमिलनाडु की राजनीति अब तक अन्नादुरई के आसपास ही होती रही है. कांग्रेस के कमजोर होने के बाद द्रविड़ पार्टियों के इतर यहां राजनीति मुश्किल समझा जाता रहा है.पर अब लगता है कि बीजेपी इस परंपरा को तोड़ रही है. बीजेपी के इस कॉन्फिडेंस के क्या कारण हैं? आइए समझने की कोशिश करते हैं.

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तमिलनाडु के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई और एआईएडीएमके नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी दोनों एक ही जाति के हैं. ये दोनों गौंडर जाति से हैं जो पिछड़ों में राजनीतिक रूप से मजबूत हैं जैसे उत्तर भारत में यादव-कुर्मी आदि. तमिलनाडु में बीजेपी के दो विधायक इसी समुदाय से आते हैं. अन्नामलाई को सीएम कैंडिडेट बनाकर बीजेपी उत्तर भारत में जिस तरह ओबीसी पार्टी की पहचान बनाई है वैसे ही तमिलनाडु में करना चाहती है. जयललिता मंत्रिमंडल में पूर्व मंत्री नैनार नागेंद्रन को विधायक दल का नेता बनाकर भाजपा ने शक्तिशाली थेवर समुदाय को भी लुभाया है. सात उपजातियों का एक समूह वेल्लार है जो अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर निकलकर ओबीसी बनना चाहता है. उनका कहना है कि वो किसान हैं और उन्हें ओबीसी आरक्षण चाहिए न कि अनुसूचित जाति का. बीजेपी को इनका फुल सपोर्ट है.बीजेपी की रणनीति है कि अगर उनके साथ पिछड़े, ब्राह्णण और नाडार आ जाएं तो काम बन सकता है. ब्राह्रणों का वोट अभी फिलहाल एआईएडीएम को मिलता रहा है. उम्मीद की जा रही है कि जिस तरह अन्नामलाई ने तमिलनाडु में बीजेपी के पक्ष में बज क्रिएट किया है उसका सीधा लाभ इन जातियों के सपोर्ट के रूप में मिलेगा.
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