अमित शाह का बड़ा ऐलान: बोले- नरेंद्र मोदी को 2024 में PM बनाना है तो योगी आदित्यनाथ को फिर से CM बनाना होगा

Update: 2021-10-29 09:15 GMT
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नई दिल्ली: यूपी में 2022 चुनाव में बीजेपी का चेहरा कौन होगा. क्या चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ ही मुख्यमंत्री होंगे? तमाम अटकलों पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विराम लगा दिया है. लखनऊ में अपनी रैली में शाह ने साफ कहा कि अगर 2024 में मोदी जी को पीएम बनाना है तो योगी जी को सीएम बनाइए. इस ऐलान ने अमित शाह ने मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर पार्टी का रूख साफ कर दिया. अमित शाह ने कहा कि योगी जी ने 90 फीसदी वादे पूरे किए हैं. अपराध पर सख्ती का परिणाम है कि आज यूपी में बाहुबली ढूंढे नहीं मिल रहे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सपा सत्ता में वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही है तो बीजेपी अपने सियासी किले को अभेद्य बनाने में जुटी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शुक्रवार को लखनऊ पहुंचें. इस दौरान उन्होंने सपा-बसपा-कांग्रेस को निशाने पर लिया और कहा कि पांच साल पहले यूपी की हालत देखकर मेरा खून खौलता था, लेकिन आज न तो यूपी में कहीं पलायन हो रहा और न ही बाहुबली नजर आ रहे हैं.
अमित शाह ने कहा कि योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी घोषणापत्र के 90 फीसदी वादे पूरे किए है और दो महीने में बचे हुए वादे भी पूरे किए जाएंंगे ताकि जनता मानें की बीजेपी जो कहती है उसे पूरा करती है. इस दौरान उन्होंने कहा कि यूपी देश के सबसे ज्यादा युवा है. 53 फीसदी युवा हैं, जिनमें पार्टी से जोड़ा जाना चाहिए. गरीब, महिलाओं, दलित और पिछड़े को जोड़िए.
शाह ने कहा कि कुछ राजनीतिक पार्टियां ऐसी होती हैं जो हमेशा के लिए समाज सेवा का कार्य करती हैं. वहीं, विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक पार्टियां ऐसी होती हैं, जैसे बारिश में मेंढक बाहर आ जाता है, ऐसे चुनावी मेंढक भी चुनाव के समय ही बाहर आते हैं.
उन्होंने कहा कि यूपी में 15 सालों तक सपा बसपा का खेल चलता रहा है. यूपी को बर्बाद दिया था. यूपी की हालत देखकर मेरा खून खौल जाता था. कैराना से पलायन हो रहे थे, लेकिन पलायन कराने खुद पलायन कर गए हैं. किसी की हिम्मत नहीं है कि किसी पलायन करा दें. एक समय था कि हर जिले में एक दो बाहुबली थे, लेकिन आज दुरबीन में बाहुबली देखे नजर नहीं आते. यूपी की लड़की रात 12 बजे बिना डर के स्कूटी के साथ जेवर लेकर निकल सकती है.
उन्होंने कहा कि देश के अंदर पीएम मोदी ने बिजली पहुंचाने का काम किया. मोदी ने घोषणा कर दी थी हर घर में गैस पहुंचाएंगे, हमने हर गरीब के घर में गैस पहुंचाने का काम किया, शौचालय पहुंचाने का काम किया, दस करोड़ लोगों को घर देने का वादा पूरा किया. साठ करोड़ लोगों को पांच लाख का इलाज मुफ्त कराने की सुविधा मोदी सरकार ने दिया.
अमित शाह ने कहा कि 2014 और 2019 में यूपी के बिना बीजेपी की केंद्र में मरकार नहीं बन सकती. भोले शंकर की तरह यूपी की जनता कृपा से बीजेपी की केंद्र में सरकार बनी. मोदी की जीत का श्रेय यूपी की जनता को जाता है. मोदी सरकार ने राममंदिर निर्माण के सपने के सकार कर दिखाया. अखिलेश एंड कंपनी में ताने देती थी बीजेपी कहती है मंदिर बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे. पीएम मोदी ने पांच अगस्त को राम मंदिर का शिलांयास कर यह साबित कर दिया ता हम तारीख नहीं बल्कि भव्य मंदिर बन रहा. सपा सरकार में तो राम भक्तों को गोली से भूनने का काम किया था आज उसी राज में मंदिर बन रहा. यही हमारे और उनके बीच फर्क है.
अमित शाह ने कहा कि कश्मीर से धारा 370 के हटाएंगे यह हमारा वादा था. हम हर बार इसे घोषणा पत्र में रखते थे और सोचते थे कि कब पूरा होगा. देश की जनता भी धैर्य से देख रही थी, 2019 में मोदी की सरकार बनी और 370 को उखाड़ भेंक दिया और देश के सपने के साकार किया.
उन्होंने कहा कि 2017 में वादा किया था यूपी का विकास करेंगे. अखिलेश एंड कंपनी, बहन मायावती और गांधी वाड्रा परिवार को पता चल सके.15 साल के बाद हम सत्ता में लौटे थे तो सातवीं नंबर की अर्थव्यवस्था थी, लेकिन आज यूपी दूसरे नंबर की है. अखिलेश के राज में 10 लाख करोड़ का बजट छोड़कर गए थे योगी ने 21 लाख 31 करोड़ कर दिया. इसके साथ शाह ने कहा कि यूपी में बेरोजगारी 18 फीसदी दर की थी और आज 4 फीसदी दर है. मेडिकल कालेज 12 छोड़कर गए थे और आज तीस बन गया. चुनाव से पहले 40 बनाएं. 1500 डाक्टर बनते थे अब 4000 बनकर निकलेंगे.
उन्होंने जब देश वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की चपेट में था तो अखिलेश यादव और राहुल गांधी कहां थे? जब यूपी में भीषण बाढ़ का कहर बरपा तो सपा अध्यक्ष घर में छुपे थेय चुनाव नजदीक आया तो इनके कार्यकर्ता सड़कों और गलियों प्रचार कर रहे हैं, लेकिन जब राज्य के लोग संकट में थे तो कार्यकर्ता तो छोड़िए, इनके नेता ही गायब थे. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, इन लोगों को सिर्फ वोट से मतलब है. प्रदेश और देश की समस्या से ये कोसों दूर हैं. योगी ने प्रदेश को विश्व पटल पर नई पहचान दिलाई है. आज यूपी देश के अग्रणी राज्यों में गिना जाता हैय यह योगी सरकार की कड़ी मेहनत का नतीजा है. उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं को आगामी विधानसभा चुनाव में 300 से ज्यादा सीटें जीतने का संकल्प दिलाया.
यूपी चुनाव से ठीक पहले अमित शाह का लखनऊ दौरे को राजनीतिक नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है.केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह लखनऊ तो कई बार आ चुके हैं, लेकिन पार्टी मुख्यालय में संगठन की बैठक लेने वह पहली बार आ रहे हैं. ऐसे में शाह मिशन-2022 की रणनीति को धार देने के लिए पांच बड़ी बैठक करेंगे. इस दौरान बीजेपी संगठन पदाधिकारियों संग बैठक करेंगे साथ ही जनप्रतिनिधियों से मिलकर प्रदेश के सियासी हालात के फीडबैक भी लेंगे.
अमित शाह 2013 में यूपी प्रभारी के रूप में 2014 लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी संभाली, तब सबसे पहले बूथ अध्यक्षों के सम्मेलन को संबोधित कर बूथ स्तर के संगठन को प्रोत्साहित किया था. इस बार भी वह लखनऊ आ रहे हैं तो सबसे पहले अवध क्षेत्र के प्रभारी और संयोजकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए सदस्यता अभियान शुरू करेंगे. शाह का फोकस इस बार सामाजिक समरसता पर रहेगा, जिसके तहत पिछड़ों और दलितों को पार्टी से जोड़ने की रणनीति है.
बता दें कि अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी यूपी में वापसी कर सकी है. अमित शाह ने 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रभारी रहते बीजेपी को जीत दिलाई थी तो 2017 के विधानसभा चुनाव में बतौर पार्टी अध्यक्ष सत्ता से 15 साल का वनवास खत्म कराने में कामयाब रहे. 2017 के चुनाव में बीजेपी को 312 सीटें मिली थी जबकि एनडीए को 325 सीटें. शाह बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष 2019 में सपा-बसपा गठबंधन वाले चुनौतीपूर्ण चुनाव में विरोधी खेमे को चारों खाने चित कर चुके हैं. इसके बावजूद 2022 का चुनाव पिछले तीन चुनाव से काफी अलग है.
2017 में बीजेपी ने यूपी में जीत का परचम फहराया था तो सत्ता में सपा थी, लेकिन अब बीजेपी सत्ता में और सपा विपक्ष में हैं. ऐसे में बीजेपी के सामने अपने पांच साल के कामकाज लेकर जनता के बीच जाना है जबकि 2017 में अखिलेश सरकार की खामियों लेकर गई थी. यूपी में पिछले तीन दशक से हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन होता आ रहा है और सत्ता में रहने वाली पार्टी सरकार में वापसी नहीं कर सकी. ऐसे में अमित शाह के सामने बीजेपी के सामने सत्ता में वापसी कराने से लेकर 2017 जैसे नतीजे दोहराने की चुनौती होगी.
2022 के विधानसभा चुनावों की राह बीजेपी के लिए के लिए आसान नहीं रहने वाली, क्योंकि सामने कई चुनौती हैं. कोरोना महामारी में विपक्ष ने सूबे की बिगड़ी स्वास्थ्य सेवा को बड़ा मुद्दा बनाया. बेरोजगारी को लेकर लोगों की नाराजगी दूर करना, आसान नहीं होगा. हालांकि, योगी सरकार चार साल में चार लाख लोगों को रोजगार देने का दावा कर रही है, लेकिन विपक्ष जिस तरह से रोजगार को चुनावी मुद्दा बनाने में जुटा है. इसके अलावा कृषि कानून को लेकर किसान आंदोलन ने भी यूपी में बीजेपी के लिए चुनावी चिंता खड़े कर दिए हैं.
अमित शाह ने 2017 में ओम प्रकाश राजभर को साथ मिलाकर पूर्वांचल में पूरा सफाया कर दिया था तो पश्चिम में जाट और मुस्लिम की दूरी बीजेपी के लिए संजीवनी साबित हुई थी. हालांकि, इस बार ओमप्रकाश राजभर बीजेपी के खिलाफ सपा के साथ गठबंधन कर चुके हैं. इसके अलावा कई और भी छोटे दल सपा के साथ हैं. सपा लगातार गैर-यादव ओबीसी नेताओं को और राजनीतिक दलों के साथ हाथ मिलाकर अपना सियासी समीकरण दुरुस्त करने में जुटे हैं.
ऐसे में बीजेपी ने 2017 में जिस जातीय समीकरण के जरिए सियासी जंग फतह की थी, उसी तर्ज पर इस बार सपा अपना राजनीतिक बिसात बिछाने में जुटी है. जाट समाज से लेकर निषाद और राजभर जैसी जातियां पिछले चुनाव की तरह बीजेपी के साथ खड़ी नजर नहीं आ रही हैं और ब्राह्मण समाज को भी विपक्षी दल साधने में जुटे हैं. इस बार सपा खुलकर मुस्लिम कार्ड नहीं खेल रही है, जिसके चलते बीजेपी को तुष्टीकरण के मुद्दे पर घेरने का मौका भी नहीं मिल पा रहा.
बीजेपी ने पिछले चुनाव में पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक विपक्ष का सफाया कर दिया था, लेकिन इस पर उसे इन दोनों ही इलाकों में कड़ी चुनौती मिल रही है. तीन कृषि बिलों की वापसी को लेकर एक साल से जारी किसान आंदोलन का असर भी यूपी चुनावों पर पड़ सकता है, खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर बीजेपी को काफी मेहनत करनी पड़ेगी, क्योंकि किसान आंदोलन की कमान पश्चिमी यूपी के किसानों के हाथ में है और चुनाव में बीजेपी के सबक सिखाने की बात कर रहे हैं. किसान आंदोलन से जाट-मुस्लिम एक बार फिर साथ आए हैं और यह समीकरण ऐसे ही बना रहा तो पश्चिम यूपी में 2017 जैसे नतीजे दोहराना मुश्किल होगा.
वहीं, पूर्वांचल में भी बीजेपी के लिए राजभर और अखिलेश का गठबंधन बड़ी चुनौती बन सकता है. पूर्वांचल की कई सीटों पर राजभर समुदाय का प्रभाव हैं, जिसके चलते बीजेपी के लिए पूर्वांचल के किले को बचाना आसान नहीं होगा. इसके अलावा लखीमपुर खीरी की घटना से तराई बेल्ट के किसान भी नाराज है, जो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. ऐसे में देखना होगा कि अमित शाह इन सारी चुनौतियों से निपटने का क्या प्लान बनाते हैं. विपक्षी जातीय गठजोड़ की इन चुनौतियों से निपटने के लिए बीजेपी के रणनीतिकार शाह 2017 और 2019 के चुनावी फार्मूले को फिर से आजमा सकते हैं.


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